Book Title: Chinta Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 6
________________ चिंता चिंता आती है कहाँ से ? दादाश्री : कभी चिंता की है क्या? प्रश्नकर्ता: चिंता तो मानव स्वभाव है, इसलिए एक या दूसरे रुप में चिंता होती ही है। दादाश्री : मनुष्य का स्वभाव कैसा है कि खुद को कोई थप्पड मारे, उसे सामने थप्पड मारे। पर यदि कोई समझदार हो तो वह सोचे कि मुझे कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए । कुछ लोग कानून हाथ में भी ले लेते हैं। यह गुनाह कहलाये । चिंता कैसे कर सकता है मनुष्य ? प्रत्येक भगवान ऐसा कह गये हैं कि कोई भी चिंता मत करना। सारी ज़िम्मेवारी हमारे सिर पर रखना । प्रश्नकर्ता: पर कहना और व्यवहार में लाना, दोनों के बीच भारी अंतर है। दादाश्री : नहीं, मैं व्यवहार में छोड़ने को नहीं कहता। यह तो विस्तार से बताता हूँ। ऐसे कुछ चिंता छूटती नहीं, पर यह चिंता नहीं करनी है। फिर भी हो जाती है सभी को । अब यह चिंता होने पर क्या दवाई लगाते हो? चिंता की दवाई नहीं आती? जहाँ चिंता, वहाँ अनुभूति कहाँ से ? प्रश्नकर्ता : चिंता से परे होने के लिए भगवान से आशिर्वाद माँगो चिंता कि इसमें से मैं कब छूटूंगा, इसके लिए 'भगवान, भगवान' करो, इस माध्यम से हम आगे बढ़ना चाहते हैं। फिर भी मुझे अपने अंदरवाले भगवान की अनुभूति नहीं होती । २ दादाश्री : कैसे होगी अनुभूति ? चिंता में अनुभूति नहीं होती ! चिंता और अनुभूति दोनों साथ नहीं होते । चिंता बंद होने पर अनुभूति होगी । प्रश्नकर्ता: चिंता किस तरह मिटे ? दादाश्री : यहाँ सत्संग में रहने पर सत्संग में आये हो कभी? प्रश्नकर्ता: और जगह सत्संग में जाता हूँ । दादाश्री : सत्संग में जाने पर यदि चिंता बंद नहीं होती हो तो वह सत्संग छोड़ देना चाहिए। बाकी, सत्संग में जाने पर चिंता बंद होनी ही चाहिए। प्रश्नकर्ता: वहाँ बैठें, उतनी देर शांति रहती है। दादाश्री : नहीं, उसे शांति नहीं कहते। उसमें शांति नहीं है। ऐसी शांति तो गप्पें सुने तो भी होगी। सच्ची शांति तो कायम रहनी चाहिए, हिलनी ही नहीं चाहिए। अर्थात चिंता हो उस सत्संग में जाना ही किस लिए? सत्संगवालों से कह देना कि, 'भैया, हमें चिंता होती है, इसलिए अब हम यहाँ आनेवाले नहीं है, वर्ना आप कुछ ऐसी दवाई करें कि चिंता नहीं हो।' प्रश्नकर्ता: ऑफिस जाऊँ, घर जाऊँ, तो भी कहीं मन नहीं लगता। दादाश्री : ऑफिस तो हम नौकरी के लिए जाते हैं और तनख्वाह तो चाहिए न ? घर-गृहस्थी चलानी है, इसलिए घर नहीं छोड़ना, नौकरी भी नहीं छोड़नी । पर केवल जहाँ पर चिंता नहीं मिटती वह सत्संग छोड़ देना है। नया दूसरा सत्संग खोजना, तीसरे सत्संग में जाना । सत्संग कईPage Navigation
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