Book Title: Chousath Ruddhi Poojan Vidhan
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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[६३] सिद्धि-रमा-वर वे नमों मुनी, जे पक्ष मास अहार करंत । चरणां लागिहों भला, मोहि त्यारोजी ऋषि दीनदयाल ॥१६॥ गोदोहन वीरासन धरै मुनी, सेज धनुष वज्रासन धार ।।च०।१७।। तप बल नभ विहरत नमों मुनी, वे गिरि कंदर करत निवास ॥च०॥१८॥ शत्रु मित्र समचित धरै मुनी, मैं बंदों दिढ चारित्रके धार ॥१०॥१९॥ धर्म शुक्ल ध्यावे ध्यान• मुनी, मैं बंदों यतिवर मोक्ष गमंत ॥१०॥२०॥ चौबीस परिग्रहच्युत नमों मुनी, ध्यावों मुनिवर जगत पवित्त ॥च०॥२१॥ रत्नत्रय करि शुद्ध हैं मुनी, तिनको मैं बंदों शुद्ध कर चित्त ॥च०॥२२॥ मुनिगुण पार न पाइयो सुरा, मैं तुच्छ बुद्धि किम कहोजी बखान ॥०॥२२॥ बारबार विनती करूं मैं तुम्हें, करुणानिधि मोकू करि निजदास ॥च०॥२३॥ भविजन जो मुनि गुण धरे मनां, पद पूजत श्रीगुरु बारंबार ॥च०॥२५॥ मुनिस्वरूप को ध्याकै मनां, वह उतरैजी भव-दधि पार ॥च०॥२६॥
(कवित्त छन्द) जे तपसूरा संयम धीरा मुक्तिवधू अनुरागी,
रत्नत्रय-मण्डित कर्म-विहंडित ते ऋषिवर बडभागी । सूरि उपाध्याय सर्वसाधु त्रय पद धारत सब त्यागी,
पूज करत हौं भक्ति भावतें निज स्वरूप लवलागी ॥२७॥ ॐ ह्रीं आचार्य उपाध्याय सर्वसाधु त्रयपद धारक अतीत अनागत वर्तमानकाल सम्बन्धित सर्वमुनीश्वरेभ्योऽयू निर्वपामीति स्वाहा । जे या पूजा करै करावै सुर धरि गावै ।
अति उछाह करि जिनमन्दिर में मंडल मंडावै । देखै अरु अनुमोद करै जो भव्य निरन्तर, तिनके घरतें सर्व विघन भय नशैं दुरन्तर ॥
॥ इत्याशीर्वादः॥
तन

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