Book Title: Charak Samhita
Author(s): Muni Charak
Publisher: Muni Charak

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ चरकसंहिता। तथा दुग्धेयन्माधुय्यं ततोऽधि कमिक्षुषु माधुर्य यथा षडसादशशब्दा इत्येवमादयः । धन्विच्छन्निति। अप्राप्तप्राप्तपनुकूल गत्यादि- . व्यापारोऽन्वेषणम्। इन्द्रमिति। दिपर मैश्वर्य इत्यस्माहातोरप्रत्ययान्तवेन राजमावबोध कस्येन्द्र शब्दस्य सहसलोचनेऽवत्तिज्ञापनायोतम मरे वरमिति। अमरेश्वरशब्देन हरिहरब्रह्मणामत्रलाभनिवासार्थमिन्द्र मिति । अथवा इन्द्र पदेन भतलस्य जन्तु वक्षिटत्वममरेवर पदेन देववक्षिटत्वं ज्ञापितम् । ननु भर. हाजोमनिः किं खस्य दोर्धायुबन्विच्छन्निन्द्रमपागम दुत् प्रजानामित्याशङ्कायाम्। किं स्वयमा कोऽन्येन वा नियुक्त इत्याशङ्कानिवासाय पारम्पये 1पदेशं प्रदर्शयन्नाह । ब्रह्मणा हि यथा प्रोक्तमायुर्वेदं प्रजापतिः । जग्राहनिखिलेना दावश्विनौ तु पुनस्तत: ॥ अश्विभ्यां भगवान शक्रः प्रतिपेदेह केवलम् । ऋषिप्रोक्तोमरद्वाजस्तस्माच्छक्रमुपागमत्। For Private And Personal Use Only

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