Book Title: Charak Samhita
Author(s): Muni Charak
Publisher: Muni Charak
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१४
चरकसंहिता।
र्थित्वेन ब्रह्माद्यपेक्षयाविशेषगणयोगात् शरण्यत्व व्याच क्षिरे तन्न गङ्गच्छते। ___ अथ ते शरणं शक्र ददृशुर्थ्यानचक्षुषेत्यनन्तरवचनस्यानर्थयात् । यदि तब शक्रस्याकृत शिष्यत्वेन शिष्यार्थित्वगुण योग एव ध्यानचक्षुषा शरण्यत्वेन दर्शने हेतुरित्यच्यते तदा ब्रह्मादीनामपि कृतशिष्यत्वेन शिष्यार्थित्वाभावेपि कृतशिष्यत्वेन शिष्यक-रणे सिविभाजन त्वादिगुणयोग स्थापि हेतुत्वं कल्पितुं किं न वोच यते । वस्तुतोऽत्र कत्नार्थे केवल शब्दोऽवधारणेतु हशब्दस्तेन कृत्स मेवाथर्वेदं प्रतिपेदे नत्वेकदेशमित्यर्थः । ध्यानचक्षुषा शक्रस्य श रण्यत्वे नदर्शने च प्रजापालनकर्ट त्वेनेवरनियोजितत्वं हेतुरिति सूचनाय भगवानिति शक्रस्य विशेषण मुक्तम् ।
ब्रह्मादयो हि सश्यादिकारो नतु साक्षात्यालकाः। पालममपि हि प्रजानां परम्परया तेषां न तु कश्चित् सर्वाः प्रजाः साक्षात्प्रतिपालयति किन्तु काश्चित् साक्षात्काश्चित् परम्पर येतितत्त्वम्। भरदाजोमुनिर्यस्मात् शक्रं गन्तुम षिप्रोतस्तस्माच्छ क्रमुपागमदित्यर्थः । ननु भरद्दाजोमुनिः कि निजस्य दीर्घजीविताय ऋषिभिः प्रोक्तोऽथवा
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