Book Title: Bharatiya Shilpkala ke Vikas me Jain Shilpkala ka Yogadan
Author(s): Shivkumar Namdev
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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Page 11
________________ पार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा कायोत्सर्ग तथा पीछे सर्प फण के साथ है । यहां से उपलब्ध धातु प्रतिमायें कमलासन पर खड़ी हैं । राजग्रह निवासी कन्हैयालालजी श्रीमाल के संग्रह में एक प्रस्तर पट्टिका है । इसके निम्न भाग में महाबीर की प्रतिमा है । ऊपर के एक भाग में भाव शिल्प है जिसका सम्बन्ध महावीर से ज्ञात होता 52 नालंदा से उपलब्ध एवं नालंदा संग्रहालय में संरक्षित ललित मुद्रा में पद्म पर विराजमान चतुर्भुजी देवी के मस्तक पर पांच सर्पफण प्रदर्शित हैं । देवी की भुजाओं में फल, खड़ग, परशु एवं चिनमुद्रा में पदमासन का स्पर्श करती देवी की भुजा में पद्म नालिका भी स्थित है । 3 केवल सर्पफण से ही इसका समीकरण पदमावती से करना उचित नहीं है । राजस्थान के ओसिया 54 नामक स्थल में महावीर का एक प्राचीन मंदिर है । यह 9 वीं सदी की रचना है । मंदिर में विराजमान महावीर की एक विशालकाय मूर्ति है । इसी स्थल से पार्श्वनाथ की एक धातु प्रतिमा उपलब्ध हुई थी जो सम्प्रति कलकत्ता के एक मंदिर में है । इस देवालय के मुखमण्डल के ऊपरी छज्जे पर पद्मावती की प्रतिमा उत्कीर्ण है । कुक्कुट - सर्प पर विराजमान द्विभुज यक्षी की दाहिनी भुजा में सर्प और arat में फल स्थित है । स्पष्ट है कि पद्मावती के साथ 8वीं सदी में ही वाहन कुक्कुट सर्प एवं भुजा में सर्प को सम्बद्ध किया जा चुका था । ग्यारवीं सदी की एक अष्टभुज पद्मावती की प्रतिमा राजस्थान के अलवर जिले में स्थित झालरपाट्टन के जैन मंदिर की दक्षिणी वेदिका बंध पर उत्कीर्ण है । ललित मुद्रा में मट्टासन पर विराजमान यक्षी की भुजाओं में वरद, वज्र, पद्मकलिका, कृपाण, खेटक, घण्ट एवं फल प्रदर्शित है । Jain Education International विमलशाह गुजरात के प्रतापी नरेश भीमदेव के मंत्री थे । इन्होंने ग्यारहवीं सदी में विमलवसही का निर्माण कराया था । इसके गुढ़मण्डप के दक्षिणी द्वार पर चतुर्भुजी पद्मावती की आकृति उत्कीर्ण है । विमलवसही की देवकुलिका 49 के मण्डप वितान पर उत्कीर्ण षोडशभुजी देवी की सम्भावित पहचान महाविद्या वैरोट्या एवं यक्षीं पद्मावती दोनों ही से की जा सकती है । सर्प के सप्तकणों का मण्डन जहां देवी पद्मावती की पहचान का समीकरण करता है, वहीं कुक्कुट सर्प के स्थान पर वाहन के रूप में नाग का चित्रण एवं भुजाओं में सर्प का प्रदर्शन महाविद्या वैद्या से पहचान का आधार प्रस्तुत करता है । जयपुर के निकट चांदनगांव एक अतिशय क्षेत्र है । "यहां महावीर जी के विशाल मंदिर में महावीर की भव्य सुन्दर मूर्ति है । जोधपुर के निकट गॉधाणी तीर्थ में भगवान ऋषभदेव की धातु मूर्ति 937 ई. को है । बूंदी "" से 20 वर्ष पहले कुछ प्रतिमायें प्राप्त हुई थीं । उनमें से तीन अहिच्छत्र ले जाकर स्थापित की गई हैं। तीनों का रंग हल्का कत्थई है, एयं तीनों शिलापट्ट पर उत्कीर्ण हैं । एक पर पार्श्वनाथ उत्कीर्ण हैं | चौहान जाति की एक उप-शाखा देवड़ा के शासकों की भूतपूर्व राजधानी सिरोही की भौगोलिक सीमाओं में स्थित देलवाडा के हिन्दू एवं जैन मंदिर प्रसिद्ध हैं । 52, खण्डहरों का वैभव - मुनि कांतिसागर, पृ. 126 । 53. आर्कियालाजीकल सर्वे आफ इन्डिया, ऐनुअल रिपोर्ट 1930-34, भाग 2, फलक 68, चित्र बी । 54. ओसिया का प्राचीन महावीर मन्दिर - अगरचन्द जैन नाहटा, अनेकांत, मई 1974 55. खण्डहरों का वैभव - मुनि कांतिसागर - पृ. 71 । 56. अहिच्छत्र - श्री बलिभद्र जैन, अनेकांत, अक्टूबर-दिसम्बर 1973 । १६१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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