Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ २] ' [ चिद्विलास कर्ता-धर्ता नहीं हूं। जीव भूल से परद्रव्य एवं परपरिणति को अपना समझने लगता है, जो दुःख का मूल कारण है।" पापके साहित्यसुजन की भाषा वि० सं० १७७६ के लगभग को हिन्दी गद्य भाषा है। इसमें ढ ढारी तथा ब्रजभाषा मिश्रित है। आप पण्डित टोडरमल जी से पूर्ववर्ती हैं, अतः श्रापके बाद पण्डित टोडरमलजी एवं पण्डित जयचन्दजी छाबड़ा की भाषा में काफी परिवर्तन एवं सुधार हुया है, फिर भी आपकी भाषा उससमय बड़ी ही लोकप्रिय समझी जाती थी । जब हम इसका अध्ययन करते हैं तो इसकी सरसता एवं सरलता का प्रगट अनुभव होता है । इस सन्दर्भ में चिद बिलास का ही निम्न अंश दृष्टव्य है : "कोई कहै संसार अनंत है, कैसे मिट ? ताका समाधान:वानरे का उरमार एता ही है, मूठी न छोड़ें है। सूबे का उरझार एता ही है, नलिनी को न छोड़ है। श्वान का उरझा र एता हो है, जो भूसं है । विबक जेवरी में सांप मान है, सो भय जब ताई ही है। मुग भांडली के मांहि जल मानि दौर है, एते ही दुःखी है । ऐसें प्रात्मा पर कौं आपा माने है, एता ही संसार है, न मान मुक्त हो है।'' ग्रन्थ के सम्बन्ध में पण्डित श्री दीपचन्दजी शाह ने 'चिद्विलास' नामक इस लघु ग्रन्थ में ग्रन्थ के नाम के अनुसार ही विषय-प्रतिपादन किया है। इसमें चैतन्य परमात्मा के अनन्त साम्राज्य का निरूपण किया गया है । अध्यात्मरुचि सम्पन्न मुमुक्षु समाज को यह ग्रन्थ विशेष प्रिय है, क्योंकि अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों पर इसमें खलकर मीमांसा को गई है. प्रात्मा के वमन का दिग्दर्शन कराया गया है। ___L, इसी पुस्तक के पृष्ठ १२८-१२६ पर इसका अनुवादित मश देखें।

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 160