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चिंत्ता
चिंता
की चिंता करें, वह हम समझते है कि बुद्धिमान मनुष्य को चिंता तो होती ही है, पर गया उसकी भी चिंता? हमारे देश में ऐसी चिंता होती है। क्षणभर पहले हो गया, उसकी चिंता क्या ? जिसका उपाय नहीं, उसकी चिंता क्या? कोई भी बुद्धिमान समझेगा कि अब कोई उपाय नहीं रहा, इसलिए उसकी चिंता छोड़ देनी चाहिए।
वे चाचा रो रहे थे मगर मैं ने उन्हें दो मिनट में ही पलट दिया । फिर तो 'दादा भगवान के असीम जय जयकार हो' बोलने लगे। तब आज सवेरे भी वहाँ रणछोड़जी केमंदिर में मिले, तब बोल उठे, 'दादा भगवान?' मैं ने कहा, 'हाँ, वही।' फिर कहे, 'सारी रात मैं तो आपका ही नाम लेता रहा।' इनको तो इधर घुमायें तो इधर, इनको ऐसा कुछ भी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : आपने उन्हें क्या कहा?
दादाश्री : मैं ने कहा, 'वे गहने वापस आये ऐसा नहीं है, हाँ, पर दूसरी तरह से गहने आयेंगे।'
प्रश्नकर्ता : आप मिल गये अर्थात बड़ा गहना ही मिल गया न!
दादाश्री : हाँ, यह तो अजूबा है। पर यह उसे किस तरह समझ आये? उसे तो उन गहनों के सामने इसकी क़ीमत ही नहीं होगी न। अरे, उसे चाय पीनी हो और हम कहें कि, 'मैं हूँ न, तुझे चाय का क्या काम है?' तब वह कहेगा, 'मुझे बिना चाय चैन नहीं आता, आप हो या नहीं हो।' इनको क़ीमत किसकी? जिसकी इच्छा है उसकी।
कुदरत के गेस्ट की साहेबी तो देखिए ! ___ इस वर्ल्ड (संसार) में कोई भी चीज़ जो बेश-क़ीमती होती है, वह फ्री ऑफ कोस्ट (मुफ्त) ही होती है। उसके ऊपर सरकारी कर कुछ भी नहीं रख सकते। कौन सी चीज़ क़ीमती है?
प्रश्नकर्ता : हवा, पानी।
दादाश्री : हवा ही, पानी नहीं। हवा पर सरकारी कर बिलकुल नहीं है, कुछ नहीं। जहाँ देखो वहाँ, आप जहाँ जायें, एनी व्हेर, एनी प्लेस, (कहीं भी, किसी भी जगह) वहाँ आपको वह प्राप्त होगी। कुदरत ने कितना रक्षण किया है आपका। आप कुदरत के गेस्ट (महेमान) हैं और गेस्ट होकर आप शोर मचाते हैं, चिंता करते हैं। इसलिए कुदरत के मन में ऐसा लगता है कि अरे, मेरे गेस्ट हुए पर इस आदमी को गेस्ट होना भी नहीं आता। तब फिर रसोईघर में जाकर कहेंगे, 'कढ़ी में नमक ज़रा ज्यादा डालना।' अबे मुए, गेस्ट होकर रसोईघर में घुसता है। वे जैसा परोसे वैसा खा लें। गेस्ट होकर रसोईघर में कैसे जा सकते हैं? अर्थात यह बेश-क़ीमती हवा फ्री ऑफ कोस्ट। उससे दूसरे नंबर पर क्या आता है? पानी आता है। पानी थोड़े-बहुत पैसे से मिलता है। और फिर तीसरा आया अनाज, वह भी थोड़े-बहुत पैसे में।
प्रश्नकर्ता : प्रकाश।
दादाश्री : लाईट तो होगा ही। लाईट तो, सूर्यनारायण मानो आपकी सेवा में ही बैठे हो, ऐसे साढ़े छह बजे आकर खड़े हो जाते हैं।
कहीं भी भरोसा ही नहीं यह तो हमारे हिन्दुस्तान के लोग तो इतने चिंतावाले हैं कि यह सूर्यनारायण यदि एक ही दिन की छुट्टी लें और कहें कि, अब फिर कभी छुट्टी पर नहीं जाऊँगा। तो भी दूसरे दिन इन लोगों को शंका होगी कि कल सूर्यनारायण आयेंगे या नहीं आयेंगे? सबह होगी या नहीं होगी? अर्थात नेचर (कुदरत) का भी भरोसा नहीं है। खुद अपने पर भी भरोसा नहीं है, भगवान का भी भरोसा नहीं है। किसी चीज पर भरोसा नहीं है। खुद की वाईफ पर भी भरोसा नहीं है।
खुद ही निमंत्रित की हुई चिंता। चिंता करे वह भी पड़ौसी का देखकर, पड़ौसी के घर गाड़ी है