Book Title: Chousath Ruddhi Poojan Vidhan
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 63
________________ [६० ] पंचम कालकी आदिमें हुए मुनिराजोंको अर्घ (चौपाई - रूपक) गौतमस्वामी सुधर्म जु स्वामी, जम्बूस्वामी अति वीर जिनेन्द्र पछै त्रय नामी, बासठ वर्ष मध्य पंचम काल आदिके मांहीं, केवलज्ञान लह्यो तिनको पूजों अर्घ चढाई, ता फल केवलज्ञान अभिरामी । शिवगामी ॥१॥ सुखदाई । लहाई ॥२॥ ॐ ह्रीं वर्द्धमान- जिनेन्द्र - पश्चात् बासठ वर्ष मध्ये त्रय केवलज्ञान धारक मुनीश्वरेभ्योऽर्घ्यं नि० भाई । यतिन्दा ॥३॥ विष्णुनन्दि मित्र मुनिराई, अपराजित गोवर्धन भद्रबाहु ये पंच मुनिन्दा, सब श्रुत धारक भये शत संवत्सरमें सुखदाई, तिनके चरण नमो मनलाई । वसु द्रव्यनि ले अर्घ बनाई, पूजत हों मैं मन वच काई ॥४॥ ॐ ह्रीं केवली-त्रय-पश्चात् - शत-वर्ष - मध्ये पंच श्रुत- केवलिभ्योऽर्घ्यं नि० विशाख प्रौष्ठिल क्षत्रिय जया, चारज नागसेन मुनि हुया । सिद्धारथ धृतसेन मुनीशा, विजय बुद्धिलिंग है यतीशा ॥ ५ ॥ अंगदेव धरसेन मुनिन्दा, चे दश पूरबधार इकसै तियासी बरस मझारा, पूजों मैं उतरे भव पारा ॥ ६ ॥ जु यतिन्दा । ॐ ह्रीं विशाखाचार्यादि- श्रुतकेवलि - पश्चात् इकसौतियासी वर्षमध्ये दशपूर्वधारक एकादश मुनिभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । कंसा । भंगा ॥७॥ नक्षत्राचारज जयपाल मुनीशा, पांडव ध्रुवसेनादिक चारज पंचएकादश अंगा, वन्दन करत पाप हो ये मुनि शत अरु वर्ष-तेईशा, मांहि भए गुणगणके पूजों कर ले अर्ध मुनीशा, सकल दोष क्षयकार गणीशा ॥ ८ ॥ ईशा । ॐ ह्रीं दशपूर्व - धारक - पश्चात् एक सौ तेईस वर्ष मध्ये एकादशांग - धारकमुनिभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।

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