Book Title: Brahmi Vishwa ki Mool Lipi Author(s): Premsagar Jain Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti View full book textPage 8
________________ उत्तर-पश्चिमी प्रान्तों की मुख्य लिपि थी खरोष्ठी। चीनी विश्वकोष फा-वान-शुलिन का यह कथन सत्य-सा लगता है कि उस के स्रष्टा कोई खरोष्ठ नाम के आचार्य थे। 'खरोष्ठ' की व्युत्पत्ति वृषभोष्ठ से मानना युक्ति-संगत है । वर्णविपर्यय से यह सम्भव है। इस के अतिरिक्त, प्रजापति वृषभदेव ने अपनी पुत्रियों को बायें से दायें लिखना सिखाया तो दायें से बायें भी। साथ ही, ब्राह्मी के अठारह भेदों में खरोष्ठी का नामोल्लेख हुआ है, ऐसा समवायांग आदि जैन ग्रन्थ और ललितविस्तर जैसे बौद्ध ग्रन्थ से प्रमाणित ही है । जैन सन्दर्भ में ब्राह्मी लिपि पर एक ग्रन्थ की रचना होनी ही चाहिए, ऐसा मेरे मन में आया था। आज से तीन वर्ष पूर्व, मैंने यह बात डॉ. प्रेमसागर जैन से कही। काम कठिन था, किन्तु वे सहमत हो गये । लगन के साथ लगे रहे। कार्य सम्पन्न हुआ। मुझे पूर्ण सन्तोष है। प्रसन्नता है। धर्म और धर्म के नाना दृष्टिकोणों के तुलनात्मक विवेचन तथा विभिन्न भाषाओं के विशद अध्ययन ने ही नहीं, अपितु उन्मुक्त खुले चिन्तन ने डॉ. प्रेमसागर जैन को एक ऐसी व्यापक निष्ठा दी है, जिससे वे मन साध कर काम कर पाते हैं। यह ग्रन्थ उनके सधे मन और सतत श्रम का प्रतीक है। उनका मंगल हो । महावीर जयन्ति, विद्यान-पान वीर निर्वाण सं. २५०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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