Book Title: Bharatiya Shilpkala ke Vikas me Jain Shilpkala ka Yogadan
Author(s): Shivkumar Namdev
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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Page 5
________________ प्रतिमाओं में से कुछ पर गंधार कला का स्पष्ट प्रभाव में निर्मित महावीर की एक प्रतिमा मथुरा संग्रहालय में दृष्टिगोचर होता है । यहां से उपलब्ध ऋषभनाथ की है। यह उत्थित पद्मासन में है।16 एक स्थानक प्रतिमा महत्वपूर्ण है। प्रतिमा का प्रभा । मण्डल एवं शरीर गठन कला की दृष्टि से सुन्दर नहीं। ____सीरा पहाड़ की जन गुफाये तथा उनमें उत्कीर्ण मनोहर तीर्थकर प्रतिमाओं का निर्माण इसी काल में है । ओष्ठ मोटे प्रतीत होते हैं । हुआ। यहां से प्राप्त पार्श्वनाथ की मूर्ति सप्तफणों से युक्त राजमिरि की वैभार पहाड़ी पर एक खंडित देवा- पदमासनरूढ है। भारत कला भवन काशी में संरक्षित लय के आले में एक प्रतिमा पदमासनस्थ ध्यानावस्थित राजघाट से प्राप्त धरणेन्द्र एवं पदमावती सहित पावहै, प्रतिमा के मूर्तितत्व पर मध्य में एक युवा राज- नाथ की प्रतिमा कला की दृष्टि से सुन्दर है। कुमार अकित है जिनके दोनों पार्श्व में पैरों के निकट शंख हैं। प्रभामण्डल से युक्त इस प्रतिमा को कुछ वर्धमान महावीर को दीक्षा ग्रहण करने के पूर्व विद्वानों ने नेमिनाथ को माना था, परन्तु वास्तव में जीवंत स्वामी के नाम से जाना जाता था । जीवंत यह प्रतिमा चक्र-पुरुष की है जो गुप्तयुगीन विचार स्वामी की गुप्तयुगीन दो प्रतिमायें बड़ौदा संग्रहालय17 में धारा है । इस प्रतिमा के दोनों ओर दो जिन पदमासन सुरक्षित हैं । राजकीय परिधान में होने से उनकी में बैठे हैं। मस्तक प्रभामण्डल से सुशोभित हैं । अन्य पहचान सरलता से हो जाती है। अकोठा18 से प्राप्त आलों में भी तीर्थकर प्रतिमायें हैं । शैली की दृष्टि से प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ की एक कांस्य प्रतिमा कला ये ई. चौथी सदी की ज्ञात होती है। की दृष्टि से सुन्दर है । प्रतिमा नग्न है एवं उसके मुर्तितल का पता नहीं है। प्रतिमा के अर्ध निमीलित गुप्तयुगीन बेसनगर (ग्वालियर संग्रहालय) से नेत्र योग की ध्यानमुद्रा की ओर संकेत करते हैं। प्रतिमा प्राप्त एक प्रतिमा के प्रभामण्डल के दोनों ओर उड़ते का काल 450 ई. ज्ञात होता है। हुए मालाधारी अंकित हैं । प्रभामण्डल कुषाण शैली का है । विवेच्य युगीन मथुरा संग्रहालय की दो प्रति छठवीं सदी के तृतीय चरण में पाण्डवंशियों ने मायें। शैली की दृष्टि से बनारस स्कूल के शिल्प की सरमपूरीय राजवंस को समाप्त कर दक्षिण कोशल को तरह हैं। सारनाथ से प्राप्त अजित नाथ की प्रतिमा का अपने अधिकार में कर श्रीपुर (सिरपुर, रायपुर जिला) डॉ. साहनी ने गुप्त संवत् 61 माना है, यह काशी को अपनी राजधानी बनाया। इस काल की पार्श्वनाथ की संग्रहालय में है । गुप्त नरेश कुमारगुप्त प्रथम के काल एक प्रतिमा" सिरपुर से उपलब्ध हुई । ध्यानावस्था में 12. स्टेडीज इन जैन आर्ट-यू. पी. शाह, चित्र फलक 6, क्रमांक 171 13. वही, आकृति 18।। 14. वही, चित्र फलक 10, आकति क्रमांक 241 15. वही, चित्र फलक 11, आकृति क्रमांक 25-261 16. इम्पीरियल गुप्त, आर. डी. बनर्जी, फलक 28 । 17. अकोठा बोन्ज-यू. पी. शाह, पृ. 26-28।। 18. स्टेडीज इन जैन आर्ट-यू. पी. शाह, फलक 8, आकृति 191 19. महत घासीराम स्मारक संग्रहालय रायपुर का सूची पत्र भाग 2, चित्र फलक 3 क। १८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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