Book Title: Chinta
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 13
________________ चिंत्ता चिंत्ता प्रश्नकर्ता : एयरकंडीशन। दादाश्री : हाँ, एयरकंडीशन। हिन्दुस्तान में अजूबा ही है न! प्रश्नकर्ता : अभी चिंताएँ सभी एयरकंडीशन में ही होती हैं। दादाश्री : हाँ, अर्थात वे साथ में ही होते हैं। चिंताओं के साथ एयरकंडीशन। हमें एयरकंडीशन की जरुरत नहीं पड़ती। ये अमेरिकनों की लड़कियाँ सब चली जाती हैं। उसकी चिंता उन्हें नहीं होती और हमारे लोगों को? क्योंकि हर एक की मान्यता अलग है। आयुष्य का एक्सटेन्शन मिला ? आप इस दुनिया में अभी दौ सौ एक साल तो रहोगे न? एक्सटेन्शन नहीं लिया क्या? प्रश्नकर्ता : एक्सटेन्शन मिले किस तरह? हमारे हाथ में तो कुछ नहीं है, मुझे तो नहीं लगता। दादाश्री : क्या बात करते हो? यदि जीना हाथ में होता तो मरते नहीं। यदि आयुष्य का एक्सटेन्शन नहीं मिलता हो तो किस लिए चिंता करते हो? जो मिला है, उसे ही आराम से भुगतो न। चिंता मोल लेना, मनुष्य स्वभाव चिंता से तो काम बिगडता है। यह चिंता से काम शत प्रतिशत के बजाय सत्तर प्रतिशत हो जाता है। चिंता काम को ऑब्स्ट्रक्ट (दखल) करती है। यदि चिंता नहीं हो तो बहुत सुंदर परिणाम आये। जैसे 'हम मरनेवाले हैं', ऐसा सभी को मालूम है। मृत्यु याद आने पर लोग क्या करते हैं? उसे धक्का देते हैं। हमें कुछ हो जायेगा तो, ऐसा याद आते ही धक्का देते हैं। उसी प्रकार जब अंदर चिंता होने लगे, तब धक्का लगा देना कि यहाँ नहीं भाई! हमेशा चिंता से सब बिगड़ता है। चिंता से मोटर चलायेंगे तो टकरा जाये। चिंता से व्यापार करें, वहाँ कार्य विपरित हो जाये। चिंता से संसार में यह सब बिगड़ा है। चिंता करने जैसा संसार है ही नहीं। इस संसार में चिंता करना वह बेस्ट फूलिशनेस (सर्वोत्तम मूर्खता) है। संसार चिंता करने के लिए है ही नहीं। यह इटसेल्फ क्रियेशन (स्वयं निर्मित) है। भगवान ने यह क्रियेशन (निर्माण) नहीं किया है। इसलिए चिंता करने के लिए यह क्रियेशन नहीं है। ये मनुष्य अकेले ही चिंता करते हैं, अन्य कोई जीव चिंता नहीं करते। अन्य चौरासी लाख योनियाँ हैं, पर कोई चिंता नहीं करता। ये मनुष्य नामक जीव जो लाल-बुझक्कड़ हैं, वे सारा दिन चिंता में जलते रहते हैं। चिंता तो प्योर इगोइज़म (निरा अहंकार) हैं। ये जानवर कोई चिंता नहीं करते और इन मनुष्यों को चिंता? ओ हो हो ! अनंत जानवर हैं, किसी को चिंता नहीं और मनुष्य अकेले ही जड़ जैसे है कि सारा दिन चिंता में जला करते हैं। प्रश्नकर्ता : जानवर से भी गये-गुजरे हैं न वे? दादाश्री : जानवर तो कई गुने अच्छे हैं। जानवर को भगवान ने आश्रित कहा हैं। इस संसार मे यदि कोई निराश्रित है, तो वे अकेले मनुष्य ही हैं और उनमें भी हिन्दुस्तान के मनुष्य ही शत प्रतिशत निराश्रित है, फिर इन्हें दु:ख ही होगा न! कि जिन्हें किसी प्रकार का आसरा ही नहीं है। मज़दूर चिंता नहीं करते और सेठ लोग चिंता करते हैं। मज़दूर एक भी चिंता नहीं करते, क्योंकि मज़दूर उच्च गति में जानेवाले हैं और सेठ लोग नीची गति में जानेवाले हैं। चिंता से नीची गति होती है, इसलिए चिंता नहीं होनी चाहिए। निपट वरिज़, वरिज, वरिज़। शकरकंद भट्ठी में भुनते हैं ऐसे संसार

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