Book Title: Bharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय जैनधर्म विशुद्ध मानवतावाद पर टिका भारतीय संस्कृति का कदाचित् प्राचीनतम धर्म है जिसने अहिंसा और अपरिग्रह का अनुपम सन्देश देकर समस्त मानव को राहत की सांस दी है। समता, आत्मपुरुषार्थ, सर्वोदय, कर्मवाद, आत्म-स्वातन्त्र्य आदि जैसे मानवीय सिद्धान्तों की प्रस्थापना कर जैनधर्म ने जातिवाद और वर्गभेद की अभेद्य दीवालों को नेस्तनाबूत कर समाज में एक नयी चेतना दी है। इतना ही नहीं, उसने मानवतावादी विचारधारा को साहित्य कला और स्थापत्य में भी अंकित किया है। जैनधर्म ने वस्तुत: भारतीय संस्कृति के लगभग सभी क्षेत्रों में अपना स्तुत्य योगदान दिया है। साहित्य की सारी विद्याएँ भी उसने समृद्ध की हैं और अचार-विचार को भी परिष्कृत कर सांस्कृतिक क्षेत्र को आपूर किया है। हमारे पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक डॉ० भागचन्द्र जैन भास्कर जैनधर्म और भारतीय संस्कृति के निष्णात विद्वान् है। भारतीय संस्कृति जैनधर्म का अवदान विषय पर हो रही संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन के रूप में प्रस्तुत उनका यह व्याख्यान प्रकाशित कर हमें प्रसन्नता हो रही है। आशा है इससे पाठकगण लाभान्वित होंगे। भूपेन्द्र नाथ जैन सचिव पार्श्वनाथ विद्यापीठ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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