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[१२] गणी नंदरार्यादि पंच पच्चास हैं।
विमल मुनि सर्व अडसठि हजार हैं। नीर गंधाक्षतं पुष्प चरु दीपकं,
धूप फल अर्घ ले हम यजै महर्षिकं ॥१३॥ ॐ ह्रीं विमलनाथजिनस्य नंदरार्यादि पचपन गणधर एवं अडसठ हजार सर्वमुनिवरेभ्योऽयं । -
गणधर जय आदि पच्चास जिनानंतके, ___ अवर मुनि षष्टिषट् सहस्र सब भंतके। नीर गंधाक्षतं० ॥१४॥
ॐ ह्रीं अनंतनाथजिनस्य जयादि पचास गणधर एवं छियासठ हजार सर्वमुनिवरेभ्योऽयं० ।
अरिष्टादि चालीसत्रय सर्व गणधार हैं,
धर्म जिनके यती चउसठ हजार हैं। नीर गंधाक्षतं० ॥१५॥
ॐ ह्रीं धर्मनाथजिनस्य अरिष्टादि तियालीस गणधर एवं चौसठ हजार सर्वमुनिवरेभ्योऽयं ।
षडत्रिंश गणधरा चक्रायुधादि महा, __ शांति जिनवर मुनि सहस बासठ लहा। नीर गंधाक्षतं० ॥१६॥
ॐ ह्रीं शांतिनाथजिनस्य चक्रायुधादि छत्तीस गणधर एवं बासठ हजार सर्वमुनिवरेभ्योऽयं० । स्वयंभ्वादि गणराज पैंतिस जिन कुंथुके,
साठ हजार मुनिराज सब संघके। नीर गंधाक्षतं० ॥१७॥
ॐ ह्रीं कुंथुनाथजिनस्य स्वयंभ्वादि पैंतीस गणधर एवं साठ हजार सर्व मुनिवरेभ्योऽयं० ।
तीस गणधार कुंवादि अरनाथके, : सहस्र पंचास मुनिराज सब साथके । नीर गंधाक्षतं० ॥१८॥
ॐ ह्रीं अरनाथजिनस्य कुंथ्वादि तीस. गणधर एवं पचास हजार सर्व मुनिवरेभ्योऽयं० ।