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[१०] चतुर्विंशतितीर्थंकरसम्बन्धिगणधरमुनीवर पूजा
॥ स्थापना ॥ (लक्ष्मीधरा छन्द) वृषभसेनादि अस्सी चउ गणधरा,
वृषभके चउ-अंसी सहस सब मुनिवरा । नीर गंधाक्षतं पुष्प चरु दीपकं,
धूप फल अर्घ ले हम यजै महर्षिकं ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री आदिनाथस्य वृषभसेनादि चौरासी गणधर एवं चौरासी हजार मुनिवरेभ्योऽयं० । सिंहसेनादि सब नवति गणधार हैं,
अजित जिनराज के लक्ष अनगार हैं। नीर गंधाक्षतं० ॥२॥
ॐ ह्रीं अजितजिनस्य सिंहसेनादि नव्वे गणधर एवं. एक लाख मुनिवरेभ्योऽयं । गणि चारुषेणादि शत एक अरु पांच हैं, . ।
लक्ष सब दोय संभवतणेसांच हैं। नीर गंधाक्षतं० ॥३॥ - ॐ ह्रीं संभवजिनस्य चारुषेणादि एकसौ पांच गणधर एवं दो लाख सर्वमुनिवरेभ्योऽयं० ।
एकसौ तीन वज्रादि हैं गणधरा, ___ सर्व अभिनंद के तीन लक्ष मुनिवरा । नीर गंधाक्षतं० ॥४॥
ॐ ह्रीं अभिनंदनजिनस्य वज्रनाभि आदि एकसौ तीन गणधर एवं तीनलाख सर्व मुनिवरेभ्योऽयं । चामरादि एकशत षोडशा गणधरा,
सुमतियति चौगुणा सहस अस्सीपरा। नीर गंधाक्षतं० ॥५॥
ॐ ह्रीं सुमतिजिनस्य चामरादि एक सो सौलह गणधर एवं तीनलाख बीस हजार सर्व मुनिवरेभ्योऽर्थ्य० । वज्रादि शत एक दस पद्मके गणधरा,
तीन लक्ष तीस हजार सब मुनिवरा । नीर गंधाक्षतं० ॥६॥
ॐ ह्रीं पद्मप्रभजिनस्य वज्रचामरादि ११० गणधर एवं तीनलाख तीस हजार सर्व मुनिवरेभ्योऽयं ।