Book Title: Chousath Ruddhi Poojan Vidhan
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 46
________________ [४३ ] क्रोध कपट मद लोभको, किंचित् नहिं लवलेश । मूरति शान्त दयामयी वंदित सकल सुरेश ॥ तुम ऋषि दीनदयाल हो, बार बार विनती करों, हमारी करुणा ल्यो ऋषिराज ॥७॥ अशरण के आधार । मोहि उतारो पार || हमारी० ॥ ८ ॥ जो त्रिभुवनके सब मिलें, दानव मानव इन्द्र । हलै चलै नहिं सबनितें, वल ऋद्धिधार मुनिंद ॥ हमारी० ॥९॥ मैं दुखिया संसारमें, तुम करुणानिधि देव । हरौ दुःख यह मो तणो, करि हों तुम पद सेव || हमारी० ॥१०॥ तुम समान संसारमें, तारण तरण जिहाज | हे मुनीश ! कोऊ नहीं, यातें तुमको लाज ॥ हमारी० ॥११॥ तुम पद मस्तक हम धरें, भरी भक्ति उर मांहि । निज स्वरूप मय कीजिए, भव-संतति मिट जाहिं | हमारी० ॥१२॥ (धत्ता) हे करुणानिधि सकल गुणाकर, भक्ति हृदय हम तुम धारी । इस भवदुखहर अनुपम सुखकर, ऋषिवर ऋधिके धारी ॥१३॥ ॐ ह्रीं बल-ऋद्धि-प्राप्त- सर्व मुनीश्वरेभ्यो जयमालाऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । (अडिल्ल छन्द) सात ईति भय मिटै देश सुखमय वसै । धन धान्य महर्द्धिता प्रजा - मांहि लसै ॥ राजा चलै । झिलै ॥ धार्मिक होय न्यायमग में या पूजन फल यह धर्म जिनवर ॥ इत्याशीर्वादः ॥ ( इति पंचम कोष्ठ पूजा ) *

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