Book Title: Bhini Kshanono Vaibhav
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Bhadrankaroday Shikshan Trust
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श्रीवीरस्तवः ॥ जस्स सासणवी अत्थमइ नो कया जो समुज्जालई तिहुयणं सध्या । नाणकिरणोहणासियतमोवद्दलो जयउ सो वद्धमाणो जिणाखंडलो ॥१॥
सुद्धनियअप्परुवस्स झाणे रओ परमअविगप्पआणंदसुहसंगओ । जम्मजरमरणमग्गे य दत्तग्गलो
जयउ सो बद्धमाणो जिणाखंडलो ॥२॥ समवसरणम्मि गयणोवमे उग्गओ सुमुणिगणतारयालंकि ओडच्चभुओ। पुण्णचंदो व्व जो रेहइ समुज्जलो जयउ सो वद्धमाणो जिणाखंडलो ॥३॥
झायई दब्बगुणपज्जवाणं ठिइं पण्णवड़ तह जहत्थं तिलोगट्टिइं। नामगहणेण वि विणासियामंगलो
जयउ सो बद्धमाणो जिणाखंडलो ॥४॥ तिण्णभवसिंधुओ भुवणजणबंधुओ सोसिओ जेण तवसा य कम्मंधुओ। परमकरुणासुधासित्तभूमंडलो जयउ सो वद्धमाणो जिणाखंडलो ॥५॥
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पल
४०
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