Book Title: Bharatiya Shilpkala ke Vikas me Jain Shilpkala ka Yogadan Author(s): Shivkumar Namdev Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 6
________________ पद्मासनरूढ़ इस प्रतिमा के केश घुघराले एवं उष्णीष- कलचुरि कालीन तीर्थ कर प्रतिमायें आसन एव बद्ध हैं, कर्ण की लौंडी लम्बी एवं हृदय पर श्रीवत्स स्थानक मुद्रा में प्राप्त हुई है । कुछ संयुक्त प्रतिमाये चिन्ह अंकित है। उनका लांछन नाग तकिया के रूप भी उपलब्ध हुई हैं। तीर्थ करों में सर्वाधिक प्रतिमाये कुण्डली मारे बैठा है जिसके सातों फण उनके ऊपर तीर्थ कर ऋषमदेव की हैं। छत्र की भांति तने हुए हैं। कलचुरि युगीन भगवान ऋषभनाथ की सर्वाधिक उत्तरगुप्तकाल में कला के अनेक केन्द्र थे। कला प्रतिमायें कारीतलाई से उपलब्ध हुई हैं । ये श्वेत तांत्रिक भावना से ओत-प्रोत थी। यद्यपि इस काल में बलुआ पाषाण से निर्मित हैं। सम्प्रति ये सभी प्रतिमाये कलाकारों का क्षेत्र विस्तत हो गया था परन्तु वे प्रतिमा रायपूर संग्रहालय में संरक्षित हैं । कारीतलाई के निर्माण में स्वतंत्र नहीं थे अपितु अपनी रचनाओं को अतिरिक्त तेवर (जबलपुर), मल्लार एवं रतनपुर शास्त्रीय नियमों के आधार पर ही रूप प्रदत्त करते थे। (बिलासपूर) आदि से भी आदिनाथ की प्रतिमाये बंधन के फलस्वरूप मध्ययुगीन जैन कला निष्प्राण सी उपलब्ध हुई हैं। तेवर से उपलब्ध, सम्प्रति जबलपुर के हो गई थी। इस काल की एक प्रमुख विशेषता जो हमें हनुमानताल जैन मंदिर में संरक्षित 7 फुट 4 इच परिलक्षित होती है, वह है-कला में चौबीस तीर्थकरों ऊंची ऋषभनाथ की प्रतिमा अतिकलापूर्ण एवं प्रभावो की यक्ष-यक्षिणी को स्थान प्रदान किया जाना। मध्य त्पादक हैं। प्रतिमा के अंग प्रत्यंग सुन्दर एवं सुडौल है कालीन जैन प्रतिमाओं में चौकी पर आठ ग्रहों की मस्तक पर धुघराले केश आकर्षक हैं । उभय स्कंध पर आकृति का अंकन है जो हिन्दुओं के नव-ग्रहों का ही केश गुच्छ लटक रहे हैं। अनुकरण है। द्वितीय तीर्थकर अजितनाथ की आसन मुद्रा में दो मध्यकाल में मध्यप्रदेश में जैन धर्म की प्रतिमायें बह एवं चन्द्रप्रभ, शांतिनाथ, नेमिनाथ की एक-एक मूर्ति लता से उपलब्ध होती हैं। मध्यप्रदेश के यशस्वी राज- प्राप्त हुई है। तीर्थ कर शांतिनाथ की एक आसन एक वंश, कलचुरि, परमारों एवं चंदेल नरेशों के काल में दो स्थानक मुद्रा में प्राप्त प्रतिमायें विशेष उल्लेखनीय उनकी धार्मिक सहिष्णुता के फलस्वरूप जैन धर्म भी हैं। बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ की एक सुन्दर प्रतिमा इस भू भाग में पुष्पित एवं पल्लवित हुआ । भारतीय धुबेला के संग्रहालय में संरक्षित हैं। विवेच्य युगीन जैन कला में मध्यप्रदेश का योगदान महत्वपूर्ण है। पार्श्वनाथ की प्रतिमायें सिंहपुर (शहडोल), पेन्ड्रा अखिल भारतीय परम्पराओं के साथ-साथ मध्यप्रदेश (बिलासपुर) कारीतलाई (जबलपुर) आदि से उपलब् की अपनी विशेषताओं को भी यहाँ की कला ने उचित हुई हैं। महावीर की आसन प्रतिमाओं में कारीतलाई स्थान दिया। से उपलब्ध प्रतिमा महत्वपूर्ण है। महावीर की श्याम 20. कारीतलाई की अद्वितीय भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमायें-शिवकुमार नामदेव, अनेकांत, अक्टूबर दिसम्बर 19731 21. कलिचुरी कालीन भगवान शांतिनाथ की प्रतिमायें-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, अगस्त 1972 । 22. धुबेला संग्रहालय की जैन प्रतिमायें-शिवकुमार नामदेव, श्रमण-जून 1974 । १८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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