Book Title: Bharatiya Shilpkala ke Vikas me Jain Shilpkala ka Yogadan Author(s): Shivkumar Namdev Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 7
________________ बलुआ पाषाण निर्मित कायोत्सर्गासन की एक प्रतिमा मध्यप्रदेश के विश्व प्रसिद्ध कला तीर्थ खजुराहो में जबलपुर से उपलब्ध हुई थी जो सम्प्रति फिल्जेलफिया चन्देल नरेशों के काल में निर्मित नागर शैली के देवाम्यूजियम आफ आर्ट में संग्रहीत है । मूर्ति में अंकित लय वास्तु वैशिष्ट्य एवं मूर्ति संपदा के कारण गौरवसिंह के कारण यह महावीर की ज्ञात होती है। शाली है। यहाँ के जैन मंदिरों में जिन मतियां प्रतिष्ठित हैं और प्रवेश द्वार तथा रथिकाओं में विविध जैन विवेच्य आसन एवं स्थानक प्रतिमाओं के अतिरिक्त देवियाँ । देवालयों के ललाट बिब में चक्र श्वरी यक्षी तीर्थकरों की द्विमूर्तिकायें भी प्राप्त हुई हैं । ये भी प्रदर्शित है एवं द्वार शाखाओं तथा रथिकाओं में अधिस्थानक एवं आसन मुद्रा में हैं। कारीतलाई से प्राप्त कांशतः अन्य जैन देवी देवता जैसे जिनों, विद्याधरों द्विमतिका प्रतिमायें रायपुर संग्रहालय में संरक्षित हैं। शासन देवताओं आदि की मूर्तियाँ हैं। वर्धमान की मां ने जो सोलह स्वप्न देखे थे वे सब जैन देवालयों कलचुरियूगीन पाश्र्वनाथ एवं नेमिनाथ की एक (पार्श्वनाथ को छोड़कर) के प्रवेश द्वार पर प्रदर्शित मूर्तिका सम्प्रति फिल्डेलफिया म्यूजियम ऑफ आर्ट में हैं । जैन मूर्तियां प्रायः तीर्थंकरों की हैं, जिनमें से संरक्षित है । कृष्ण बादामी प्रस्तर से निर्मित दसवीं - वृषम, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, पद्मप्रभु, शांतिनाथ सदी की इस द्विमूर्तिका में तीर्थ कर एक वट वृक्ष के एवं महावीर की मूर्तियाँ अधिक हैं।30 नीचे कायोत्सर्गासन में है। बुन्देलखण्ड के जैन तीर्थ अहार (टीकमगढ से 12 विवेच्ययुगीन जैन शासन- देवियों की मूर्तियाँ मील के प्राचीन देवालय में बाईस फुट के आकार की बहुतायत से प्राप्त हुई हैं । ये स्थानक एवं आसन दोनों एक विशाल शिला है, इसी शिला पर अठारह फुट ऊँची तरह की है। उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि कलचुरि भगवान शांतिनाथ की एक कलापूर्ण मूर्ति सुशोभित नरेशों के काल में निर्मित अधिकांश प्रतिमायें दसवीं है। इसे परमादिदेव चन्देल के काल में संवत् 1237 एवं बारहवीं सदी के मध्य निर्मित हुई थीं । मूर्तियाँ वि. में स्थापित किया गया था। बायीं ओर की बारह शास्त्रीय नियमों पर आधारित हैं। उस मूर्ति कला पर । फुट की कुन्थुनाथ की मूर्ति भी सुन्दर है । गुप्तकालीन मूर्तिकला का प्रभाव अवश्य पड़ा है फिर भी कलचुरि कालीन जैन प्रतिमाओं में कुछ रूढ़ियों का प्रयाग नगरसभा के संग्रहालय में खजुराहो से दृढ़ता पूर्वक पालन किया गया है ।23 उपलब्ध 10 वीं सदी की निर्मित पार्श्वनाथ की एक 23. स्टैला केमरिच-इन्डियन स्कल्पचर इन द फिल्डेलफिया म्यूजियम आफ आर्ट, पृष्ठ 82 । 24. कारीतलाई की द्विमूर्तिका जैन प्रतिमायें-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, सितम्बर 1975। 25. स्टला कमरिच-इन्डियन स्कल्पचर इन द फिल्डेलफिया म्यूजियम ऑफ आर्ट, पृ. 83 । 26. कलचुरी कला में जैन शासन देवियों की मूर्तियां-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, अगस्त 1974 । 27. भारतीय जन शिल्प कला को कलचुरि नरेशों की देन, शिवकुमार नामदेव, जैन प्रचारक, सितम्बर अक्टूबर 19741 28. भारतीय जैन कला को कलचुरि नरेशों का योगदान-शिवकुमार नामदेव, अनेकांत-अगस्त 1974। 29. जन कला तीर्थ-खजुराहों-शिवकुमार नामदेव, श्रमण, अक्टूबर 1974 । 30. खजुराहो की अद्वितीय जैन प्रतिमायें-शिवकुमार नामदेव, अनेकांत, फरवरी 19741 31. खण्डहरों का वैभव-मुनि कांतिसागर पृ. 246-47 । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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