Book Title: Chintan ke Vividh Aayam Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay View full book textPage 5
________________ प्रकाशकीय प्रकाश श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय साहित्य के क्षेत्र में नित्य नूतन साहित्य प्रदान करता रहा है । साहित्य की हर विधा में उसने शानदार प्रकाशन किये हैं । चाहे शोधग्रन्थ रहे हों, चाहे दार्शनिक विषय रहा हो, चाहे आचार-शास्त्र रहा हो, चाहे चिन्तन-परक साहित्य हो, चाहे प्रवचन साहित्य हो, चाहे कथा साहित्य हो । सभी में उसने अपनी अनूठी कीर्ति अर्जित की है। राजस्थान में ही नहीं, अपितु अखिल भारतीय जैन साहित्य संस्थानों में उसका एक प्रमुख स्थान है। उसके लोकप्रिय प्रकाशन राजस्थानी, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी में अनुदित भी हुए हैं। जैन कथाएँ सिरीजमाला में से अनेक भागों का अनुवाद 'श्री पुष्कर प्रसादी कथामाला' के रूप में दो सौ पुस्तकें अभी तक गुजराती में प्रकाशित हो चुकी है और अंग्र ेजी में भी कथाओं की पचास पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं। 'भगवान् महावीर-एक अनुशीलन' जैसा विराटुकाय ग्रन्थ भी गुजराती में प्रकाशित हो चुका है तथा 'जैन दर्शन : स्वरूप और विश्लेषण' ग्रन्थ भी ' A Source Book In Jain Philosophy' के रूप में शीघ्र प्रकाशित हो रहा है । हमारे कुछ मौलिक प्रकाशनों को उदयपुर और दिल्ली विश्वविद्यालय ने M. A. के सहायक ग्रन्थों के रूप में मान्यताएँ प्रदान की हैं । साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ने का सम्पूर्ण श्रेय परम श्रद्धय, उपाध्याय, राजस्थान केसरी, अध्यात्मयोगी, सद्गुरुवर्य श्री पुष्करमुनि जी म० श्री को है, जिनकी असीम कृपा से ही हम इस क्षेत्र में अपने मुस्तैदी कदम आगे बढ़ा सके हैं । अभी कुछ दिन पूर्व 'जैन आचार: सिद्धान्त और स्वरूप' जैसे विशालकाय ग्रन्थ को हमने समर्पित किया । सुप्रसिद्ध दार्शनिक मूर्धन्य मनीषी पं० दलसुख भाई मालवणिया ने इसे 'जैन आचार का विश्व- कोष' कहा है और अन्य विद्वानों ने उसकी मुक्त कण्ठ से सराहना की । 'चिन्तन के विविध आयाम' देवेन्द्रमुनि जी की अभिनव कृति है । निबन्ध या प्रस्ता प्रस्तुत कृति में देवेन्द्रमुनि जी ने विभिन्न विषयों पर जो वनाएँ लिखी हैं उनका संकलन आकलन इसमें किया गया है । मार्ग' यह निबन्ध पूना 'ईश्वर : एक चिन्तन' 'मोक्ष और मोक्षविश्वविद्यालय में विद्वत् संगोष्ठी में मुनि श्री ने पढ़ा था । उसी विधा में लिखा हुआ उत्कृष्ट निबन्ध है । 'योग और For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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