Book Title: Chandraprabhswamicharitam
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 3
________________ ॥ ३ ॥ ०.प्रस्तावना ० श्री जिनेश्वरदेवोनुशासन तेमनी गेरहाजरीमा आचार्यादि मुनिओ द्वारा चाले छे. तेओ पण श्रुतज्ञानना बले जीवे छे अने तेनाथी शासन प्रवावे छे. . . प्राचीन साहित्यमां आ श्रुतज्ञान विस्तारथी वणेलुछे. ते अप्राप्य बनतु जाय छे. तेथी ते सुलभ बने अने श्रीसंघमां योग्यता मुजब तेनो स्वाध्याय वधे माटे प्राचीन साहित्य संपादनमां आ 'श्री चन्द्रप्रभस्वामि-चरितम् नुसंपादन कयु छे. आ चरित्र संस्कृत, प्राकृत भाषा मय छे. प्रथम परिच्छेद संस्कृतमा छ. द्वितीय परिच्छेद प्राकृतमा छे. जे भाषा सरल अने चमत्कारिक छे. संस्कृत संदर्भमा संधिमा आठ अक्षरना पादमा ४-४ अने पांच पांच शब्दोनी संधि करीने टुंकमा विस्तार भाव समाव्यो छे. प्रासंगिक अने अन्तर्गत सुन्दर बोधक कथाओ मूकीने चरित्र बहुरसप्रद बनाव्युछे. आ चरित्र वि. सं. १२६४ मां सोमनाथ पाटणमा मात्र बे मासमा पूज्य आचार्यश्री देवेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजे रचेल छे. तेओश्री नागेन्द्रगच्छना श्री रामसू० म०, श्री चन्द्रसू० म०, श्री देवसू० म०, श्री अभयदेवसू० म०, श्रीषनेश्वरसू० म० ना शिष्य अने श्री जिनसिंहसू० म० ना गुरुभाइ हता. श्री शेरीसा तीर्थनी उत्पत्ति तेमणे करी छे तेवु नाभिनंदनोद्धार प्रस्ताव४ आदिमा वर्णवेलु छे. आ ग्रन्थ द्वारा श्रीसंघमा स्वाध्याय अने ते द्वारा आत्मबोध विकास पामे एज शुभ भावना. २०४२, पोष सुद २, रविवार -जिनेन्द्रसरि लाखाबावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र)

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