Book Title: Chinta
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ चिंत्ता दादाश्री : ज़रा भी नहीं रहता। 'व्यवस्थित' यानी सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स। 'व्यवस्थित' तब तक समझते रहना है कि आखरी 'व्यवस्थित,''केवल ज्ञान' होकर रहे। और व्यवस्थित समझ में आ गया तो केवल ज्ञान समझ जायेंगे। यह 'व्यवस्थित' की खोजबीन हमारी कितनी सुंदर है! यह गज़ब की खोजबीन है!! अनंत अवतार के लिए संसार कौन खड़ा करता था? कर्ता बन बैठे थे, उसकी चिंता। प्रश्नकर्ता : इस 'ज्ञान' से अब मुझें भविष्य की चिंता नहीं रहती दादाश्री : आप तो यह व्यवस्थित है' ऐसा कह देंगे न ! व्यवस्थित आपकी समझ में आ गया है न! कोई परिवर्तन होनेवाला नहीं हैं / सारी रात जागकर दो साल बाद के विचार करेंगे न, तो वे युज़लेस (व्यर्थ) विचार हैं, वेस्ट ऑफ टाईम एण्ड एनर्जी (समय और शक्ति का दुर्व्यय) प्रश्नकर्ता : आपने जो 'रियल' और 'रिलेटिव' समझाया, उसके बाद चिंता नहीं रही। दादाश्री : बाद में तो चिंता ही नहीं होती न ! इस ज्ञान के पश्चात चिंता हो ऐसा है ही नहीं। यह मार्ग पूर्णतया वीतराग मार्ग है। पूर्णतया वीतराग मार्ग यानी क्या, कि चिंता ही नहीं होती। यह तमाम आत्मज्ञानीयों का, चौबीस तीर्थंकरों का मार्ग है, यह और किसी का मार्ग नहीं है। - जय सच्चिदानंद

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21