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चमरबल आदि पिच्चानवै गणधरा,
सुपार्श्व के तीन लक्ष सर्व योगीश्वरा । नीर गंधाक्षतं पुष्प चरु दीपकं,
धूप फल अर्घ ले हम यजै महर्षिकं ॥७॥ ॐ ह्रीं सुपार्श्वजिनस्य चमरबल आदि पिच्चानवे गणधर एवं तीनलाख सर्वमुनिवरेभ्योऽयं ।
नवति अरु तीन दत्तादि गणराज हैं, __ चन्द्र जिनके मुनि सार्द्धद्वय लाख हैं। नीर गंधाक्षतं० ॥८॥
ॐ ह्रीं चंद्रप्रभजिनस्य दत्तादि तिरानवे गणधर एवं अढाईलाख सर्वमुनिवरेभ्योऽयं० । विदर्भादि गणराज अस्सी शुभ आठ हैं,
पुष्पदंत जिनतणे द्वय लक्ष साधु हैं। नीर गंधाक्षतं० ॥९॥
ॐ ह्रीं पुष्पदंतजिनस्य विदर्भादि अठासी गणधर एवं दो लाख सर्वमुनिवरेभ्योऽयं० । इक-असी गणधरा आदि अनगार हैं,
लक्ष एक शीतलके और मुनिराज हैं। नीर गंधाक्षतं० ॥१०॥
ॐ ह्रीं शीतलनाथजिनस्य अनगार आदि इक्यासी गणधर एवं एक लाख . सर्वमुनिवरेभ्योऽयं ।
कुंथादि गणराज सत्तर अरु सात हैं, __ चउअसी सहस श्रेयांसके साध हैं। नीर गंधाक्षतं० ॥ ११ ॥
ॐ ह्रीं श्रेयांसजिनस्य कुंथादिसतत्तर गणधर एवं चौरासी हजार सर्वमुनिवरेभ्योऽयं । सुधर्मादि षट्षष्ठी वासुपूज्य गणधरै,
सहस बहत्तरै अवर मुनिवर सब फबै । नीर गंधाक्षतं० ॥१२॥ ..
ॐ ह्रीं वासुपूज्यजिनस्य सुधर्मादिछियासठ गणधर एवं बहत्तरहजार सर्वमुनिवरेभ्योऽयं ।