Book Title: Chitra Vichitra Jiva Sansar
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf

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Page 3
________________ पाँचों निकायों के जीव दो प्रकार के होते हैं - (१) सूक्ष्म, (२) बादर। जिन जीवों का शरीर अत्यंत सूक्ष्म हो, किसी भी इंद्रिय से किसी भी तरह अग्राह्य हो वे जीव सूक्ष्म कहलाते हैं। सूक्ष्म नामक नामकर्म के उदय में जीवों को ऐसी पर्याय प्राप्त होती है। जिन जीवों का शरीर बादर-स्थूल होता है, वे जीव बादर कहलाते हैं। बादर नामक नामकर्म के उदय से जीवों को ऐसी पर्याय प्राप्त होती है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव समूचे लोक में व्याप्त हैं, वे स्वभावतः अदृश्यत होते हैं, और उनकी महत्तम आयुष्य मात्र अंतर्मुहूर्त (४८ मिनट से कुछ कम) कालप्रमाण ही होती है। बादर एकेन्द्रिय जीव चौदह-रज्जु लोक के सीमित क्षेत्र में पाए जाते हैं। प्रत्येक सूक्ष्म और बादर एकेन्द्रिय जीवों के दो-दो भेद हैं - (१) पर्याप्ता, (२) अपर्याप्ता। पर्याप्तियाँ छ: है - (१) आहार, (२) शरीर, (३) इन्द्रिय, (४) श्वासोच्छ्वास, (५) भाषा, (६) मन। एकेन्द्रिय जीवों को पहली चार; द्वीन्द्रिय, त्रीरिन्द्रिय, चउरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को पाँच; सम्मूर्छिम मनुष्यों में चार; एवं संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को छ: पर्याप्तियाँ प्राप्त होती है। जो जीव स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण करें, वे पर्याप्ता; और जो जीव स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण न करें; वे जीव अपर्याप्ता कहलाते हैं। जिन जीवों के पास दो- स्पर्शन और रसना इन्द्रियाँ हैं; वे द्वीन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे कि- लट, सीप, अलसिया, शंख कौडी, जलो, कृमि वगैरह। द्वीन्द्रिय जीवों को प्रायः पाँव नहीं होते हैं। ___ जिन जीवों के पास तीन- स्पर्शन, रसना और घ्राण इन्द्रियाँ हैं; वे त्रीरिन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे कि-कीड़ी, मोकड़ा, कानखजूरा, घोंघा, खटमल, दीमक, गोबर तथा धान्य में पैदा होने वाले कीड़े वगैरह। त्रीरिन्द्रिय जीवों को प्रायः चार, छ: या उनसे अधिक पाँव होते हैं। ___ जिन जीवों के पास चार- स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु इन्द्रियाँ हैं, वे * जिसके प्रेम में कभी पतझड़ न भाएँ उसका नाम मा.

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