Book Title: Chousath Ruddhi Poojan Vidhan
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 40
________________ [३७] (सोरठा) उग्रतपादिकऋद्धि, ब्रह्मचर्यलों सात सब । धारक मुनी समृद्ध, पूजों अर्ध चढायकै ॥ ॐ ह्रीं उग्रतपोतिशयादि अघोरब्रह्मचर्यान्तसप्त- तपोतिशय ऋद्धि-प्राप्तसर्वमुनीश्वरेभ्योऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । जयमाला (दोहा) तपोॠद्धिधारक मुनी, भये सकल तिनकी थुति मैं करत हों, गूंथि गुणनकी ( चाल आगमकी ) कर्म निर्जरा करनको संवर करि शिव-सुखदाई जी । बाह्य अभ्यन्तर तप करे द्वादश विधि हों हरषाई जी ॥ तपऋद्धि धारक जे मुनि बन्दौं तिन शीष नवाई जी ॥१॥ षष्टम अष्टम आदि दे उपवास करै षट् मासा जी । अनशन तप इहि विधि धेरै छांडै सब तन की आशाजी । तप० ॥२॥ गुणपाल । माल ॥ बत्तीस ग्रास भोजन - तणों तिनमें घटि घटि लेय आहारो जी । ऊनोदर तपको करै मम अशुभ कर्म वृत्ति अटपटी धारिकै भोजन करि है व्रतपरिसंख्या तप तणी विधि धारि करे षट्स मय- भोजन विषै रस त्यागि लेत रस- परित्याग जु तप करें मौकूं भव-सागर ग्राम पशु जन नहिं तहां पर्वत बन नदी - किनारो जी | शून्य गुफामें जे रहें विविक्तशय्यासन धारो जी ॥ तप० ॥ ६ ॥ ग्रीष्मऋतु पर्वत-शिखरपै वर्षा में तरुतल शीत नदी-तट चोहटे, तप कायकलेश ध्यानो जी । महानो जी ॥ तप०॥७॥ निवारो जी ॥ तप०॥३॥ जी । जी || तप० ॥४॥ अविकारो विस्तारो आहारो जी । त्यारोजी ॥ तप० ॥५॥

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