Book Title: Chinta
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 15
________________ चिंत्ता चिंत्ता लड़की अपना टाइमिंग वगैरह का प्रबंध करके आई है।' हमें चिंता कब करनी चाहिए कि जब आस-पास के लोग कहें कि. 'बेटी का कुछ किया?' तब हम समझें कि अब सोचने का वक्त आ गया है और तब से उसके लिए प्रयत्न करते रहना। यह तो आस- पासवाले कुछ कहते नहीं और उस से पहले, पंद्रह साल पहले से चिंता करने लगे। फिर अपनी बीवी से भी कहेगा कि, 'तुझे याद रहेगा कि हमारी बेटी बड़ी हो रही है और ब्याहनी है?' अब बीबी को क्यों चिंता करवाता है? कुसमय की चिंता सत्रह साल पहले बेटी ब्याहने की चिंता करता है, तो मरने की चिंता क्यों नहीं करता? तब कहेगा कि, 'नहीं मरने का तो याद ही मत करवाना।' तब मैं ने पूछा कि, 'मरने का याद करने में क्या हर्ज है? आप नहीं मरनेवाले क्या?' तब कहे कि, 'यदि मरना याद करवाओगे तो आज का सुख चला जाता है और आज का हमारा सारा स्वाद बिगड़ जाता है।' 'तब बेटी के ब्याह को क्यों याद करता है? तब भी तेरा स्वाद चला जायेगा न? और बेटी अपना ब्याह का सभी लेकर आई है। माँ-बाप तो इसमें निमित्त हैं।' बेटी अपने ब्याह के सभी साधन लेकर आई होती है। बैंक बैलेन्स, पैसे, सभी लेकर आई है। कम या ज्यादा जितना ख़र्च हो वह एक्जेटली (निश्चित रूप से) सब कुछ लेकर आई होती है। बेटी की चिंता आपको नहीं करनी चाहिए। आप बेटी के पालक हैं। बेटी अपने लिए लड़का भी लेकर आई होती है। हमें किसी से कहने जाने की जरुरत नहीं है कि लड़का पैदा करना। हमारी बेटी है, उसके लिए लड़का पैदा करना, ऐसा कहने जाना पड़ता है? अर्थात सारा सामान तैयार लेकर आई होती है। तब बाप कहेगा, 'यह पच्चीस की हुई, अभी तक उसका ठिकाना नहीं लगता। ऐसा है, वैसा है।' वह सारा दिन गाता रहता है। अरे, वहाँ पर लड़का सत्ताईस का हो गया है, पर तुझे मिला नहीं है, तो शोर क्यों मचाता है? सो जा न चुपचाप। वह सत्ता में नहीं हो, उसका चित्रण मत करो। पिछले अवतार की दोतीन बेटियाँ थी, बेटे थे, उन सभी को इतने छोटे-छोटे छोड़कर आये थे, तो उन सब की चिंता करते हो? क्यों? और ऐसे मरते समय तो बहुत चिंता होती है न, कि छोटी बेटी का क्या होगा? पर यहाँ फिर नया जन्म लेता हो तो पिछले जन्म की कुछ चिंता ही नहीं न! खत-वत कुछ भी नहीं!! अर्थात यह सारी परसत्ता है, उसमें हाथ ही नहीं डालना। इसलिए जो हो वह 'व्यवस्थित में हो तो भले हो, और नहीं हो तो भले न हो।' चिंता करने के बजाय धर्म की ओर मोड़ें प्रश्नकर्ता : घर के जो प्रमुख व्यक्ति हों, उन्हे जो चिंता होती है, वह कैसे दूर करें? दादाश्री : कृष्ण भगवान ने क्या कहा है कि 'जीव तू काहे सोच करे, कृष्ण को करना हो सो करे।' ऐसा पढ़ने में आया है? तो फिर चिंता करने की क्या जरुरत है? इसलिए बच्चों को लेकर क्लेश क्यों करते हो? धर्म के रास्ते पर मोड़ दो उनको, सुधर जायेंगे। कुछ तो व्यवसाय को लेकर चिंता करते ही रहते हैं। वे क्यों चिंता करते है? मन में ऐसा लगता है कि, 'मैं ही चलाता हूँ'। इसलिए चिंता होती है। 'वह कौन चलानेवाला है' ऐसा किसी भी तरह का अवलंबन लेता नहीं है। भले ही, तू ज्ञान से नहीं जानता हो, पर और किसी प्रकार का अवलंबन तो ले। क्योंकि तू नहीं चलाता है ऐसा थोड़ाबहुत तेरे अनुभव में तो आया है। चिंता तो सब से बड़ा इगोइज़म है। _अधिक चिंतावाले कौन ? प्रश्नकर्ता : दो वक्त की रोटी जितना भी पूरा न हो, उसे तो रोज

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