Book Title: Bharatiya Shilpkala ke Vikas me Jain Shilpkala ka Yogadan
Author(s): Shivkumar Namdev
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
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________________ दिलवाडा के पांच जैन मन्दिर श्वेत सगमरमर से निर्मित प्रतिमायें हैं। रचना शेली की दृष्टि से ये 13वीं सदी है। विमलशाह का मन्दिर जिसका निर्माण 1030 ई. की ज्ञात होती हैं। में तथा वस्तुपाल एवं तेजपाल के मन्दिर 1231 ई. में बनवाये गये थे। विमलशाह के मन्दिर में जैन तीर्थ कर गजरात जैन शिल्पकला की दष्टि से समद्ध राज्य आदिनाथ और अन्य दो मंदिरों में नेमिनाथ जी की है। गुजरात के चालुक्य राजाओं के काल में अनेक मतियाँ हैं। सादड़ी से 14 मील दूर अरावली की जेन मदिरों का निर्माण हुआ। गुजरात के बनासकांठा पहाड़ी टेकड़ी में राणापुर (राणापुर) के मंदिरों में जिले में स्थित कुमारिया 57 एक प्राचीन जैन तीर्थ है / नेमीनाथ, आदिनाथ एवं पार्श्वनाथ के मन्दिर प्रमुख हैं। यहां पांच श्वेताम्बरीय, श्वेत संगमरमर से निर्मित जैन यहां के आदिनाथ मन्दिर में ऋषभदेब की विशाल मंदिर हैं। इनमें महावीर का मंदिर सबसे प्राचीन एवं पदमासन मूर्ति अत्यन्त मनोज्ञ एवं आकर्षक है कुल भव्य है। मूलनायक के अतिरिक्त गूटमंडप में परिकर मिलाकर वेदियों में 425 मूर्तियां हैं। इसी प्रकार नेमि- युक्त दो अन्य कायोत्सर्गासन की प्रतिमायें हैं। कलापूर्ण नाथ एवं पार्श्वनाथ मन्दिर में अनेकों जैन प्रतिमायें हैं। कोरणीयुक्त रंग मडप के दूसरे भागों की छत में आबू के विमलवराही जैसे जैन चरित्रों के विभिन्न द्रश्य है। महाराष्ट्र प्रदेश में भी जैन प्रतिमायें बहुसंख्या में गढ़ मण्डप में दो विशाल कायोत्गर्ग मूर्तियाँ-शांतिनाथ उपलब्ध होती हैं। दिगंबर केन्द्र एलोरा (9वीं सदी) एवं अजितनाथ की हैं / श्वेताम्बर परंपरा का निर्वाह की गुफायें तीर्थ कर प्रतिमाओं से भरी पड़ी हैं / छोटा करने वाली बारहवीं सदी की दो चतुर्भुज पदमावती कैलास गहा संख्या 30) में ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ तथा की प्रतिमायें कूमारिया के नेमिनाथ मन्दिर की पश्चिमी महाबीर की बैठी पाषाण मूर्तियां पदमासन एवं ध्यान देवकुलिका की वाह्य भिति पर उत्कीर्ण है / 8 गुजरात मदा में है। प्रत्येक तीर्थकर के पावं में चांवर धारण के अन्य मन्दिरों में शांतिनाथ, कुभेश्वर, संभवनाथ किये यक्ष तथा गंधर्व हैं। ऋषभनाथ के कंधे पर केश आदि मुख्य हैं / गुजरात के बडनगर में चालुक्य नरेश विखरे हैं। पाश्वनाथ के सिर पर सात सर्पफण हैं / मूलराज (642-997 ई.) के काल का आदिनाथ सिहासन पर बैठे महावीर की प्रतिमा के ऊपरी भाग में मन्बिर है / मन्दिर के देवकूलिकाओं में आदिनाथ की छत्रदीख पडता है। एलोरा की 30 से 34 क्रमांक यक्षयक्षिणी अंकित हैं / यहीं पर चक्र श्वरी की भी तक की गुफायें जैन धर्म से सम्बन्धित हैं। इन्द्रसभा प्रतिमा है। गुका (संख्या 33) की उत्तरीय दीवार पर पार्श्वनाथ, दक्षिण पार्श्व में गोम्मटेश्वर-बाहवलि के अतिरिक्त उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि महावीर एवं अन्य तीर्थकर मूर्तियां हैं। जगन्नाथ गुफा भारतीय शिल्पकला के विकास में जैन शिल्पकला के बराण्डा में पाश्र्वनाथ तथा महावीर के अतिरिक्त का भी महत्वपूर्ण स्थान है। भारत की प्राचीन संस्कृति स्तर पर चौबीस तीर्थकरों की छोटी-छोटी मूर्तियां को जानने के लिये जैन शिल्पकला का अध्ययन हैं। एलोरा की एक गुफा में अंबिका की मानव कद आवश्यक है। भिन्न-भिन्न कालों और ढंगों पर बनी प्रतिमा है। मूर्तियों से मूनिकला के विकास पर गहरा प्रकाश पड़ता है। ये इसके अतिरिक्त विभिन्न कालीन योगियों के आसन अंकाई-तंकाई में जैनों की सात गुफाये हैं। ये छोटी मुद्रा, केश और प्रतिहार्यों पर भी काफी प्रकाश डालती होते हा भी शिल्प कलापेक्षया अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। हैं। इन मूर्तियों के अध्ययन से भारतीय लोगों की तीसरी गफा के छोर पर इन्द्र और इन्द्राणी हैं। इसके वेशभूषा आदि का ज्ञान होता है / अतिरिक्त शांतिनाथ, पार्श्वनाथ एवं गवाक्ष में जिन 57. भारिया का महावीर मन्दिर-श्री हरीहरसिंह, श्रमण, नवम्बर-दिसम्बर 1974, कुभारिया का कला / पूर्ण महावीर मन्दिर-श्री अगरचन्द नाहटा, श्रमण अप्रैल 19741 58. ब्रीफ सर्वे आफ द आइकनोग्राफिक डैटा एट भारिया-नार्थ गुजरात, सम्बोधि, खण्ड 2, अक 1, अप्रैल 1973, पृ. 131 162 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org