Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi
Author(s): Premsagar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 10
________________ अनुक्रम १. आशीवचन मुनिश्री विद्यानन्दजी. २. आमुख १-२० ३. लिपि : व्युत्पत्ति और विश्लेषण २३-५४ लिपि और लिपिकर, अक्षर, वर्ण, लेख-सामग्री, लिपि की प्राचीनता. ब्राह्मी लिपि ५५-११३ ब्राह्मी शब्द और उसका प्रयोग, ब्राह्मी लिपि का नामकरण, ब्राह्मी का पूज्य भाव, ब्राह्मी लिपि की शिक्षादीक्षा, ब्राह्मी लिपि : विकास की ओर, अष्टादश प्रकारा ब्राह्मी लिपि, प्रसारोन्मुखा ब्राह्मी, गुप्त लिपि, नागर लिपि, कुटिल लिपि, शारदा लिपि, ब्राह्मी से विकसित दक्षिणी लिपियाँ. ५. खरोष्ठी लिपि ११४-११९ ६. वर्ण-विपर्यय ७. अंकलिपि १२०-१२७ ८. विश्वभाषाओं की लिपि-संख्या १२८ ९. भारतीय लिपिमाला-स्वर और व्यञ्जन १२९ १०. चौबीस तीर्थकर अक्षर-माला-स्तोत्र १३०-३१ ११. अकारादि अक्षर : वर्ण तथा फल १३२-३४ १२. अंकानां वामतो गतिः १३. ४४३ ई. पू. के एक अभिलेख की ब्राह्मी लिपि १४. सम्राट् खारवेल (१७० ई. पू.) के शिलालेख को ब्राह्मी लिपि १३७ १५. शब्दानुक्रमणिका १३८ ११९ १३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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