Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Author(s): Ajit Prasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal
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तीसरा अधिवेशन अक्टूबर १६०० में तीसरा अधिवेशन मथुरा में सेठ द्वारिकादासजी के सभापतित्व में हुश्रा । नीचे लिखे कार्य करने का निश्चय किया गया । (१) प्रत्येक जैन को सदस्यता का अधिकार है। चाहे वह अंग्रेजी
भाषा जानता हो या नहीं। (२) ऐसोसियेशन के मुखपत्र रूप, हिन्दी जैनगज़ट का क्रोडपत्र
अंग्रेजी में प्रकाशित हो। (३) काम करने की इच्छा रखनेवाले शिक्षित जैनियों की सूची
बनाई जावे। (४) जैनधर्म के मुख्य सिद्धान्त और मान्यता स्पष्ट सरल भाषा
में पुस्तकाकार प्रकाशित किये जावें। (५) समस्त जीव दयाप्रचारक और मद्य-निषेधक संस्थाओं से
सहयोग और पत्र-व्यवहार किया जावे । (६) भारतीय सरकार को लिखा बाय कि समस्त गणना-प्रधान संग्रह-पुस्तकों में जैनियों के लिये अलग स्तंभ बनाया जाय । ।
ऊपर लिखे प्रस्तावों पर काम होने लगा । सदस्य संख्या २५० हो गई । कुछ परिजन-देहावसान के कारण श्रीयुत सुलतानसिंहजी को और वकालत का काम बढ़ जाने से बाबूलाल जी को, अवकाश लेना पड़ा । मास्टर चेतनदासजी ने मंत्रित्व का भार स्वीकार किया। जैन इतिहास सोसाइटी का स्थापना हो गई। उसके मन्त्री श्रीयुत बनारसी दास M. A. हेडमास्टर लश्कर कॉलेज ग्वालियर ने जैन धर्म की प्राचीनता के प्रमाण देकर एक निबन्ध पुस्तकाकार प्रकाशित किया।
चौथा अधिवेशन अक्टूबर १९०२ में चौथा अधिवेशन फिर मथुरा में सेठ द्वारिकादासजी, सुपुत्र राजा लक्ष्मणदास जी, के सभापतित्व में सम्पन्न