Book Title: Charak Samhita
Author(s): Muni Charak
Publisher: Muni Charak

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २ ] मामुघि कादिवैशेषिक देह विधारणं तदपि दीर्घदीर्घ तरजीवितमूल कमित्येव मनसि निहिताकूतो विधतम्भमसंशयवित गडः पण्डिताभियुक्तोयुक्तोपलधुपलब्धत कालिक ने लोकिक सकल तत्वोमहातपामनिवरच रको भगवदात्रे य पुनर्वसूपदिष्टायुर्वेद व्यासभगवन्मनिवराग्निवेश विततायुर्वेद तन्वं प्रतिसंश्चिकीर्षयातिविपुलस्थलधी भिषजां हृदये विधारणाय परमानुजि क्षया विशदम धुर प्रसाद गुणगणोज्ज्वलवर्णपदमुक्ताफलजाले र शेषविशेषणाखिलार्थतत्त्वसूत्रेणेमं चिन्तामणि द्युमणिकान्तका तन्त ल. विहारहारं शारीरमानसागन्तुदोषदूषितधातुवैषम्य जसौम्याग्ने यविकारनिकरोपहतविकल कलेवरचेतसां स्वास्थवसंस्थापनात्पादनार्थ मतुल निर्मल करुणाईचेतसाऽग्रन्थीत् । तं पहुधा सुविचिन्त्य रविकान्तमिवाऽनवशेषाङ्गाष्यम् । चिन्तामणिमय तरलं शेषभाषितमप्याद्यमस्य ॥ १ ॥ जल्प कल्पतररेषनिर्मितः कल्पय त्यभिविचिन्तितं फलम् । जल्पितो हि सुधियासुधीगणे लभ्यमन्थमलं रसोत्तमम् ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only

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