Book Title: Chitra Vichitra Jiva Sansar Author(s): Ajaysagar Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf View full book textPage 2
________________ वेद की अपेक्षा से सभी संसारी जीवों को तीन वर्गों में बाँटा है (१) स्त्रीवेदी, (२) पुरुषवेदी, (३) नपुंसकवेदी। यह स्त्री है, या पुरुष या नपुंसक; इसकी पहचान के लिए बाहरी चिन्ह द्रव्यवेद कहलाते हैं; जबकि स्त्री को पुरुष के साथ; पुरुष को स्त्री के साथ और जीव को स्त्री और पुरुष दोनों के साथ जो रमण करने की इच्छा होती है वो क्रमशः स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद कहलाती है। एकेन्द्रिय से चउरिन्द्रिय जीव, सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचों, सम्मूर्छिम् मनुष्यों एवं नारकी जीवों में नपुंसक-वेद ही पाया जाता है। गर्भज तिर्यंचों और मनुष्यों में तीनों वेद पाए जाते है जबकि चारों प्रकार के देवों में स्त्रीवेद एवं पुरुषवेद पाया जाता है; नवग्रैवेयक और पांच अनुत्तर देवों में अत्यंत सूक्ष्म पुरुष-वेद पाया जाता है। परमात्मा ने गति की अपेक्षा से भी संसारी जीवों को चार वर्गों में बाँटा हैं - (१) नारक, (२) तिर्यंच, (३) मनुष्य, (४) देव। जो जीव नरक-गति में हैं वे नारक; जो तिर्यंच गति में हैं वे तिर्यंच; जो मनुष्य गति में है वे मनुष्य तथा जो देव गति में हैं वे देव कहलाते हैं। 'गति' नामक नामकर्म के उदय से प्राप्त होने वाली पर्याय गति कहलाती चित्र-विचित्र तिर्यंच संसार परमात्मा ने इन्द्रियों की अपेक्षा से सभी संसारी जीवों को पाँच वर्गों में बाँटा हैं - (१) एकेन्द्रिय, (२) द्वीन्द्रिय, (३) तेइन्द्रिय, (४) चउरिंद्रिय, (५) पंचेन्द्रिय । आत्मा के चिन्ह स्वरूप हैं इन्द्रियाँ। शरीर के अंगभूत हैं इन्द्रियाँ । इन्द्रियाँ पाँच हैं - (१) स्पर्शन इन्द्रिय-त्वचा, (२) रसना इन्द्रिय-जिह्वा, (३) घ्राण इन्द्रिय-नासिका, (४) चक्षु इन्द्रिय-आँख, (५) श्रोत्र इन्द्रिय-कान। पाँचों इन्द्रियों के संस्थान-बनावट, आकार और विषय भी जुदा जुदा है। पाँचों इन्द्रियों के कुल विषय २३ एवं उन विषयों के उपभेद २४० हैं। जिन जीवों के पास एक-स्पर्शन इन्द्रिय है, वे एकेन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे कि पृथ्वीकाय, अप्काय, तैजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के जीव। इन करणी-हीन कथनी कमजोर होती है.Page Navigation
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