Book Title: Chousath Ruddhi Poojan Vidhan Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust View full book textPage 9
________________ ब्रह्मचर्य व्रत धर्यो परिग्रह द्विविध तज्यो जिन, पंच महाव्रत धारि येह मुनि भये विचक्षन ॥५॥ चार हाथ y निरखि चलै हित मित वच भाखै, षट्चालीस जु दोषरहित शुभ अशन जु चाखै । भूमि शुद्ध प्रतिलेखि वस्तु क्षेप रु उठावै, भू निर्जन्तु निहारि मूत्र मल क्षपण करावै ॥६॥ स्पर्शन के हैं आठ पंच रस रसना केरे, घ्राणेन्द्रिय के दोय चक्षु के पाँच गिनेरे । कर्णेन्द्रिय के सप्तवीस अरु सात विषय सब, इष्ट अनिष्ट जु मांहि करै नहिं राग द्वेष कव ॥७॥ सामायिक अरु वंदन स्तुति प्रतिक्रमण भजै हैं, प्रत्याख्यान व्युत्सर्ग दिवस तिरकाल सजे हैं। भूमिशयन अरु स्नानत्याग नग्नत्व धरै हैं, कच लोंचें दिन मांहिं एक वर अशन करै हैं ॥८॥ खडे होय करि अहार करै सब दोष टालि मित, दंत-धवन तिन तज्यो देह जिय भिन्न लख्यो नित । अष्टाविंशति ये जु मूलगुण धरत निरंतर, उत्तर गुण लख च्यार असी धर वाह्य अभ्यंतर ॥९॥ .(दोहा) इत्यादिक बहु गुण सहित, अनागार ऋषिराज, नमो नमों तिन पद कमल, तारण तरण जिहाज ॥१०॥ इति पठित्वा पुष्पांजलिं क्षिपेत्Page Navigation
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