Book Title: Deepratnasagarji ki 585 Sahitya Krutiya ke 31 Folders ka Parichay
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स श्री आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर-गुरुभ्यो नमः दीपरत्नसागर की 585 साहित्य-कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय फोल्डर का क्रम और नाम, फोल्डर में समाविष्ट कृतियाँ और पृष्ठ-संख्या तथा कृतियों की भाषाओ के नाम और किताब के कद के साथ कृति-परिचय मनि दीपरत्नसागर M.Com. M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि | જૈનમુનિટી) દીપચનસાગરજી - दीपरत्नसागर की 585 कृतियों का साहित्य-यात्रा काळ → October 1984 to November 2017 * कार्य विस्तार-1,03,130 पृष्ठ Email: iainmunideepratnasagar @amail.com Mobile: +91-9825967397 SELERS 000000000000000000000000000000000000000666666 SEEEEEEEEE Maa ESEEEEEEEEEEEEE Page 1 of 36 BRILLIATEEEEEEEEEEEEEEEEEE E maaaaaaaaaaaaaaaa Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ક્રમ 02 03 , 04 , | 31 ફોલ્ડર્સનો વિષયાનુક્રમ ફોલ્ડરનું નામ ફોલ્ડરનું નામ 01 | માયામ સુલ્તાન મૂલં [Printed], 17 सचूर्णिक आगम सूत्त्ताणि માગમસુલ્તાન મૂલં [Net) 18 સવૃત્તિ સામ સૂત્રાળ 2 આગમસૂત્ર ગુજરાતી અનુવાદ 19 ના મિય સાહિત્ય વિશેષ आगम-सूत्र हिंदी अनुवाद 20 તત્ત્વાભ્યાસ સાહિત્ય Aagam Sootra English translation 21 સૂત્રાભ્યાસ સાહિત્ય | आगम-सूत्र सटीकं 22 વ્યાકરણ સાહિત્ય આગમસૂત્ર સટીક ગુજરાતી અનુવાદ 23 વ્યાખ્યાન સાહિત્ય 08 | | માગમ-મંજૂષા (મૂ"-પ્રત) 24 જિનભક્તિ સાહિત્ય 09. | आगम चूर्णि साहित्य વિધિ સાહિત્ય | आगम संबंधी साहित्य 26 આરાધના સાહિત્ય आगम कोसो 27 પરિચય સાહિત્ય આગમ કથાનુયોગ 28 તીર્થકર સંક્ષિપ્ત દર્શન આગમ વિષય અનુક્રમ | | 29 પૂજન સાહિત્ય 14 નાનમ સૂવળ સટીક 2 (પ્રતાવાર) | | 30 પ્રકીર્ણ સાહિત્ય | 15 માગમ સુલ્તા િસદીનં 1 (પ્રતીક્ષાર) | 31 દીપરત્નસાગરના લઘુશોધનિબંધ 16 સવૃત્તિ મારામ સૂત્રણ 1 | દીપરત્નસાગર વિશે લખાયેલા આર્ટીકલ્સ 07 | 10. 1 | આગમ સંબંધી સાહિત્ય | 500 પુસ્તકો 0,94,011 કુલ-પાના અન્ય સાહિત્ય 085 પુસ્તકો | 0,09,119 ફૂલ-પાના કુલ પ્રકાશનો 585 પુસ્તકો | 1,03,130 કુલ-પાના મારા 585 પ્રકાશનો- કુલ પાનાં 1,૦૩,130 + તત્વાર્થસૂત્ર વિશિષ્ટ સંકલન- કુલ પાનાં 27,930 = કુલ પાનાં 1,31,060 दीपरत्नसागर की 585 साहित्य-कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय I ILL I I LL I I I ILL ILL II I I Insta I Page 2 of 36 en T A - . . . . A Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स मुझे कुछ कहेना है... "मुनिश्री दीपरत्नसागरजी की साहित्य-यात्रा" का आरम्भ सन 1984 के अंत में हुआ, एक एक मुकाम आगे बढ़ते हुए आज जून 2017 तक 585 प्रकाशनो की मंज़िल को ये यात्रा पार कर चुकी है | जब तक "प्रिन्टेड-पब्लिकेशन” युग था, तब तक 301 किताबें मुद्रित करवाई; फिर आरम्भ हुआ "नेट-पब्लिकेशन" युग, तब इस नए युग के साथ चलते-चलते '' की फिर हमने भी ईसी राह पे कदम रखते हुए On-Line एडीटिंग हो सके ऐसे माइक्रोवर्ल्डप्रोग्राम के झरीए ४५ आगम मूल को कम्पोझ कर के Online [free to air] कर दिया, उसके साथ 70 वर्ष पहले पूज्यपाद् आचार्यश्री आनन्दसागर सूरीश्वरजी संपादित "आगम मंजूषा" को भी हमने किंचित् परिमार्जित करके यहाँ अलग-अलग किताबो के रूपमें स्थान दे दिया | E"आगम विषय-अनक्रम और ग्यारह आगमो का अंग्रेजी अनवाद भी मैंने किया और उसे नेट पर शामिल किया, पूज्य आगमोद्धारकरी संपादित आगमो की नियुक्ति, वृत्ति, चूर्णि, सूत्र-गाथादि अनुक्रम,बृहत् विषयानुक्रम आदि को मैने अतिविशिष्ठ रूप से संकलित किया, जिसमे मूलप्रत के साथ छेड़छाड़ किए बिना ही बहोत उपयोगी हो शके इस तरह परिवर्तित कर के एवं A-4 साईझमें इंटरनेट पर रख दिया | प्रत्येक तिर्थंकरो की १८५ विगतो के साथ तीर्थकर परिचय कराते हुए 24 किताबे नेट पर रख दी है, ईसके अलावा २०१७ मे 25000 से ज्यादा पृष्ठोमे हमारी ६१ किताबे भी प्रिन्ट हुई है। परिणाम स्वरुप आज मै मेरे ये 585 प्रकाशन [1,03,130 पृष्ठो] आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हु। संपर्क: मुनि दीपरत्नसागरजी [M.Com. M.Ed. Ph.D. श्रुतमहर्षि] • जैन देरासर, “पार्श्वविहार" फ़ोरेस्ट रेस्ट हाउस के सामने, Post: ठेबा [361120], Dis. जामनगर [गुजरात] Mobile:+91-982596739 Email: Jainmunideepratnasagar@gmail.com ये सभी प्रकाशन इंटरनेट पर भी उपलब्ध है दीपरत्नसागर की 585 साहित्य-कतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page 3 of 36 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स आगमसुत्ताणि Folder - 01 आगम-सुत्ताणि मूलं print कुल किताबें - 49 भाषा- प्राकृत, कुल पृष्ठ 3509 सनि दीपरजसागर इस पहले फोल्डर में हमने हमारे ४९ प्रकाशनों को सम्मिलित किया है, जो कि अर्धमागधी/प्राकृत भाषा में प्ररूपित मूल आगमसूत्र है। इसमें 45 आगम 45 अलग-अलग किताबो में प्रिन्ट करवाए है, 4 वैकल्पिक आगम भी उसमे समाविष्ट किये है, इस-तरह (45+4) 49 मूल आगम यहाँ प्राप्त है प्रत्येक सूत्र के अंतमे पूज्य सागरानंदसूरिजी संपादित 'आगममञ्जूषा के तथा उनकी ही संपादित वृत्ति आदि की प्रत के सूत्रांक भी लिख दिए है| हमारे इस प्रकाशनमे श्रुतस्कंध, शतक/अध्ययन/वक्षस्कार/पद/प्रतिपत्ति, उद्देशक, सूत्रांगाथा आदि स्पष्ट अलग दिखाई दे, ऐसी विशिष्ट मुद्रणकला यहाँ प्रयोजी है | 445 आगमो की प्रत्येक किताबे भी अलग-अलग एवं छोटे कद की होने से आगमो के पठन-पाठन में या उसे कंठस्थ करने में बहोत सरलता रहती है | 45 आगमो की अलग अलग किताब होने से 45 आगम पूजा, पूजन, रथयात्रा या गौतमस्वामी आदि पूजनके लिए सुविधाजनक है हमारे इस प्रकाशन की एक और विशेषता ये है कि यहाँ प्रत्येक सूत्र के आरंभ में हमने एक नया ही अनुक्रम प्रस्तुत किया है, जो आगमसद्दकोसो' 'आगम नामकोसो', 'आगम विषयदर्शन' एवं आगम कथानुयोग के मूल संदर्भ देखने के लिए तथा हमारी अत्यंत उपयोगी है । ये किताबे 8.75 x 5.75 की साईझ में print हुई है। - मुनि दीपरत्नसागर Muni Deepratna Sagar's 585 Books (1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य...... Page 4 of 36 |.....कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स गाणे तो तिच्या मणमा आगमसत्ताणि Folder - 02 आगम-सुत्ताणि मूलं Net कुल किताबें - 45 भाषा- प्राकृत, कुल पृष्ठ 2810 आयारो-१. मुनि दीपरत्नसागर इस दुसरे फोल्डर में मूल 45 आगम ही है, परतु ये onLine आगम-सीरीझ है, हमने 'वर्ड' के प्रोग्राम में यूनिकोड में 'मंगल' फॉन्ट में ये सभी आगम कम्पोझ करके '' पर रख दिए है | A-4 साईझ, बड़े अक्षर, मल्टी कलर में कम्पोझ इत्यादि बाह्य परिवर्तन तो है ही, साथ में 'वर्ड' के प्रोग्राम के कारण कोई भी व्यक्ति इन आगमो को कोम्प्यूटर आदि माध्यम से स्वयं ही इसे कट-पेस्ट या एडिटिंग कर शकता है, कोई दूसरा पाठ मिले तो जोड़ शकता है, अपने मन-चाहे विषय अलग निकाल शकते है, pdf फ़ाइल बना शकता है और ऐसी बहोत सी सुविधा प्राप्त होती है | इस सम्पादन में 'printed Edition' वाली सब विशेषता तो है ही, तदुपरांत सभी सूत्रों के अंक 'लाल कलर' में तथा गाथाओं के अंक 'हरे कलर' में दिए है, इस प्रकार से सूत्र एवं गाथा स्पष्टरूप से विभाजित है, प्रत्येक अध्ययन, उद्देशक आदि के आरंभ एवं अंत को भी बड़े अक्षर तथा अलग कलर में टाइप किये है, जिस से अभ्यासक एवं संशोधन या खोज करनेवाले को बहोत सुविधा रहेगी | विश्व में सर्वप्रथम ही यह ४५ आगम का online पब्लीकेशन हुआ है । आप अगर इसे देखना चाहे तो इंटरनेट पर 'jainelibrary.org' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | इस प्रकाशन में 4 वैकल्पिक आगम शामिल नहीं किये है | ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है - मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books (1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य......| Page 5 of 36 ...कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 0 भागमहीय-3 ઠાણ gut al મુનિ દીપરત્નસાગર नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder - 03 આગમ-સૂત્ર ગુજરાતી અનુવાદ Net कुल किताबें → 47 भाषा- गुजराती, कुल पृष्ठ 3397 इस तीसरे फोल्डर में हमने हमारे ४७ प्रकाशनों को सम्मिलित किया है, जो कि अर्धमागधी भाषा में प्ररूपित मूल आगमसूत्र का संपूर्ण गुजराती अनुवाद है । हमारे मूल 45 आगम अर्धमागधी भाषामें है, जो साधु-साध्वी भाषा - ज्ञानसे वंचित है, शास्त्रीय कारण से आगम का पठन नहीं कर शकते है, आगमो की वांचना प्राप्त नही कर शकते है, इत्यादि कारणो से वे आगमिक पदार्थों के बोध को प्राप्त न हुए हो, ऐसे भव्यात्माए 'कल्पसूत्र' की तरह सरलतासे आगमो का अभ्यास कर शके या बोध प्राप्त कर शके, तथा भवभीरु आत्माए अपना जीवन मार्गानुसार बना शके ऐसा ये प्रकाशन है, जो 8.75 x 5.75 की साईझ में print हुए है | इस संपुटमें 45 आगम मूल एवं 2 वैकल्पिक आगमो के साथ ४७ आगमो का अक्षरश: गुजराती- अनुवाद है | हमने पहले ये अनुवाद 7 भागोमें print करवाया था, ● अभी ये अलग-अलग 47 किताबो के रूप में इंटरनेट पर है | आप अगर इसे देखना चाहे तो इंटरनेट पर '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | अंदाजित 90000 श्लोकप्रमाण मूल अर्धमागधी 45 आगमो का ये समग्र विश्व में सर्वप्रथम और एकमात्र गुजराती अनुवाद है । इस प्रकाशन की यह विशेषता है कि मूल आगम में उपयोजित क्रमांकन का ही यहाँ स्वीकार किया है, ताँकि स्वाध्याय करते वक्त मूल एवं गुजराती अनुवाद साथसाथ पढ़ सके । ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है | मुनि दीपरत्नसागर |Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com Mobile: +91-9825967397 ..कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय दीपरत्नसागर की 585 साहित्य........ Page 6 of 36 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स आगमसत्र-११ हिन्दी अनुवाद विपाक सूत्र Folder - 04 आगम-सूत्र हिन्दी अनुवाद Net कुल किताबें 7 47 भाषा- हिन्दी, कुल पृष्ठ 3648 मुनि दीपरत्नमार इस चौथे फोल्डर में हमने हमारे ४७ प्रकाशनों को सम्मिलित किया है, जो कि अर्धमागधी भाषा में प्ररूपित 90000 श्लोकप्रमाण मूल 45 मूल आगमसूत्र का संपूर्ण हिन्दी अनुवाद है। 45+2 आगमो के गुजराती अनुवाद के बाद हमने उसी 47 आगमो का हिन्दीअनुवाद भी किया था, जो 12 भागो में print करवाया था, उसी प्रकाशन को अब अलग-अलग 47 किताबो के रूपमें इंटरनेट पर अपलोड कर दिया है | आप अगर इसे देखना चाहे तो इंटरनेट पर '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | गुजराती-अनुवाद के अनुभव को नजर के सामने रखकर हमने हिन्दी अनुवाद करते समय अर्थ का विस्तार और पेरेग्राफो में आवश्यक वृद्धि कर दी, परिणाम स्वरुप यहाँ 287 पेज बढ़ गए | हिन्दीभाषी महात्मा भी आगम के पदार्थज्ञान से वंचित न रहे, ऐसे आशय से तैयार किया गया ये सम्पुट साहित्यिक मूल्यवाला तो है ही, साथमें गुजराती-भाषी आगमरसिको के लिए भी ये प्रकाशन महत्वपूर्ण सन्दर्भशास्त्र बन चुका है, क्योंकि मूल-आगम, गुजराती-अनुवाद और हिन्दी अनुवाद तीनो में सूत्र-क्रमांकन एक समान ही है, जिस से एक साथ तिन भाषा में आप सरलता से 45 आगम देख शकते है | ये किताबे 8.75 x 5.75 की साईझ में print हुई है। ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है | - मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] | Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य.... Page 7 of 36 ......कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder - 05 Veerstava Meaning with Details AagamSootra English Translations.Net कुल किताबें +11 भाषा- अंग्रेजी कुल पृष्ठ 410 इस पांचवे फोल्डर में हमारे 11 प्रकाशनों को सम्मिलित किया है और A-4 की साईझ में, वर्ड के प्रोग्राम में तैयार किया हुआ एक Net publication है | आप अगर इसे देखना चाहे तो इंटरनेट पर '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | हमने 'Aagam-Sootra English Translations' नाम से इस सीरीझ का आरंभ किया था, 45 आगम के इंग्लिश-अनुवाद कार्यमें मै 11 आगम का अनुवाद कार्य कर शका हुं, ईसीलिए अभी 11 Publications ही मैंने Net पर रक्खे है, शरीर का साथ मिला तो बाकी आगमो का Translation भी करने की भावना है | मैने English Translations करते वक्त एक मर्यादा का अनुभव किया है - जैन पारिभाषिक-शब्दों का मूल भाव न बिगड़े इस तरह अनुवाद करना कभी कभी मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होता है, ऊस वक्त मूल शब्द को ही अवतरण चिह्न या इटालिक टाइप में रखना पड़ता है, कहीं कहीं तो ऐसा भी महेसुस हुआ | है की सांस्कृतिक तफावत के कारण हम दूसरी भाषावालो को यथायोग्य सूत्र-भाव पहुंचा ही नहीं शकते है। इन सभी कारणों से आगे का कार्य रुक गया है, English में सुव्यवस्थित परिभाषाए प्रस्तुत करने के बाद ही अब ये कार्य संपन्न हो शकता है हालांकि वर्तमानयुगमें 'आगम-अंग्रेजी-अनुवाद' का होना आवश्यक है ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है -मुनि दीपरत्नसागर TAMunnaonratnecesarla FOR DAlhe 0120-Decial Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य...... Page 8 of 36 तियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स तमाम Folder - 06 आगमसुत्ताणि सटीकं Net कुलकिताबें - 46 भाषा- संस्कृत,प्राकृत कुलपृष्ठ 13806 आयामरताहण (सटीक) । जाचाला सूत्र - सटीक संकः सनसम्बया मंसिडीपरत्नसागर इस छढे फोल्डर में हमने हमारे ४६ प्रकाशनों को सम्मिलित किया है, जो कि अर्धमागधी भाषा में प्ररूपित मूल आगमसूत्र पर संस्कृत या प्राकृत भाषा में वृत्ति या चूर्णि रूप से विवेचन स्वरूप है। आगम-सुत्ताणि सटीक' नाम के इस प्रकाशन में 45+1 वैकल्पिक आगम मिलाकर 46 आगम सामिल किए है | इन आगमो में 38 आगमो की वृत्ति या चूर्णि का सम्पादन किया है, जिस के साथ साथ उपलब्ध नियुक्ति एवं भाष्यों को भी स्थान दिया है, 2 आगमो की अवचूरी प्राप्त हुई है शेष 5 पयन्ना की संस्कृत छाया प्रकाशित करवाई है, महानिशीथ पर कोई भी वृत्ति आदि उपलब्ध न होनेसे उसे मूल-रूपसे रखा है। हमने 30 भागोंमे इसे print करवाया था, वे अब 46 किताबो के रुपमें हमने | इंटरनेट पर अपलोड किए है | आप '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | समग्र विश्वमें 'पुस्तकों के रुपमे 45 आगम टीका सहित प्राप्त हो ऐसा यह पहेला और एकमात्र प्रकाशन है । मूल-आगम, गुजराती-अनुवाद, हिन्दी-अनुवाद, आगम-सटीकं, इन सभी संपुटो में एक समान सूत्रांक होने से अभ्यासको को अपने पठन-पाठन, खोज-संशोधन आदिमें सूत्र-पाठ मिलाने तथा अर्थ या वृत्ति देखने की बहोत सुविधा रहती है | ये किताबे 8.75 x 5.75 की साईझ में print हुई है | ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है। - मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] | Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य.... | Page 9 of 36 |.....कृतियों के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स આગમસૂત્ર Silewar PoKE Folder - 07 मामसूत्र सटी गुराता मनुवाE Net कुल किताबें , 48 भाषा- गुजराती कुल पृष्ठ 10340 Babu इस सातवे फोल्डर में हमने हमारे ४६ प्रकाशनों को सम्मिलित किया है, जो कि अर्धमागधी भाषा में प्ररूपित मूल आगमसूत्र पर संस्कृत या प्राकृत भाषा में वृत्ति या चूर्णि रूप से विवेचन स्वरूप है। आगम-सुत्ताणि सटीकं' नाम के इस प्रकाशन में 45+1 वैकल्पिक आगम मिलाकर 46 आगम सामिल किए है | इन आगमो में 38 आगमो की वृत्ति या चूर्णि का सम्पादन किया है, जिस के साथ साथ उपलब्ध नियुक्ति एवं भाष्यों को भी स्थान दिया है, 2 आगमो की अवचूरी प्राप्त हुई है शेष 5 पयन्ना की संस्कृत छाया प्रकाशित करवाई है, महानिशीथ पर कोई भी वृत्ति आदि उपलब्ध न होनेसे उसे मूल-रूपसे रखा है। हमने 30 भागोंमे इसे print करवाया था, वे अब 46 किताबो के रुपमें हमने इंटरनेट पर अपलोड किए है | आप '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | & समग्र विश्वमें 'पुस्तकों के रुपमे 45 आगम टीका सहित प्राप्त हो ऐसा यह पहेला और एकमात्र प्रकाशन है | मूल-आगम, गुजराती-अनुवाद, हिन्दी-अनुवाद, आगम-सटीकं, इन सभी संपुटो में एक समान सूत्रांक होने से अभ्यासको को अपने पठन-पाठन, खोज-संशोधन आदिमें सूत्र-पाठ मिलाने तथा अर्थ या वृत्ति देखने की बहोत सुविधा रहती है | ये किताबे 8.75 x 5.75 की साईझ में print हुई है। * ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है | - मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] | Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य... | Page 10 of 36 |... कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय | Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स मुन्न बीमारिन मूर्तम-एमगर पुमो गर Folder - 08 On Line आगममंजूषा शिआयारो आगम मञ्जूषा Net कुल किताबें - 53 भाषा- प्राकृत कुल पृष्ठ 1521 पुनः संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता मुनि दीपरत्नसागर-anal इस आठवें फोल्डर में हमने 53 प्रकाशनों को सम्मिलित किया है, पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी ने करीब 70 साल पहले मार्बल एवं तामपत्र पर इस आगममंजूषा को अंकित और 20x30 के पेपर पर भी print करवाया था, वही आगममंजुषा को हमने किंचित् परिमार्जित करके, प्रत स्वरूपमें तबदील करके लेंडस्केप A-4 साईझ में Net Publication रूप से आपके सामने प्रस्तुत किया है | आप इसे इंटरनेट पर 'jainelibrary.org' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | 'आगममञ्जूषा मूल-रूपसे तो ये 1370 सलंग पृष्ठोमे print हुइ थी, मगर उसमें ४५ मूल-आगम, 2 वैकल्पिक-आगम, कल्पसूत्र, 5 आगम कि नियुक्तियाँ शामिल थी, हमारे Net Publications में हमने इसका थोड़ा उपयोगिता मूल्य बढ़ाकर ५३ स्वतंत्र कृति के रूप में अलग-अलग पुस्तक तैयार करके सीधे ही Online (Free to air) रखे हैं । प्रत्येक किताब के साथ प्रस्तावनारूप पृष्ठ और स्वतंत्र Title जोड़कर, पूज्यश्री संपादित साहित्य जो अब तक आरस पत्थर, तामपत्र या 20x30 के बड़े कागझ पे था, उसे आप A-4 की और प्रताकार साईझ में छोटी-छोटी किताब स्वरुप से पा शके, इस तरह पुन: संपादित किया है | इस DVD में उसी आगम-शाश्त्रो को स्वतंत्र ५३ पुस्तक रूप में रखा है । ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है | - मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books (1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य...... | Page 11 of 36 |. कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स । सचूणिक-आगम-सुत्ताणि ७ Folder - 09 आगम चूर्णि साहित्य कुल किताबें - 9 भाषा- प्राकृत कुल पृष्ठ 2667 'आवश्यक नियुक्ति एवं पूर्णिः । इस नववे फोल्डर में हमने 9 प्रकाशनों को सम्मिलित किया है जिस में आचार, सूत्रकृत, आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दी और अनुयोगद्वार ये सात आगमो की चूर्णियो को नव प्रतोमें प्रिन्ट करवाया था | पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी ने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, भाष्य, नियुक्ति आदि भी संपादित किए है | हमने सोचा की वो प्रत/पोथीयुग था, अब पुस्तक-युग है, वो 'प्रिन्टिंग' का ज़माना था अब 'इंटरनेट' की बोलबाला है, हमने सोचा चलो फिर इस प्रतो को A-4 साईझ के पुस्तक-रूपमें तबदील करके, इन की उपयोगिता बढ़ाकर Net publication के रूप में रख दे | फिर हमने एक विशेष फोर्मेट बनाया, ऊस के बिच में मूल प्रतके एक एक पृष्ठ अलग-अलग रख दिए. फिर जो आगम संपादित हो रहा हो, उसके प्रत्येक पेज पर ऊस आगम का क्रम, आगम का नाम, आगम का प्रकार, आगमप्रकार का क्रम हमने लिख दिए, ऊस लाइन के नीचे ऊस आगम का जो श्रुतस्कंध, अध्ययन, उद्देश, सूत्र/गाथा, नियुक्ति आदि उस पेज पे चल रहे हो, वे सभी अंको को प्रत्येक पेज पर लिख दिए, बायीं तरफ प्रत सूत्रांक और 'दीपरत्न' सूत्रांक लिख दिए, ऊस प्रतमें कोई विशेष विषयवस्तु हो, अध्ययनादि की सूचना हो या मुद्रणदोष हो तो उसे नीचे फूटनोट में लिख दिए | बाद में मल्टीकलर में वो सब मेटर net पे रख दिया | आप इसे इंटरनेट पर '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है | -- मुनि दीपरत्नसागर Muni Deepratnasagar's 585 Books [1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य.Page 12 of 36 | ...कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स आगम-संबंधी-साहित्य प्रत्येकबुद्धभापिलानि 'प्राषिभाषितसूत्राणि मूलं Folder - 10 आगम संबंधी साहित्य कुलकिताबें 7 9 भाषा- प्राकृत, संस्कृत कुलपृष्ठ 1000 इस दशवे फोल्डर में हमने 9 प्रकाशनों को सम्मिलित किया है जिस में आगमिय सुक्तावली, ऋषिभाषित, अंगसूत्र--उपांग-प्रकीर्णकसूत्र--नन्दी आदि सूत्र एवं गाथादि अनुक्रम, अंग-उपांग-प्रकीर्णक-नन्दी आदि सूत्रो का विषयानुक्रम को नव प्रतोमें प्रिन्ट करवाया था | पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी ने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, भाष्य, नियुक्ति आदि भी संपादित किए है | हमने सोचा की वो प्रत/पोथीयुग था, अब पुस्तक-युग है, वो 'प्रिन्टिंग' का ज़माना था अब 'इंटरनेट' की बोलबाला है, हमने सोचा चलो फिर इस प्रतो को A-4 साईझ के पुस्तक-रूपमें तबदील करके, इन की उपयोगिता बढ़ाकर Net publication के रूप में रख दे | फिर हमने एक विशेष फोर्मेट बनाया, ऊस के बिच में मूल प्रतके एक एक पृष्ठ अलग-अलग रख दिए. फिर जो आगम संपादित हो रहा हो, उसके प्रत्येक पेज पर ऊस आगम का क्रम, आगम का नाम, आगम का प्रकार, आगमप्रकार का क्रम हमने लिख दिए, ऊस लाइन के नीचे ऊस आगम का जो श्रुतस्कंध, अध्ययन, उद्देश, सूत्रागाथा, नियुक्ति आदि उस पेज पे चल रहे हो, वे सभी अंको को प्रत्येक पेज पर लिख दिए, बायीं तरफ प्रत सूत्रांक और 'दीपरत्न' सूत्रांक लिख दिए, ऊस प्रतमें कोई विशेष विषयवस्तु हो, अध्ययनादि की सूचना हो या मुद्रणदोष हो तो उसे नीचे फूटनोट में लिख दिए | बाद में मल्टीकलर में वो सब मेटर net पे रख दिया | आप इसे इंटरनेट पर '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है | -- मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books (1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य...... Page 13 of 36 | .....कृतिया के 31 फोल्डसे का परिचय Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स आगमसङकोसो-१ Folder - 11 आगम-कोसो Print कुल किताबें 25 भाषा- प्रा०सं०गु० कुल पृष्ठ 2392 आगम-कहा-कोसो आगम-नाम-कोसो मुनि दीपरत्नसागर इस सोलहवे फोल्डर में 5 मुद्रित प्रकाशन है → [1-4] आगम सकोसो, जिसे 'A Referential Word Dictionary of 45 Aagam' कह शकते है, [5] आगम नामकोसो, जिसे हम 'A Referential Noun Dictionary of 45 Aagam' कह शकते है | 'आगमसद्दकोसो' में 46,000 आगम-शब्द, उन का संस्कृत-रूपांतर और वृत्ति या चूर्णी के आधार पर किए गए उन शब्दों के गुजराती अर्थ दिए है, साथ में उनके 3,75,000 आगम-संदर्भ-स्थल भी आप को मिलेंगे | चार भागों में और 2300 से ज्यादा पृष्ठो में 'अ' से 'ह' पर्यंत शब्दों को डिक्शनरी रूप से मुद्रित करवाए है। आप को कोई भी अर्धमागधी आगम-शब्द मूल 45 आगमो में खोजना हो तो प्रस्तावित शब्द का मूल आगमो में जहां-जहां प्रयोग हुआ हो उन सभी स्थानों का आगम संदर्भ साथ में देने का हमने संनिष्ट प्रयास किया है, आप इस डिक्शनरी में सरलता से देख उन शब्दों को देख शके इस तरह मैंने कम्पोझ भी किया है | आज तक जितने भी आगम-कोस (Aagam-Dictionary) बने उन में ये एक ही एसा कोस है जिस में शब्दों के साथ-साथ आगम एवं आगम सूत्र-क्रम को भी 'अकारादि' क्रम में संकलित किया हो | आगम-कोस संबंधी पांचवा प्रकाशन है 'आगम नाम कोसो', जो मूल-आगम, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी, व्रत्ति में आनेवाले सभी कथानक और मुख्य नामो की एक डिक्शनरी है | यह मुख्यरूप से मनुष्यों के संज्ञावाची नाम का कोश है, फिर भी ईस कोश में बड़ी और महत्त्वपूर्ण कथाओं की एक छोटी डिक्शनरी भी है । बृहद् रूप से नामों की डिक्शनरी है, साथसाथ आगमों के दृष्टांतो की छोटी सूचि भी है। - मुनि दीपरत्नसागर |Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pagesl Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य...... Page 14 of 36 .....कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ΟΙ कागम प्रशानुयोग-3 મુનિ દીપરત્નસાગર नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder - 12 आगम ऽथानुयोग Print कुल किताबें → 6 भाषा- गुजराती कुल पृष्ठ 2172 इस बारहवे फोल्डर में हमारे 6 प्रकाशनों को सम्मिलित किया है | ये PrintPublication है, 'आगम कथानुयोग नामसे मैंने 6 किताबो का संपुट बनाया है, इसमें कथानुयोग नामक अनुयोग की मुख्यता है मूल-आगम, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि और वृत्ति में प्राप्त सभी कथानको को इकठ्ठा करके, उन सब कथाओ को अलग-अलग विभागो में रख दिया, फिर उनका योग्य संकलन करके गुजराती अनुवाद कर दिया और 6 किताबो में print करवा दिया | इस में है: -- तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेवादि उत्तम पुरुषो के कथानक; गणधर, प्रत्येकबुद्ध, निनव, श्रमण, श्रमणी, और गोशालक के कथानक; श्रावक, श्राविका, अन्यतिर्थिक, देव, देवी, प्राणी वगेरह के कथानक तथा प्रकीर्ण कथानको एवं छोटे छोटे दृष्टांतों का समावेश हुआ है । इस तरह सभी कथानकों को दस विभागोमें विभाजित किया है । प्रत्येक कथा के अंतमें ऊस कथा के सभी आगम-संदर्भ लिखे है, जिससे आप उन कथाओं के मूल स्रोत देख शकते है । छट्टे भाग के अंतमे मैंने प्रत्येक कथा का अ-कारादि क्रम भी लिख दिया है, जिससे कोई भी कथा आसानी से मिल शके | भगवंत महावीर के शासनकाल में सिर्फ एक 'ज्ञाताधर्मकथा' नामक आगम में साढ़े तीन करोड़ कथाए थी, लेकिन आज 45 आगमो के मूलसूत्र, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णी, वृत्ति इन पांचो को मिलाकर भी मैं सिर्फ 852 कथाए और 187 दृष्टांत ढुंढ पाया हूँ | इसे मैने 8.75 x 5.75 की साईझ में print करवाया है | मुनि दीपरत्नसागर |Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com Page 15 of 36 .. कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Mobile: +91-9825967397 दीपरत्नसागर की 585 साहित्य..... Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स समी निम्ममा આગામવિષય-દર્શત मनिdess Folder - 13 सम-विषय-शन/मनुभPrint+Net कुल किताबें - 2 भाषा- गुजराती कुल पृष्ठ 726 इस तेरहवे फोल्डर में हमारा छोटा सा लेकिन महत्त्वपूर्ण प्रकाशन है, इस में 2 किताबें है, 'आगम-विषय-दर्शन' जो Printed है, और 'आगम-विषय-अनुक्रम' जो Net पर पब्लिश की गई है | दोनों किताबो में विषयवस्तु एक-समान है, फर्क ये है की 'आगम विषय दर्शन' A-5 अर्थात् 8.75 x 5.75 की साईझ में मुद्रित करवाई है और आगम विषय अनुक्रम A-4 साईझ में, मल्टीकलर में नई कम्पोझ की हुई है इस कृति में मैंने 45 आगमो की विषद् रूप से अनुक्रमणिका बनाई है, इसमें प्रत्येक आगम के प्रत्येक सूत्र या गाथा के विषयो को उसी आगमो के सूत्र-क्रमांकन अनुसार सुस्पष्ट और पृथक्-पृथक् रूप से दिया है, जिस से कोई भी अभ्यासक अपने मनपसंद या आवश्यक अथवा अपने संशोधन या लेखन के अनुरूप विषय को सरलता से पसंद कर शकता है| 'आगम-विषय-दर्शन' के आरभ में मैंने मूलआगम, गुजराती अनुवाद और आगम सटीक के पृष्ठांक भी दे दिए है, जिस से अभ्यासको को अपने इच्छित विषय खोजने में विषय अनुक्रम के साथ पृष्ठ भी मिल जाएगा। - यहाँ प्रस्तुत विषय-अनुक्रम की भाषा भले ही गुजराती है, मगर आप इस पुस्तक की मदद से हमारे गुजराती, हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत या इंग्लिश अर्थात् हमारे मूल एवं टीका स्वरूप ४५-आगमो के सभी प्रकार के आगम प्रकाशनों में प्रवेश करके आप अपने मनपसंद विषय ढुंढ शकते है और आप के आवश्यक विषय की पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । क्यों कि मेरे सभी प्रकाशनों में मैंने एकसमान सूत्र-क्रमांकन किया है | मुनि दीपरत्नसागर Muni Deepratnasagar's 585 Books [1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य.. Page 16 of 36 ...कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder - 14 आगमसूत्राणि सटीकं 2 (प्रताकार)Net कुल किताबें 79 भाषा-प्राकृत, संस्कृत कुल पृष्ठ 2561 इस चौदहवे फोल्डर में हमने 9 प्रकाशनों को सम्मिलित किया है जिस में भगवती, आवश्यक, नन्दी और अनुयोगद्वार ये चार आगमो की वृत्तियो को आठ प्रतोमें प्रिन्ट करवाया है और नववीं प्रत कल्पसूत्र सुबोधिका वृत्ति की है | पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी ने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, भाष्य, नियुक्ति आदि भी संपादित किए है | हमने सोचा की वो प्रत/पोथीयुग था, अब पुस्तक-युग है, वो 'प्रिन्टिंग' का ज़माना था अब 'इंटरनेट' की बोलबाला है, हमने सोचा चलो फिर इस प्रतो को A-4 साईझ के पुस्तक-रूपमें तबदील करके, इन की उपयोगिता बढ़ाकर Net publication के रूप में रख दे| फिर हमने एक विशेष फोर्मेट बनाया, ऊस के बिच में मूल प्रतके एक एक पृष्ठ अलग-अलग रख दिए. फिर जो आगम संपादित हो रहा हो, उसके प्रत्येक पेज पर ऊस आगम का क्रम, आगम का नाम, आगम का प्रकार, आगमप्रकार का क्रम हमने लिख दिए, ऊस लाइन के नीचे ऊस आगम का जो श्रुतस्कंध, अध्ययन, उद्देश, सूत्र/गाथा, नियुक्ति आदि उस पेज पे चल रहे हो, वे सभी अंको को प्रत्येक पेज पर लिख दिए, बायीं तरफ प्रत सूत्रांक और 'दीपरत्न' सूत्रांक लिख दिए, ऊस प्रतमें कोई विशेष विषयवस्तु हो, अध्ययनादि की सूचना हो या मुद्रणदोष हो तो उसे नीचे फूटनोट में लिख दिए | बाद में मल्टीकलर में वो सब मेटर net पे रख दिया | आप इसे इंटरनेट पर '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है | मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books (1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य... Page 17 of 36 |...कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Folder - 15 आयारो मूलं एवं वृत्तिः आगमसूत्राणि सटीकं 1 (प्रताकार) Net म quement an नमो नमो निम्मलदंसणस्स संक मनि दीपरत्नसागर (M.COM Ph.D) कुल किताबें ⇒51 भाषा - प्राकृत, संस्कृत कुल पृष्ठ 17992 इस पन्नरसवे फोल्डर में हमने 51 प्रकाशनों को सम्मिलित किया है जिस में 45 आगम, 2 वैकल्पिकआगम, 3 पयन्नाओ की टीका और कल्प ( बारसा) सूत्र है पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी ने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, भाष्य, निर्युक्ति आदि भी संपादित किए है । हमने सोचा की वो प्रत/ पोथीयुग था, अब पुस्तक- युग है, वो 'प्रिन्टिंग' का ज़माना था अब 'इंटरनेट' की बोलबाला है, हमने सोचा चलो फिर इस प्रतो को A-4 साईझ के पुस्तक रूपमें तबदील करके, इन की उपयोगिता बढ़ाकर Net publication के रूप में रख दे | फिर हमने एक विशेष फोर्मेट बनाया, ऊस के बिच में मूल प्रतके एक एक पृष्ठ अलग-अलग रख दिए. फिर जो आगम संपादित हो रहा हो, उसके प्रत्येक पेज पर ऊस आगम का क्रम आगम का नाम, आगम का प्रकार, आगमप्रकार का क्रम हमने लिख दिए, ऊस लाइन के नीचे ऊस आगम का जो श्रुतस्कंध, अध्ययन, उद्देश, सूत्र/गाथा, निर्युक्ति आदि उस पेज पे चल रहे हो, वे सभी अंको को प्रत्येक पेज पर लिख दिए, बायीं तरफ प्रत सूत्रांक और 'दीपरत्न' सूत्रांक लिख दिए, ऊस प्रतमें कोई विशेष विषयवस्तु हो, अध्ययनादि की सूचना हो या मुद्रणदोष हो तो उसे नीचे फूटनोट में लिख दिए । बाद में मल्टीकलर में वो सब मेटर net पे रख दिया | आप इसे इंटरनेट पर '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | ये एक net-publication है जिसे कोई भी फ्री डाउनलोड कर शकता है | मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com . कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Mobile: +91-9825967397 दीपरत्नसागर की 585 साहित्य....... Page 18 of 36 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स सलिलानमःबुमाथि Folder - 16 सवृत्तिक आगम सूत्राणि 1 कुल किताबें 740 भाषा-प्राकृत, संस्कृत कुल पृष्ठ 18460/ इस सोलहवे फोल्डर में हमने 40 प्रिन्टेड प्रकाशनों को सामिल किया है जिस में 45 आगम, 2 वैकल्पिकआगम, 3 पयन्नाओ की टीका और कल्प(बारसा)सूत्र है पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी ने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, भाष्य, नियुक्ति आदि संपादित किए है | हमने सोचा की वो प्रत/पोथी-युग था, अब पुस्तक-युग है, वो 'प्रिन्टिंग' का ज़माना था अब 'इंटरनेट' की बोलबाला है, हमने सोचा चलो फिर इस प्रतो को A-4 साईझ के पुस्तक-रूपमें तबदील करके, इन की उपयोगिता बढ़ाकर प्रिंटिंग और Net publication दोनों प्रकार से रख दे | म फिर हमने एक विशेष फोर्मेट बनाया, ऊस के बिच में मूल प्रतके एक एक पृष्ठ अलग-अलग रख दिए. फिर जो आगम संपादित हो रहा हो, उसके प्रत्येक पेज पर ऊस आगम का क्रम, आगम का नाम, आगम का प्रकार, आगमप्रकार का क्रम हमने लिख दिए, ऊस लाइन के नीचे ऊस आगम का जो श्रुतस्कंध, अध्ययन, उद्देश, सूत्र/गाथा, नियुक्ति आदि उस पेज पे चल रहे हो, वे सभी अंको को प्रत्येक पेज पर लिख दिए, बायीं तरफ प्रत सूत्रांक और 'दीपरत्न' सूत्रांक लिख दिए, ऊस प्रतमें कोई विशेष विषयवस्तु हो, अध्ययनादि की सूचना हो या मुद्रणदोष हो तो उसे नीचे फूटनोट में लिख दिए | वो सब मेटर प्रिन्टेड एवं इंटरनेट दोनों रूप से प्रकाशित कर दिए | आप इंटरनेट पर '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | ये प्रिन्टेड एवं इंटरनेट दोनों तरह से उपलब्ध है, इंटरनेट से कोई भी इसे फ्री डाउनलोड कर के भी प्राप्त कर शकता है | - मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com Page 19 of 36 | ....कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय दीपरत्नसागर की 585 साहित्य.... Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स सचूणिक-आगम-सुत्ताणि ७ Folder - 17 सचूर्णिक आगम सूत्ताणि कुल किताबें 7 8 भाषा-प्राकृत, संस्कृत कुल पृष्ठ 2760 इस सत्तरहवे फोल्डर में हमने 8 प्रिन्टेड प्रकाशनों को सामिल किया है जिसमें हमने आचार, सूत्रकृत, आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, नन्दी और अनुयोगद्वार ये सात आगमो की चूर्णियो को आठ पुस्तकोंमें प्रिन्ट करवाया है | पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी ने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, भाष्य, नियुक्ति आदि संपादित किए है | हमने सोचा की वो प्रत/पोथी-युग था, अब पुस्तक-युग है, वो 'प्रिन्टिंग' का ज़माना था अब 'इंटरनेट' की बोलबाला है, | हमने सोचा चलो फिर इस प्रतो को A-4 साईझ के पुस्तक-रूपमें तबदील करके, इन की उपयोगिता बढ़ाकर प्रिंटिंग और Net publication दोनों प्रकार से रख दे | फिर हमने एक विशेष फोर्मेट बनाया, ऊस के बिच में मूल प्रतके एक एक पृष्ठ अलग-अलग रख दिए. फिर जो आगम संपादित हो रहा हो, उसके प्रत्येक पेज पर ऊस आगम का क्रम, आगम का नाम, आगम का प्रकार, आगमप्रकार का क्रम हमने लिख दिए, ऊस लाइन के नीचे ऊस आगम का जो श्रतस्कंध, अध्ययन | उद्देश, सूत्र/गाथा, नियुक्ति आदि उस पेज पे चल रहे हो, वे सभी अंको को प्रत्येक पेज पर लिख दिए, बायीं तरफ प्रत सूत्रांक और 'दीपरत्न' सूत्रांक लिख दिए, ऊस प्रतमें कोई विशेष विषयवस्तु हो, अध्ययनादि की सूचना हो या मुद्रणदोष हो तो उसे नीचे फूटनोट में लिख दिए | वो सब मेटर प्रिन्टेड एवं इंटरनेट दोनों रूप से प्रकाशित कर दिए | आप इंटरनेट पर '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | G ये प्रिन्टेड एवं इंटरनेट दोनों तरह से उपलब्ध है, इंटरनेट से कोई भी इसे फ्री डाउनलोड कर के भी प्राप्त कर शकता है | - मुनि दीपरत्नसागर |Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] | Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com 50/397 दीपरत्नसागर की 585 साहित्य..... | Page 20 of 36 |......कृतिया के 31 फोल्डसे का परिचय। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 सवृत्तिक आगम-सूत्राणि-२२ आगम-04 भगवतीवृत्ति: e-सामसम्ममा m ahet.nार नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder - 18 सवृत्तिक आगम सूत्राणि- 2 किताबें 7 8 भाषा-प्राकृत, संस्कृत कुल पृष्ठ 2656 इस अट्ठारहवे फोल्डर में हमने 8 प्रिन्टेड प्रकाशनों को सामिल किया है जिस में हमने भगवती, आवश्यक, नन्दी और अनुयोगद्वार ये चार आगमो की वृत्तियो को सात प्रतोमें प्रिन्ट करवाया है और आठवीं प्रत कल्पसूत्र सुबोधिका वृत्ति की है | म पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी ने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, भाष्य, नियुक्ति आदि संपादित किए है | हमने सोचा की वो प्रत/पोथी-युग था, अब पुस्तक-युग है, वो 'प्रिन्टिंग' का ज़माना था अब 'इंटरनेट' की बोलबाला है, हमने सोचा चलो फिर इस प्रतो को A-4 साईझ के पुस्तक-रूपमें तबदील करके, इन की उपयोगिता बढ़ाकर प्रिंटिंग और Net publication दोनों प्रकार से रख दे| & फिर हमने एक विशेष फोर्मेट बनाया, ऊस के बिच में मूल प्रतके एक एक पृष्ठ अलग-अलग रख दिए. फिर जो आगम संपादित हो रहा हो, उसके प्रत्येक पेज पर ऊस आगम का क्रम, आगम का नाम, आगम का प्रकार, आगमप्रकार का क्रम हमने लिख दिए, ऊस लाइन के नीचे ऊस आगम का जो श्रुतस्कंध, अध्ययन, | उद्देश, सूत्र/गाथा, नियुक्ति आदि उस पेज पे चल रहे हो, वे सभी अंको को प्रत्येक पेज पर लिख दिए, बायीं तरफ प्रत सूत्रांक और 'दीपरत्न' सूत्रांक लिख दिए, ऊस प्रतमें कोई विशेष विषयवस्तु हो, अध्ययनादि की सूचना हो या मुद्रणदोष हो तो उसे नीचे फूटनोट में लिख दिए | वो सब मेटर प्रिन्टेड एवं इंटरनेट दोनों रूप से प्रकाशित कर दिए | आप इंटरनेट पर '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | ये प्रिन्टेड एवं इंटरनेट दोनों तरह से उपलब्ध है, इंटरनेट से कोई भी इसे फ्री डाउनलोड कर के भी प्राप्त कर शकता है | - मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books (1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य..... Page 21 of 36 | कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स आगम-संबंधी-साहित्य आगामीय-मुक्काति-पादि Mmmateurtamam mar aman-in Folder - 19 आगमीय साहित्य विशेष कुलकिताबें 7 4 भाषा-प्राकृत, संस्कृत कुलपृष्ठ 1048 इस अट्ठारहवे फोल्डर में हमने 8 प्रिन्टेड प्रकाशनों को सामिल किया है जिस में आगमिय सुक्तावली, ऋषिभाषित, अंगसूत्र--उपांग-प्रकीर्णकसूत्र--नन्दी आदि सूत्र एवं गाथादि अनुक्रम, अंग-उपांग-प्रकीर्णक-नन्दी आदि सूत्रो का विषयानुक्रम को हमने चार प्रतोमें प्रिन्ट करवाया है | पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी ने आगमो की वृत्ति, | चूर्णि, भाष्य, नियुक्ति आदि संपादित किए है | हमने सोचा की वो प्रत/पोथी-युग था, अब पुस्तक-युग है, वो 'प्रिन्टिंग' का ज़माना था अब 'इंटरनेट' की बोलबाला है, हमने सोचा चलो फिर इस प्रतो को A-4 साईझ के पुस्तक-रूपमें तबदील करके, इन की उपयोगिता बढ़ाकर प्रिंटिंग और Net publication दोनों प्रकार से रख दे| फिर हमने एक विशेष फोर्मेट बनाया, ऊस के बिच में मूल प्रतके एक एक पृष्ठ अलग-अलग रख दिए. फिर जो आगम संपादित हो रहा हो, उसके प्रत्येक पेज पर ऊस आगम का क्रम, आगम का नाम, आगम का प्रकार, आगमप्र क्रम हमने लिख दिए, ऊस लाइन के नीचे ऊस आगम का जो सूत्र/गाथा या 'अ'कारादि अनुक्रम का मूल अक्षर इत्यादि जो भी उस पेज पे चल रहे हो, वे सभी अंको को प्रत्येक पेज पर लिख दिए, बायीं तरफ प्रत सूत्रांक और 'दीपरत्न' सूत्रांक लिख दिए, ऊस प्रतमें कोई विशेष विषयवस्तु हो या अध्ययनादि की सूचना हो तो उसे नीचे फूटनोट में लिख दिए | वो सब मेटर प्रिन्टेड एवं इंटरनेट दोनों रूप से प्रकाशित कर दिए | आप इंटरनेट पर '' खोलकर, search में जा कर Deepratnasagar लिखिए और पाइए मेरे सभी प्रकाशन 'टोटल फ्री' | ये प्रिन्टेड एवं इंटरनेट दोनों तरह से उपलब्ध है, इंटरनेट से कोई भी इसे फ्री डाउनलोड कर के भी प्राप्त कर शकता है | - मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] | Mobile: +91-9825967397 ___Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य...... | Page 22 of 36 | .....कृतिया के 31 फोल्डर्स का परिचय। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स वाचार्यसूत्रणा el Folder - 20 तत्त्वात्यास साहित्यprinti कुल किताबें 913 कुल पृष्ठ 2089 भाषा- गुजराती, हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, इंग्लिश अधिगम *અભિનવ ટીકા easમુનિદીપરત્ન સાગર तत्त्वार्थसूत्र प्रबोधटीका अध्याय-1, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र अभिनवटीका अध्याय 1-10, तत्त्वार्थसूत्रना आगम-आधार-स्थानो, [13] तत्त्वार्थसूत्र के 84 प्रकाशनों का संपुट [1] तत्त्वार्थसूत्र प्रबोधटीका:- इस किताब में सिर्फ अध्याय-1 का दशांगी विवरण है [2] तत्त्वार्थाधिगमसूत्र अभिनवटीका:- इसमें प्रत्येक अध्याय की अलग-अलग किताब बनाकर 10 पुस्तकों में 10 अध्याय print किए है । इन दश भागोंमें तत्त्वार्थसूत्र का अति विस्तृत विवेचन है, जिसमें सूत्र-हेतु, मूलसूत्र, सूत्र-पृथक्, सूत्रार्थ, शब्दज्ञान, अनुवृत्ति, अभिनवटीका, सूत्र-संदर्भ, सूत्र-पद्य, सूत्र-निष्कर्षः ये दश विभाग है प्रत्येक अध्याय के अंतमें सूत्र-क्रम, अ-कारादि-क्रम, श्वेतांबर-दिगंबर पाठभेदादि परिशिष्ठ है और दशवें अध्याय के अंतमें शब्दसूची और विषयसूची दिए है | [3] तत्त्वार्थसूत्रना आगमआधारस्थानो' संशोधन कक्षा की इस किताब में तत्त्वार्थ के सभी सूत्रका मूल-आगम संदर्भपाठ और संदर्भस्थल निर्देश है, श्वेतांबर-दिगंबर पाठभेद तालिका है | इसकी मदद से तत्त्वार्थसूत्र के किसी भी सूत्र का आगमपाठ खोज शकते है 'तत्त्वार्थसूत्र के 84 प्रकाशनों का संपुट' ये 13 पेज की एक पुस्तिका है । जिसमें हमारी बनाई हुई 'तत्त्वार्थसूत्र' संबंधी DVD का परिचय है, फिर भी अगर कोई इस पुस्तिका को संदर्भ समझ कर उपयोग करे तो की मदद से 72 बुक्स और 12 Articles को पढ़ शकते है | इस DVD में गुजराती, हिन्दी इंग्लिश, संस्कृत और अन्य-भाषामें श्वेतांबर, दिगंबर और अन्यकर्तृक कृतियाँ है, जिसमें मूलतत्त्वार्थसूत्र, सूत्र का अर्थ, सूत्र पर किया गया विवेचन, सूत्र के संबंधमें हुए अन्य सर्जन प्राप्त होते है | इस डीवीडी में हमने तत्त्वार्थ सूत्र के 84 प्रकाशनो के 27930 पेजका संकलन किया है | समग्र विश्व में ऐसा और कोई संकलन नहीं मिलेगा | मुनि दीपरत्नसागर Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com ____दीपरत्नसागर की 585 साहित्य..... Page 23 of 36 [...कृतियों के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder - 21 સુત્ર-અભ્યાસ સાહિત્યerinted જન એડ્યુકેશનલ સર્ટીક્િટ કોર્સ પ્રતિક્રમણમાં watવ વિવારને कुलकिताबें +5 भाषा- गु०प्रा०सं० कुलपृष्ठ 1428 | अनिMNIOR इस इक्कीसवे फोल्डर में पाँच किताबे हैं । प्रतिक्रमण सूत्र अभिनव विवेचन भाग १ से ४, चार किताबें + जैन एड्युकेशनल सर्टिफिकेट कोर्स- १ किताब | [१-४] प्रतिक्रमण सूत्र अभिनव विवेचन ये चार किताबों को मिलाकर हमने दो प्रतिक्रमण सूत्र का विवेचन लिखा है । अभिनवविवेचन में मैंने आगम और पूर्वाचार्य रचित ग्रंथो का सहारा लेकर, मूलसूत्र के महत्त्वपूर्ण शब्द, प्रत्येक वाक्य अथवा गाथाओं के प्रत्येक चरण का अति विस्तृत विवेचन किया है, इसमे अनेक संदर्भ साहित्य और आगमो के साक्षी-पाठ दे दिए है | यहाँ हमने सप्तांग विवरण किया है । (१) सूत्र का विषय, (२) दो प्रतिक्रमण सूत्रों के मूल पाठ, (३) सूत्र का अर्थ, (४) सूत्र में आए हुए शब्दों का ज्ञान, (५) १०० से ज्यादा संदर्भ ग्रन्थों का आधार लेकर किया गया विवेचन, (६) विशेष कथन एवं (७) सूत्रनोंध । | इसके अलावा अंत में हमने दो प्रतिक्रमण के गुजराती, संस्कृत, प्राकृत शब्दों की एक सूचि, उनके सूत्रक्रम एवं स्थान निर्देश के साथ तैयार करके दिये हैं । इसकी लेखन प्रद्धत्ति अति आधुनिक शिक्षण प्रणालि को सामने रखकर स्वीकृत की गई हैं । जिस से प्रतिक्रमण सूत्रों के प्रत्येक शब्द का पूरा एवं विशद् बोध प्राप्त हो सकता है। [9] जैन एड्युकेशनल सर्टीफिकेट कोर्स- यह धार्मिक अभ्यास एवं उसकी Exam के लिए तैयार किया गया पुस्तक है । इस में हमने ६ श्रेणी तैयार की है । यह छह धोरण पूर्ण करनेवालों को पंच प्रतिक्रमण सूत्र का, सामायिक-वंदन-चैत्यवंदन-प्रतिक्रमणस्नात्र पढ़ाना, पौषध लेना-पारना, पडिलेहण-देववंदन इत्यादि सभी विधियों का, २४ तीर्थंकरों के २० बोल, उपयोगी स्तुति-चैत्यवंदन-स्तवन-थोय के जोड़े सज्झाय का, छोटीछोटी ३० कथाओं का, किंचित् जैन भूगोल का, १८० प्रश्नों में धर्म-बोध एवं सूत्र संबंधी प्रश्नों का इत्यादि बहोत सारा ज्ञान प्राप्त होता है, फिर भी सिर्फ १७० पृष्ठों में ये समाविष्ट हैं। - मुनि दीपरत्नसागर.. Muni DeepratnaSagar's 585 Books (1,03,130 Pages) Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य......| | Page 24 of 36....कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स મુનિ દીપરતનસાગર Folder - 22 व्याकरण साहित्य print सनिय हेम अधुप्रड़िया-२ कुल किताबें 75 भाषा- संस्कृत, गुजराती कुल पृष्ठ 1048 | इस बाईसवे फोल्डर में व्याकरण संबंधी पाँच ग्रंथो को स्थान दिया है, जिस में चार ग्रंथों का एक संपूट अभिनव'हेम'लघुप्रक्रिया के नाम से है और पाँचवा पुस्तक 'कृदंतमाला' नाम से मुद्रित हुआ है । जो की क्राउन 4 अर्थात् 7.5x10 की साईझ में लेटर-प्रेस में कम्पोझ करवा के print करवाया है। [1-4] अभिनव'हेम'लघुप्रक्रिया, महोपाध्याय विनयविजयजी कृत् 'लघुप्रक्रिया' पर सिद्धहेम-शब्दानुशासन तथा उससे संबंधित बृहत् वृत्ति, बृहत् न्यास, हैमप्रकाश महाव्याकरणम्, लिंगानुशासन, मध्यमवृत्ति-अवचूरी, न्यायसंग्रह आदि अनेक संदर्भग्रंथो से तैयार किया हुआ 1000 से ज्यादा पेज का ये ग्रन्थ है, गुजराती भाषा के माध्यम से 'हेम'-संस्कृत व्याकरण (हैम-लघुप्रक्रिया) का सघन अभ्यास हो शके इस तरह मैंने इस ग्रन्थ का सर्जन किया है | इस ग्रन्थ की विशेषता यह है → प्रत्येक सूत्रो को सात विभागो में विभाजित करके रखे है, जैसे की सूत्र, सूत्र-अर्थ, वृत्ति, वृत्यर्थ, अनुवृत्ति, विवेचन आदि है | साथ में मैंने अकारादि-सूत्रक्रम, सिद्धहेम-सूत्रक्रम, सन्दर्भ साहित्य, शब्द-रूपमाला, धातु-रूपमाला आदि प्रचुर प्रमाणमें परिशिष्ठ भी दिए है | संस्कृत व्याकरण का स्वयं अभ्यास करने के लिए ये उत्तम प्रकाशन है। व्याकरण संबंधी हमारा पांचवा प्रकाशन है 'कृदंतमाला', जिसमें हमने 125 धातु (क्रियापदो) के 23 प्रकारो से होनेवाले कृदंतो का एक कोष्टक बनाके दिया है | दो 'संस्कृत-बुक' तक अथवा 'हैम-लघुप्रक्रिया के अभ्यास में आते हुए सभी धातुओं के कृदंतो के तैयार रूप यहाँ प्राप्त होते है | - मुनि दीपरत्नसागर | Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] | Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य..... Page 25 of 36 [...कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ અભિનવ ઉપદેશ પ્રસાદ-૨ મુનિ દીપર સા नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder - 23 व्याम्यान साहित्य print | कुल किताबें 4 भाषा- गुजराती कुल पृष्ठ 1218 નવપદ શ્રીપાલ મુનિ દીપનસા इस तेईसवें फोल्डर में व्याख्यान विषयक चार ग्रंथ पाए जाते हैं, ये चारो मुद्रित प्रकाशन है → [13] खलिनवहेशप्रा साह, [4] नवयह- श्रीपाल | ये चारो किताबे 8.75 x 5.75 की साईझ में मुद्रित करवाई है | 'अभिनव उपदेश प्रासाद' स्वतंत्र व्याख्यानमाला है, हमने तीन विभागों में इस व्याख्यान श्रेणी का प्रकाशन करवाया है, 'मन्नह जिणाणं' नामक सज्झाय में निर्दिष्ट श्रावक के 36 कर्तव्यो को समझाने के लिए हमने 108 व्याख्यानों की एक शृंखला का सर्जन किया है, जिसमें प्रत्येक व्याख्यान का आरंभ एक श्लोक से होता है । सभी व्याख्यानों में जैनेतर प्रसंग, कर्तव्य की तात्त्विक समझ, जैन कथा/दृष्टांत, कर्तव्य के अनुरूप स्तवनादि की पंक्ति इत्यादि की सुंदर संकलना की गई है । प्रत्येक व्याख्यान Fix 10-10 पृष्ठों में विभाजित है । आज तक इस प्रकार से कोई भी व्याख्यान शृंखला प्रकाशित नहीं हुई । I जिन साधु-साध्वी का क्षयोपशम मंद हो या किसी कारण से वे शास्त्रीय व्याख्यान देने में असमर्थ हो, तो उनके लिए ये व्याखान- संग्रह पूरा चातुर्मास बिताने के लिए एक बड़ा तोहफा है | चौथा व्याख्यान-प्रकाशन 'नवपद श्रीपाल' है, इस का सर्जन शाश्वती ओळी के व्याख्यान के लिए हुआ था, जिस में हमने पूरा श्रीपाल चारित्र और अरिहंता नव- पदो का अलग-अलग विवेचन किया है अर्थात् कथा और तत्त्व का संकल करके नव व्याख्यानों की एक शृंखला बनाई है, जो ओळीजी की आराधना के प्रवचन एवं नवपदों को समझने के साथ-साथ पूरे श्रीपाल चरित्र का सार जानने में उपयोगी है | मुनि दीपरत्नसागर.. Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com Mobile: +91-9825967397 दीपरत्नसागर की 585 साहित्य Page 26 of 36 .. कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ο વિતાગ સ્તુતિ સંચય મુનિ દીપરત્નસાગર नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder 24 જિનભક્તિ સાહિત્ય Printed | कुल किताबें 9 भाषा- गु०हि०सं० कुलपृष्ठ 1196 L शत्रुंजय भक्ति ईस चोबीसवे फोल्डरमें 9 प्रिंटेड किताबे है, 5 गुजरातीमें, 4 हिन्दी में [1] गुजराती में [1] यैत्यवंघ्न भाजा, [2] वितराग स्तुति, [3] शत्रुभ्य लति, [4] सिद्धायत नो साथी, [5] यैत्य परिपाटी और [2] हिन्दी में [13] चैत्यवंदन संबंधी 3, [4] शत्रुंजय भक्ति ***यहाँ चैत्यवंदन की किताबो में 779 चैत्यवंदनो का संग्रह है, जिस में पर्वदिन तथा पर्वतिथि के चैत्यवंदन है, चोवीस जिन की चौविसी है, जिसमे दो संस्कृत चौविसी भी है, विविध तीर्थोमें बोल शके ऐसे तथा तीर्थंकरसंबंधी विविध बोलयुक्त चैत्यवंदन भी है | • गुजराती में एक ही किताब में ये संग्रह है, हिन्दी में इनके लिए 3 किताबे है चैत्यवंदनपर्वमाला. चै०चौविसी, चै०तीर्थ-जिन विशेष | वीतरागस्तुति में ( 900 गुजराती + 251 संस्कृत) 1151 भाववाही स्तुतियाँ है | जिसमे 24 तीर्थकर के सामने बोल शके ऐसी 10-10 स्तुतियाँ एवं विविध तीर्थोंमें बोलने लायक स्तुतियाँ भी है, दुष्कृतगर्हा और शुभभावना की स्तुतियाँ भी है, ऐसी अनेक विविधता है | 'शत्रुंजय - भक्ति में शत्रुंजय की यात्रा के वक्त तलेटी, शांतिनाथ, रायणपगला, पुंडरीक स्वामी, आदीश्वरदादा और घेटीपगला के सामने उन स्थानों के अनुरूप ऐसी स्तुतियाँ, चैत्यवंदन, स्तवन, थोयका ये सबसे पहला संग्रह था । साथमे ऊन स्थानो की फोटो भी है| 'सिद्धायत नो साथी' किताबमें 'शत्रुंजयभक्ति तो पूरी सामील कर ही दी है, साथमें 'सिद्धाचल की भावयात्रा' और 'सिद्धाचल' के उपरोक्त छह स्थानों के अनुरूप दुसरे स्तव भी जोड़ दिए है 'चैत्यपरिपाटी' पुस्तिका में पालडी, अमदावाद के 42 चैत्यो की यात्रा है, जिस में आप को मीलेगी प्रत्येक जिनालय में बोलने के लिए अलग-अलग 3-3 स्तुतियाँ, ताँकि प्रत्येक जिनालयमें सब साथ मिलकर परमात्मभक्ति कर शके - मुनि दीपरत्नसागर ... Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com Mobile: +91-9825967397 दीपरत्नसागर की 585 साहित्य Page 27 of 36 कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदसणस्स Folder - 25 I[TI-IFEMી witમ HIII III व દીક્ષા-યોગાદિ વિધિ साहित्य Printed कुलकिताबें 3 भाषा-गुज० सं० प्रा० कुलपृष्ठ 296 મુનિ દીપરત્નસાગર इस पच्चीसवें फोल्डर में हमने 'विधि साहित्य' को रक्खा है, जिस में हमारी तिन किताबे है, जो गुजराती+[संस्कृत और प्राकृत भाषा में है | [1] Ell-योut al:- इस किताब में दीक्षाविधि, आवश्यकादि योगविधि, संपूर्ण बड़ी-दीक्षाविधि, पद-प्रदानविधि इत्यादि विधियों का संग्रह है | यह शास्त्रीय विधि को हमने इस तरह संकलित किया है कि विधि करवानेवाले कोई भी पूज्य श्री किताब के पेज आगे-पीछे किए बिना ही Direct विधि करवा सकते है । ऐसा ये विशिष्ट प्रकाशन है। ये किताब मैंने A-5 अर्थात् 8.75 x 5.75 की साईझ में मुद्रित करवाई है । [2] साधु-साध्वी धर्म विप:- ये किताब पंचांग जैसे छोटे कद में print करवाई है, साथ रखनी सरल है, साधु-साध्वी के काळधर्म के वक्त साधु तथा श्रावको को करनेकी विधि का स्पष्ट विभाजन है और अगर कोई पालखी बनाना चाहे तो पालखी की फोटो भी अंतमें रख दिया है | ये किताब मैंने 5.75 x 4.25 की साईझ में मुद्रित करवाई है | [3] alQ संग्रह- १:- इस किताब में दीक्षा-योगादि विधि तो संकलित है ही, इसके अलावा कालिकयोग-विधि, काळग्रहण-विधि, पदप्रदान-विधि, पाटली-विधि, सज्झाय-विधि, तीर्थमाळ विधि आदि अनेक विधिओ को सरलता से कर शके और करवा शके ऐसी स्पष्ट प्रस्तुती के साथ बनी हुई ये किताब है | तदुपरांत व्रतोच्चारणादि उपयोगी बातों का समावेश हुआ है। ये किताब मैंने A-5 अर्थात् 8.75 x 5.75 की साईझ में मुद्रित करवाई है | - मुनि दीपरत्नसागर... Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] | Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य...... Page 28 of 36... कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સમાધિ नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder - 26 माराधना साहित्य Printed कुल किताबें +3 भाषा- गुजराती कुलपृष्ठ 434 શ્રાવક અંતિમ આરાઘન 리 भुनिटीपनaste 'आराधना साहित्य' इस छव्विसवे फोल्डर में हमारी तिन किताबे गुजराती में है [1] समाधिम२९:- अंत समय और भावि-गति सुधारने के लिए मरण के वक्त चित्त समाधि बनी रहे ऐसी आराधना विधि, आराधना सूत्रो, आराधना पद्यो, पूर्व ऋषि-मुनिओ द्वारा की गई अंतिम आराधना, वगेरैह सात अलग-अलग विभागों में विभाजित ऐसा 350 पृष्ठोका दळदार पुस्तक, जो बारबार पठनीय है | 'पुन्यप्रकाश नु स्तवन जिस में अतिचार-आलोचना, व्रत-ग्रहण, जीव-खामणा आदि दश अधिकार का वर्णन आता है उसको इस किताब में संक्षिप्तमें और विस्तारमें दोनों प्रकार से स्थान दिया गया है, इस का पठन करते हुए कोई भी व्यक्ति अपने आप अंत समय सुधारने की आराधना अच्छी तरह कर शकता है | ये किताब मैंने A-5 अर्थात् 8.75 x 5.75 की साईझ में मुद्रित करवाई है। [2] साधु-साध्वी सिम साराधना:- साधु-साध्वी को अंतिम समय सुधारने के लिए नित्य करने योग्य ऐसी ये आराधना है, मूल प्राकृत और संस्कृतमें ग्रंथस्थ विधि को मैंने सरल गुजराती में प्रस्तुत किया है, इस छोटी किताब का कद पंचाग जैसा होने से साथ रखना आसान है | [3] श्राव अंतिम माराधना:- श्रावक-श्राविका को अंतिम समय सुधारने के लिए नित्य करने योग्य ऐसी ये आराधना है, मूल प्राकृत और संस्कृत में ग्रंथस्थ विधि को मैंने सरल गुजराती में प्रस्तुत किया है, इस छोटी किताब का कद पंचाग जैसा होने से साथ रखना आसान है | - मुनि दीपरत्नसागर... Muni DeepratnaSagar's 585 Books (1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य..... Page 29 of 36 ..कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HEALTH नमो नमो निम्मलदसणस्स Folder - 27 परियय साहित्य Printed | कुल किताबें -4 भाषा- गुजराती,हिन्दी कुलपृष्ठ 220 मानहायरसागर 'परिचय साहित्य' इस सत्ताईसवे फोल्डरमें हमारी चार किताबे गुजराती में है [1] सम संक्षिप्त परियय:- ईस किताबमें हमने ४५ आगमो का अति संक्षिप्त परिचय करवाया है, एक तरफ़ यन्त्रमे आगमपुरुष का चित्र है और दुसरी तरफ़ उसी आगम का परिचयात्मक निरुपण है, आगम पुरुष का परीचय भी हमने यहां दे दिया है | 96 पृष्ठो में और ४ कलरमे ओफ़सेट परिणत किया हुआ ये एक बहोत सुन्दर पुस्तक है | [2] साहित्य-यात्रा २ 1 थी 31 नो परियय :- प्रस्तुत पुस्तकमें मेरी आज तक की साहित्ययात्रा के प्रिन्टेड तथा इंटरनेट प्रकाशनों के 31 फोल्डरोमें रहे हुए ५८५ पुस्तकों का ढूंक परिचय है | जिसमे पुस्तक का चित्र, संपूट का नाम, पुस्तक का कद, पुस्तक की भाषा, पुस्तको की संख्या और पुस्तक का विषय लिखा है | - [3] हीपरत्नसागरनी 585 साहित्य प्रतियो_word_2017:- इस पुस्तकमें मेरी साहित्य-यात्रा का वर्ष-अनुसार एवं भाषा-अनुसार टेबल बनाया है तथा 1,03,130 पृष्ठोमें रहे हुए मेरे 585 पुस्तको का संक्षिप्त परिचय है। [4] [ीपरत्नसा२नी 585 साहित्य कृतिया_Excl_2017:- इस पुस्तकमें मेरी साहित्य-यात्रा के 1,03,130 पृष्ठोमें रहे हुए मेरे 585 पुस्तको की पूरी लिस्ट है, जो अलग-अलग विषयानुसार बनाए गए 31 फोल्डरोमें विभाजित कर के रक्खी है और ३२वा एक एक्स्ट्रा फोल्डर है जिसमे मेरे लिए लिखे गए 5 आर्टिकल्स की सूची है। * ये चारो किताब A-4 अर्थात् 8.5 x 11.0 इंच की साईझमें प्रकाशित करवाई है जो net पर तो उपलब्ध है ही, प्रिन्टेड रूप से भी ये किताब प्राप्त हो शकती है - मुनि दीपरत्नसागर.. Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] | Mobile: +91-9825967397 67397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य..... Page 30 of 36 ...कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ઋષભદેવ પરિચય" મુનિશ્રી દીપરત્નસાગર M.Com. M.Ed. PhD नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder – 28 तीर्थं४२ संक्षिप्त दृर्शन net कुल किताबें → 24 भाषा- गुजराती कुलपृष्ठ - 432 इस अट्ठाईसवें फोल्डरमें चोवीस तिर्थंकरो के विषयमे १८५ विगतो की जानकारी दी गयी है, जिसे 'तीर्थंकर - बोल संग्रह' भी कहे शकते है। ये २४ किताबे 8.5 x 11.0 की साईझ में प्रकाशित कर के इंटरनेट पर रक्खी है | हमने इस फोल्डर का नाम 'तीर्थंकर संक्षिप्त दर्शन' रक्खा है, क्यों की प्रत्येक तीर्थंकर संबंधी अलग-अलग १८५ वस्तुओ का यहाँ संग्रह किया गया है | जैसे की:तीर्थंकरका क्रम, नाम, कल्याणक तिथि, राशि, नक्षत्र, काल आदि, भवसंक्ख्या, पूर्व भव, पूर्वोत्तरभवस्थान, तीर्थंकरनामकर्मबांध के कारण, १४ स्वप्न, माता-पितादि के नाम, ५६ दिक्कुमारी का आगमन एवं कार्य, ६४ इंद्र द्वारा अभिषेक एवं कार्य, लंछन, गोत्र, वंश, शरीरलक्षण, संघयण, संस्थान, गण, योनी, रूप, वर्ण, बळ, उंचाई, आहार, विवाह, भगवंत के नाम का सामान्य एवं विशेष अर्थ, दीक्षा आदि का तप, दीक्षाका तप-शिबिका - सहवर्ती-वन-वृक्ष इत्यादि अनेक विगतो को शामिल किया है | तीर्थंकर विषयक ये सभी माहिती एकत्रित करने के लिए हमने प्रवचन सारोद्धार, सप्ततिशतस्थानक, समवायआगमसूत्र, तिर्थोद्गालिकप्रकीर्णकसूत्र, आवश्यक-निर्युक्ति, आवश्यक-वृत्ति, त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरित्र, चउपन्नमहापुरुसचरियं आगम कथानुयोग आदि शास्त्र/ग्रंथो का संदर्भ चुना है | तिर्थंकरो के विषयमे कहीं कहीं पाठान्तर भी देखने को मिले, जिसकी नोंध कोई कोई स्थान पर हमने की है जैसे की अजितनाथ के गणधरो की संख्या सप्ततिशतस्थानकमे ९५ बताई है, जब की समवाय सूत्रमे ये संख्या ९० बताई है, भगवंत मल्लिनाथ के दीक्षादिन, केवलज्ञानदिन, केवलज्ञानसमय के विषयमे पाठान्तर तो आगममे भी देखे गए है | मुनि दीपरत्नसागर.. Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य ....... Page 31 of 36 .. कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नम શ્રી પાર્શ્વ પદ્માવતી મહાપૂજન વિધિ grad મુનિ દીપરત્નસાગર नमो नमो निम्मलदंसणस्स Mobile: +91-9825967397 Folder 29 यू४न साहित्य Printed कुल किताबें → 2 भाषा- गुजराती कुलपृष्ठ- 104 इस उन्तिसवे फोल्डर में पूजन की दो मुद्रित किताबें रक्खी हुई है → [1] ४५ आगम महायूनविधि इस किताब में दो दिन चलते हुए ऐसे 45 आगम महापूजन की विधि, श्री रूपविजयजी रचित 45 आगम पूजा, आगमो की जलपूजा, गंधपूजा आदि अष्टप्रकारी पूजा के लिए बनाये गए नए दोहे, 45 आगम यंत्र इत्यादि की अद्भूत संकलना की हुई है। विधिकारक की मदद बगैर अपने आप कोई भी व्यक्ति पूजन पढ़ा शके इस तरह ये किताब तैयार की हुई है । ये किताब मैंने A-5 अर्थात् 8.75 x 5.75 की साईझ में मुद्रित करवाई है | [2] पार्श्व पद्मावती पू४न विधि पूजन विधि की बहोत पुस्तिका प्रकाशित हुई है, हमने भी यहाँ कोई नई विधि को संकलित नहीं की है, यहाँ तो सिर्फ • आसानी से पूजन पढाया जा सके और विधिकारक को भी बुलाने की आवश्यकता न रहे इस तरह विधि को प्रस्तुत किया है | इस किताब में हमने पार्श्व- पद्मावती पूजन विधि की विशिष्ट संकलना की है, जलपूजा, गंधपूजा, आदि सभी पूजन के श्लोक, श्लोकार्थ, आवश्यक पूजन-सामग्री आदि अलग-अलग पेज पर मुद्रित करवाए है, प्रत्येक पूजन की सामग्री का लिस्ट भी अलग से लिख दिया है, पार्श्वनाथ की स्तुतियाँ, पद्मावती स्तोत्र और अंतमें शान्तिकलश के लिए बड़ीशांति भी छाप दी है । ये किताब मैंने A-5 अर्थात् 8.75 x 5.75 की साईझ में मुद्रित करवाई है | मुनि दीपरत्नसागर... Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] दीपरत्नसागर की 585 साहित्य....... Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com Page 32 of 36 कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ω શ્રાવકના બાર વ્રત ज नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder 30 थ्रडीए साहित्य Printed कुलकिताबें⇒10 भाषा- गुजराती, हिन्दी कुलपृष्ठ 570 યુનિ કીપરત્નસા इस तीसवे फोल्डर में हमने 10 किताब रक्खी है । वे इस प्रकार है → 1- योधडिया तथा होरानी अयभी समय र्शिका :- इस पुस्तिका में पुरे साल के 365 दिनों में प्रत्येक दिनों के 16 चोघडिए तथा 24 होरा के समय की गिनती करके टेबल बनाया है 2- महावाहना निमंहिर उपाश्रयाहि डिरेक्टरी:- इसमें अमदावाद के जिनालय, उपाश्रय, आयंबिलभवन, ज्ञानभण्डारादि की माहिती है| 3- नवकार मंत्र भय-नोंधपोथी:- जपसंख्या की नोंध के लिए छोटी डायरी बनाई है, जिसमें प्रत्येक माला का एक ऐसे 9000 खाने है | 4- यरित्र १ रोडभपनी नोंघपोथी- जपसंख्याकी नोंके लिए० જિનમંદિર-કપાશ્રય આદિ B-2-52-8 15- श्रावना पारव्रत तथा अन्य नियमो :- सरलता से बारहव्रत ले शके ऐसा स्पष्ट विभाजन, जयणा के लिए अलग खाने आदि से युक्त, व्रतग्रहण करनेके लिए सुन्दर पुस्तिका | 6 निवनपयांग:-तिथि, तारीख आदिके साथ नवकारसी से पुरिमड्ढ, कम्बलीकाल, पोरिसी समय, शाम दो घडी आदि गिनतीके साथ 1984 में निकाला गया सर्व प्रथम प्रकाशन | 7- मुनि दीपरत्नसागर की साहित्ययात्रा:- 'दीपरत्नसागर की साहित्ययात्रा' में 2013 तक हुए 491 पकाशनो का वर्णन है, वर्ष अनुसार और भाषा अनुसार दीपरत्नसागरजी की साहित्ययात्रा के बढते कदम और 24 फोल्डरमें समाविष्ट 491 किताबो की पूरी सूची है | 8- मुनि दीपरत्नसागरजी कि ५५५ साहित्य कृतियाँ_Word_2015 :- सन 2015 तक प्रकाशित हुए मेरे 555 प्रकाशनों का परिचय 25 फोल्डरोमें करवाया है तथा वर्ष अनुसार और भाषा अनुसार हुई मेरी साहित्य यात्रा का वर्णन भी है | 9- मुनि दीपरत्नसागरजी कि ५५५ साहित्य कृतियाँ_Excel_2015 :- सन 2015 तक प्रकाशित हुए मेरे 555 प्रकाशनोनी की सम्पूर्ण सूची यहाँ Excel प्रोग्राममें रक्खी है | 10- दीपरत्नसागरजी की साहित्य कृतियो के २५ फ़ोल्डर्स का परिचय:- मेरे 555 प्रकाशनों को मैंने जिन 25 फोल्डरोमें विभाजित किया है उन 25 फोल्डरो का यहाँ परिचय कराया है - मुनि दीपरत्नसागर.. Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com .. कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय दीपरत्नसागर की 585 साहित्य....... Page 33 of 36 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ο કારણ કે "તે" સાધુ હતા પ વ્યાખ્યાન શ્રેણી મુનિ દીપરત્નસાગરજી नमो नमो निम्मलदंसणस्स Folder - દીપરત્નસાગરના લઘુશોધનિબંધ कुल 5 भाषा- गुजराती कुलपृष्ठ 220 31 इस इकतीसवे फोल्डरमें मेरे 5 लघुशोधनिबंध गुजराती भाषामे है | वे इस प्रकार → 1- आगमना प्रार व्याम्याताओ- २८ पृष्ठोमें लिखा हुआ ये लघु शोध निबंध है जिसमे श्रमणकी व्याख्या, द्वादशांगीका अर्थ और उद्भव, 'आगम' शब्द का अर्थ और उस का वर्तमान स्वरुप, आगमोका व्याख्या-साहित्य और कर्ताओ का परिचय यहाँ करवाया है 2- आगमकालीन 'श्राव- श्राविडाओ' भवन ने वन- ३६ पृष्ठोमें लिखे हुए इस लघु-शोध-निबंधमें 'श्रावक', 1. श्रावक और धर्मश्रवण, 2. श्रावक और धर्मश्रद्धा, 3. श्रावक और तत्वजिज्ञासा, 4.श्रावक और चारित्रराग, 5. श्रावक और भगवद् विनय, 6 श्रावक और गौचरीभक्ति, 7.श्रावक और व्रत नियम आदि विषयो को दृष्टांत के साथ बताया है 3- ते साधु हता- 82 पृष्ठो में लिखा ये 'लघु व्याख्यान संग्रह है, इसमें 25 लघु कथाए है, प्रत्येक कथामे एक ही बात केन्द्रमे है, की पूर्वमे या पूर्वावस्थामे एक बार भी साधूत्व का स्वीकार किया हो तो भी उस जीव को कभी भी पुन: चारित्रराग की उत्पत्ति से फिर मार्गप्राप्ति और श्रमणत्व सुलभ होता है Mobile: +91-9825967397 4- श्रुत उपासडो खने साहित्य सन- 70 पृष्ठोमें लिखा हुआ ये 'लघु शोधनिबंध है, यहाँ आगमकालीन साहित्य और आगमेत्तर विवेचन साहित्य का सर्जन और उन साहित्य के सर्जक के विषयमे विस्तृत माहिती प्रस्तुत की गई है | निर्युक्ति, चूर्णि आदि आगम व्याख्या ग्रन्थ, प्राकृत और संस्कृत साहित्य- युग, विक्रम संवत १००१ से १३९९ तक अलग अलग युगोमे रचित साहत्य, रास-युग, जूनी गुजराती-युग आदि का वर्णन है 5- आगमनाध्-1- सिर्फ 4 पृष्ठो का शोधपत्र है, जिसमे आगम का अर्थ, द्वादशांगी उद्भव, मातृकापद, इंद्रभूति द्वारा द्वादशांगी रचना, द्वादशांगी - अनुज्ञा, आगमो के विभाग, द्वादशांगी-विच्छेद आदि तथा एक छोटी - कथा और वचनामृत समाविष्ट है । आगमो के 24 संदर्भ यहाँ साक्षिपाठ स्वरूपमे हमने लिख दिए है -मुनि दीपरत्नसागर.... Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] दीपरत्नसागर की 585 साहित्य..... Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com Page 34 of 36 .. कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ આ મુનિ જૈન ધર્મના મોબાઈલ એન્સાઈક્લોપીડિયા છે! नमो नमो निम्मलदसणस्स Extra Folder 'દીપરત્નસાગર વિશે લખાયેલા Sunicipadmaduveniley माटाइल्स - 5 भाषा-गुजराती इस Extra अथवा बत्तीसवे फोल्डरमें मेरे लिए अन्य विद्वानों द्वारा गुजराती भाषामे लिखे हुए 5 आर्टिकल्स है, जिसमे तीन आर्टिकल बड़े मेगेझीनमें और दो आर्टिकल्स अतिप्रसिद्ध गुजराती वर्तमानपत्रमें प्रगट हुए थे| वे इस प्रकार है 1- नधर्मना भोपाल मेन्साय तोडिया-'मुनि दीपरत्नसा॥२ * तारीख 15/03/2010 'चित्रलेखा' मेगेझीनमें कवर स्टोरी के रुपमे ये आर्टिकल प्रगट हुआ | श्री पार्थिव वोराने मुनि दीपरत्नसागर का साडे तीन घंटे का इन्टरव्यू ले कर ये आर्टिकल तैयार किया था, दो फोटोग्राफ्स के साथ तीन पेजमें छपा था 2- प्राचीन नभुनियानी 6४ी परंपर्नु त४स्वी अनुसंधान दीपरत्नसागर महा२।०४'- 'प्रबुद्धजीवन' नामक गुजराती मेगेझीनमें ये आर्टिकल ऑक्टोबर 2009में प्रसिद्ध हुआ | सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी के गुजराती के प्रोफेसर डॉ बिपिन आशरने पांच पेजमें तैयार किया, जिसमे मुनि श्री के पूर्वाश्रम अभ्याससे लेकर, साधू होने के बाद किये हुए साहित्य सर्जन-लेखन-अनुवाद आदि विगत एवं उन के मुनि-जीवन की कहानी शब्दांकित की है | 23- "प्युं छत स्यु' भुनि दीपरत्नसा॥२- 'गुजरातसमाचार' नामक अखबारमें मुनीन्द्र उपनाम से डॉ.कुमारपाल देसाईने ये आर्टिकल लिखा | दीपरत्नसागर का पूर्वाश्रम, वैराग्यमय कौटुम्बिक विरासत, ज्ञानकार्यो, अनेक जाप इत्यादि वैविधसज्ज लेख है | 4-हैन ज्ञानसा२ ना भा३२॥ २ 'मुनिहारत्नसा२'- 'सागरनु झवेरात नाम के मेगझीनमें 'जैन ज्ञान सागरना मोंघेरा रत्न' नाम से ये आर्टिकल पूज्य आचार्य श्री हर्षसागरसूरिजीम.सा.ने लिखा, जिसमे दीपरत्नसागर की साहित्य-सर्जन-यात्रा का वर्णन है 5- विश्वमा सौ प्रथम हुन सामनी १४राती मनुवाद- 'दिव्यभास्कर' नामक अखबारमें तारीख 5/8/2009 ये आर्टिकल प्रसिद्ध हुआ | गुजराती भाषा और जैन शासन के लिए सब से बड़ी गौरवप्रद घटना के रूपमें ये आर्टिकल लिखा गया था | -मुनि दीपरत्नसागर.. |Muni DeepratnaSagar's 585 Books [1,03,130 Pages] | Mobile: +91-9825967397 Email: jainmunideepratnasagar@gmail.com दीपरत्नसागर की 585 साहित्य.... - Page 35 of 36 ....कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - / / - HERE HEEEEEEE EEEEEE / / HANI S BERBELBURBELIHERBERALBERRBBBBBBBBBBBBBBBBBBBBBBBBBBBEDERERH नमो नमो निम्मलदंसणस्स दीपरत्नसागर की 585 साहित्य-कृतियाँ के 31 फोल्डर्स का परिचय समाप्त आगम दिवाकर मुनि दीपरत्नसागर [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] संपर्क - जैन देरासर, “पार्श्वविहार" फ़ोरेस्ट रेस्ट हाउस के सामने, Post: ठेबा [361120], Dis. जामनगर गुजरात / Mobile: +91-982596739 Email: Jainmunideepratnasagar@gmail.com SERIEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE E EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE R . . 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