Book Title: Chousath Ruddhi Poojan Vidhan
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 14
________________ [११] . चमरबल आदि पिच्चानवै गणधरा, सुपार्श्व के तीन लक्ष सर्व योगीश्वरा । नीर गंधाक्षतं पुष्प चरु दीपकं, धूप फल अर्घ ले हम यजै महर्षिकं ॥७॥ ॐ ह्रीं सुपार्श्वजिनस्य चमरबल आदि पिच्चानवे गणधर एवं तीनलाख सर्वमुनिवरेभ्योऽयं । नवति अरु तीन दत्तादि गणराज हैं, __ चन्द्र जिनके मुनि सार्द्धद्वय लाख हैं। नीर गंधाक्षतं० ॥८॥ ॐ ह्रीं चंद्रप्रभजिनस्य दत्तादि तिरानवे गणधर एवं अढाईलाख सर्वमुनिवरेभ्योऽयं० । विदर्भादि गणराज अस्सी शुभ आठ हैं, पुष्पदंत जिनतणे द्वय लक्ष साधु हैं। नीर गंधाक्षतं० ॥९॥ ॐ ह्रीं पुष्पदंतजिनस्य विदर्भादि अठासी गणधर एवं दो लाख सर्वमुनिवरेभ्योऽयं० । इक-असी गणधरा आदि अनगार हैं, लक्ष एक शीतलके और मुनिराज हैं। नीर गंधाक्षतं० ॥१०॥ ॐ ह्रीं शीतलनाथजिनस्य अनगार आदि इक्यासी गणधर एवं एक लाख . सर्वमुनिवरेभ्योऽयं । कुंथादि गणराज सत्तर अरु सात हैं, __ चउअसी सहस श्रेयांसके साध हैं। नीर गंधाक्षतं० ॥ ११ ॥ ॐ ह्रीं श्रेयांसजिनस्य कुंथादिसतत्तर गणधर एवं चौरासी हजार सर्वमुनिवरेभ्योऽयं । सुधर्मादि षट्षष्ठी वासुपूज्य गणधरै, सहस बहत्तरै अवर मुनिवर सब फबै । नीर गंधाक्षतं० ॥१२॥ .. ॐ ह्रीं वासुपूज्यजिनस्य सुधर्मादिछियासठ गणधर एवं बहत्तरहजार सर्वमुनिवरेभ्योऽयं ।

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