Book Title: Chinta
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 20
________________ चिंत्ता २९ चिंत्ता प्रश्नकर्ता : आपके पास से ज्ञान पाया, मन-वचन-काया आपको अर्पण किये, फिर चिंता ही नहीं होती है। दादाश्री : होती ही नहीं। चिंता गई , उसका नाम समाधि। उससे फिर पहले से काम भी ज्यादा होगा, क्योंकि उलझन नहीं रही न फिर! यह ऑफिस जाकर बैठा कि काम होता रहे। घर के विचार नहीं आते, बाहर के विचार नहीं आते, और किसी प्रकार के विचार ही नहीं आते और संपूर्ण एकाग्रता रहे। वर्तमान में बरते वह सही लोगों को तीन साल की एक ही बेटी हो तो, मन में ऐसा होता है कि यह बड़ी होगी तो उसे ब्याहनी होगी, उसमें खर्च होगा। ऐसी चिंता करने की ना कही है। क्योंकि जब उसका टाईमिंग होगा. तब सारे ऐविडन्स (संयोग) इकट्ठा हो जायेगें। इसलिए टाईमिंग (समय) आने तक आप उसमें हाथ मत डालना । आप अपने तरीके से बेटी को खिलाये-पीलायें, पढ़ायें, लिखाये लेकिन आगे की सारी चिंता मत कीजिए, वर्तमान को नजर में रख कर, आज के दिन के लिए ही व्यवहार कीजिए। भूतकाल तो बीत गया। जो आपका भूतकाल है, उसे क्यों उखाड़ते हैं? नहीं उखाड़ते न! भूतकाल बीत गया, उसे तो कोई मूर्ख मनुष्य भी नहीं उखाड़ता। भविष्य व्यवस्थित के हाथों में है, तब फिर हम वर्तमान में ही रहें। अभी चाय पीते हैं तो आराम से चाय पीना, क्योंकि भविष्य व्यवस्थित के हाथों में है। हमें क्या झंझट? इसलिए वर्तमान में ही रहना, खाना खाते समय खाने में पूर्ण चित्त रखकर खाना। पकौड़े किसके बने हैं, यह सब आराम से जानना। वर्तमान में रहना माने क्या कि बहीखाता लिखते हैं तो बिलकुल एक्युरेट (पूर्णतया) उसी में ही चित्त रखना चाहिए। क्योंकि चित्त भविष्य में आगे दौड़ता है तो उससे आज का बहीखाता बिगड़ता है। भविष्य के विचार से होनेवाली किच-किच के कारण, आज का बहीखाता बिगड़ता है। भूल-चूक हो जाती है, लिखावट ठीक से नहीं होती। पर जो वर्तमान में रहता है, उसकी एक भी भूल नहीं होती, उसे चिंता नहीं होती। चिंता, नहीं है डिस्चार्ज प्रश्नकर्ता : क्या चिंता डिस्चार्ज हैं? दादाश्री : चिंता डिस्चार्ज में नहीं आती, क्योंकि उसमें 'करनेवाला' होता है। जो चिंता चार्ज रूप में थी, वह अब डिस्चार्ज रूप में होती है, उसे हम सफोकेशन (घुटन) कहते हैं। क्योंकि भीतर छूने नहीं देते न ! अहंकार से आत्मा अलग वर्तता है न! एकाकार होते थे, तब वह चिंता थी। अब चार्ज हुई चिंता है वह डिस्चार्ज होते वक्त तो सफोकेशन होगा। जैसे चार्ज हुआ था और डिस्चार्ज होते समय आत्मा अलग होने से क्रोध (आत्मज्ञान होने से) वह गुस्सा हो गया। उसी प्रकार आत्मा के अलग बरतने के कारण जो कुछ भी होता है, वह सब अलग ही है। अर्थात यह ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात चिंता होगी ही नहीं, वह सफोकेशन है खाली। चिंतावाले तो मुख पर से ही मालूम हो जाये। यह जो होता है, वह तो सफोकेशन, घुटन होती है। हमें रास्ता चित्रित करके दिया हो, और उसे समझने में हमारी गलती हो गई, तो फिर हमें उलझन होगी, उसे चिंता नहीं कहते, वह घुटन कहलाती है। अर्थात चिंताएँ नहीं होगी। चिंताओं मे तो तड़-तड़ करके खून जला करता है। 'व्यवस्थित' का ज्ञान वहाँ चिंता गायब प्रश्नकर्ता : 'व्यवस्थित' यदि ठीक से समझ में आ जाये, तो चिंता या टेन्शन कुछ भी नहीं रहेगा?

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