Book Title: Chinta
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 19
________________ चिंता चिंत्ता करना, उसे चिंता कहते हैं । बहु बीमार हुई हो, अब पैसे से भी ज्यादा अगर बहू ही सर्वस्व लगती हो, तो वहीं से उसे चिंता होने लगेगी। उसे सब से ज्यादा महत्व दिया उसने और अधिक माना उसे, इसलिए चिंता घुस जायेगी और जिसके लिए सर्वस्व आत्मा है, उसे फिर चिंता काहे की होगी? प्रश्नकर्ता : टेन्शन यानी क्या? चिंता तो समझ में आ गयी, अब टेन्शन की व्याख्या बताइए कि टेन्शन किसे कहें? दादाश्री : टेन्शन उसके जैसा ही अंश है। पर उसमें सर्वस्व नहीं होता, सभी तरह के तनाव होंगे। नौकरी का ठिकाना लगता नहीं है, क्या होगा? एक ओर बीवी बीमार है, उसका क्या होगा? लड़का ठीक से स्कूल नहीं जाता, उसका क्या? यह सभी तनाव-टेन्शन कहलाते हैं। हमने तो सत्ताइस सालों से टेन्शन ही नहीं देखा है न! अब सावधानी और चिंता में बहुत फर्क। सावधानी यह जागृति है और चिंता यानी जी जलाते रहना। नोर्मालिटी से है मुक्ति प्रश्नकर्ता : परवशता और चिंता दोनों साथ नहीं जाते? दादाश्री : चिंता तो एबव नोर्मल इगोइज़म है और परवशता वह इगोइजम नहीं है। परवशता तो लाचारी है और चिंता वह एबव नोर्मल इगोइज़म है। एबव नोर्मल इगोइज़म हो तो चिंता होगी वर्ना नहीं होगी। यह रात को घर में नींद किसे नहीं आती होगी? तब कहें, जिसे इगोइज़म ज्यादा है उसे। इगोइज़म इस्तेमाल करने को कहा है, एबव नोर्मल इगोइज़म इस्तेमाल करने को नहीं कहा। अर्थात चिंता करना गुनाह है और उसका परिणाम जानवर गति होती है। प्रश्नकर्ता : चिंता नहीं हो, उसके लिए उपाय क्या? दादाश्री : वापस लौटना। वापस लौटना चाहिए या तो इगोइज़म बिलकुल खतम करना चाहिए। ज्ञानी पुरुष हों तो ज्ञानी पुरुष 'ज्ञान' दे तो सब हो जाता है। चिंता किस तरह जायें? प्रश्नकर्ता : चिंता क्यों नहीं छूटती? चिंता से मुक्त होने के लिए क्या करना? दादाश्री : चिंता बंद हुई हो, ऐसा मनुष्य ही नहीं मिलेगा। कृष्ण भगवान के भक्त को भी चिंता बंद हुई नहीं होती है न! और चिंता से सारा ज्ञान अंधा हो जाता है, फ्रेक्चर हो जाये। संसार में एक मनुष्य ऐसा नहीं होगा कि जिसे चिंता नहीं होती हो। साधु-साध्वी सभी को कभी न कभी तो चिंता होती ही है। साधु को इन्कमटेक्स नहीं होता, सेल्सटेक्स नहीं होता, न भाड़ा होता है, फिर भी कभी न कभी चिंता होती है। शिष्य के साथ झंझट हो तो भी चिंता हो जाती है। आत्मज्ञान बगैर चिंता जाती नहीं है। एक घण्टे में तो तेरी सारी चिंताएँ मैं ले लेता हूँ और गारन्टी देता हूँ कि यदि एक भी चिंता हो तो वकील कर के अदालत में मुझ पर केस चलाना। ऐसे हमने हजारों लोगों को चिन्ता रहित किया हैं। ऐसा माँगना कि जो तेरे पास से कभी नहीं जाये। ये नाशवंत चीजें मत माँगना। कायमी सुख माँग लेना। हमारी आज्ञा में रहे और एक चिंता हो तो फिर दावा दायर करने की छूट दी है। हमारी आज्ञा में रहना। यहाँ सब मिले ऐसा है। इन सभी से शर्त क्या रखी है जानते हो तुम? एक चिंता हो तो मुझ पर दो लाख का दावा दायर करना।

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