Book Title: Deepratnasagarji ki 585 Sahitya Krutiya ke 31 Folders ka Parichay
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 5
________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स गाणे तो तिच्या मणमा आगमसत्ताणि Folder - 02 आगम-सुत्ताणि मूलं Net कुल किताबें - 45 भाषा- प्राकृत, कुल पृष्ठ 2810 आयारो-१. मुनि दीपरत्नसागर इस दुसरे फोल्डर में मूल 45 आगम ही है, परतु ये onLine आगम-सीरीझ है, हमने 'वर्ड' के प्रोग्राम में यूनिकोड में 'मंगल' फॉन्ट में ये सभी आगम कम्पोझ करके 'www.jainelibrary.org' पर रख दिए है | A-4 साईझ, बड़े अक्षर, मल्टी कलर में कम्पोझ इत्यादि बाह्य परिवर्तन तो है ही, साथ में 'वर्ड' के प्रोग्राम के कारण कोई भी व्यक्ति इन आगमो को कोम्प्यूटर आदि माध्यम से स्वयं ही इसे कट-पेस्ट या एडिटिंग कर शकता है, कोई दूसरा पाठ मिले तो जोड़ शकता है, अपने मन-चाहे विषय अलग निकाल शकते है, pdf फ़ाइल बना शकता है और ऐसी बहोत सी सुविधा प्राप्त होती है | इस सम्पादन में 'printed Edition' वाली सब विशेषता तो है ही, तदुपरांत सभी सूत्रों के अंक 'लाल कलर' में तथा गाथाओं के अंक 'हरे कलर' में दिए है, इस प्रकार से सूत्र एवं गाथा स्पष्टरूप से विभाजित है, प्रत्येक अध्ययन, उद्देशक आदि के आरंभ एवं अंत को भी बड़े अक्षर तथा अलग कलर में टाइप किये है, जिस से अभ्यासक एवं संशोधन या खोज करनेवाले को बहोत सुविधा रहेगी | विश्व में सर्वप्रथम ही यह ४५ आगम का online पब्लीकेशन हुआ है । आप अगर इसे देखना चाहे तो इंटरनेट पर 'jainelibrary.org' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | इस प्रकाशन में 4 वैकल्पिक आगम शामिल नहीं किये है | ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है - मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books (1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य......| Page 5 of 36 ...कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय

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