Book Title: Chousath Ruddhi Poojan Vidhan
Author(s): Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 16
________________ [१३] विशाखादि गणराज आठ अरु बीस हैं, मल्लिजिनके मुनी सहस चालीस हैं। नीर गंधाक्षतं पुष्प चरु दीपकं, धूप फल अर्घ ले हम यजै महर्षिकं ॥१९॥ ॐ ह्रीं मल्लिनाथजिनस्य विशाखादि अठाईस गणधर एवं चालीस हजार सर्व मुनिवरेभ्योऽयं । अष्टदश गणधरा मल्लि आदिक सदा, मुनिसुव्रत तीस हजार मुनिवर तदा। नीर गंधाक्षतं० ॥२०॥ ___ ॐ ह्रीं मुनिसुव्रतजिनस्य मल्यादि अठारह गणधर एवं तीस हजार सर्व मुनिवरेभ्योऽयं० । सोमादि गणधर दश सप्त नमिनाथ के, बीस हजार सब अवर मुनि साथके। नीर गंधाक्षतं० ॥२१॥ ॐ ह्रीं नमिनाथजिनस्य सोमादि सत्रह गणधर एवं बीस हजार सर्व मुनिवरेभ्योऽयं । ' आदि वरदत्त गणधार एकादशा, नेमिके अवर मुनि सहस अष्टादशा। नीर गंधाक्षतं० ॥२२॥ ॐ ह्रीं नेमिनाथजिनस्य वरदत्तादि ग्यारह गणधर एवं अठारह हजार सर्व मुनिवरेभ्योऽयं० । । स्वयंभ्वादि गणधर दश अवर सब मुनिवस, पार्श्वजिनराज के सहस षोडश परा। नीर गंधाक्षतं० ॥२३॥ ॐ ह्रीं पार्श्वजिनस्य स्वयंभ्वादि दश गणधर एवं षोडश सहस्र सर्व मुनिवरेभ्योऽयं० । गौतमादिक सबै एकदश गणधरा, वीरजिनके मुनि सहस चउदस वरा । नीर गंधाक्षतं० ॥२४॥ ॐ ह्रीं महावीरजिनस्य गौतमादि ग्यारह गणधर एवं चौदह हजार सर्व मुनिवरेभ्योऽयं० । (छप्पय छंद) . . तीर्थंकर चौबीस सबनकै गणधर सारे । चौदहसै पच्चास और द्वय सर्व निहारे ॥

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