Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Author(s): Ajit Prasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal

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Page 37
________________ २२ ) चुके, मगर साम्प्रदायिक भेद-प्रमेद घटने की जगह बढ़ते ही जाते हैं। कचहरियों में लाखों रुपया बरबाद हो चुका, पारस्परिक प्रेम और गो-वत्स वात्सल्य भाव का अभाव होकर ईर्षा-द्वष की वृद्धि हो रही है, धर्म की तात्विक वास्तविक क्रियाओं को गौण करके दिखावे के लिये, नामवरी के वास्ते, व्यापार वृद्धि के श्राशय से धर्म का दिखावा करके आपस में मारकाट और मुकदमेबाजी जैनी लोग कर रहे हैं, अहिंसा धर्म का झंडा फहराने वाले, हिंसा का व्यवहार कर रहे हैं । इस अधिवेशन में महात्मा गांधी भी पधारे थे। पन्द्रहवाँ अधिवेशन पन्द्रहवाँ अधिवेशन अजिताश्रम लखनऊ में श्री माणिकचन्दजी वकील खंडवा के सभापतित्व में २९, ३०, ३१ दिसम्बर १६१६ को हुा । इस अधिवेशन में रायबहादुर सखीचन्दजी सुपरिन्टेन्डेन्ट पुलिस पूर्णिया से पधारे थे । २५ दिसम्बर को महामण्डल के प्रारम्भिक अधिवेशन की योजना श्रीयुत दयाचन्दजी गोयलीय मन्त्री जीवदया विभाग ने बम्बई बीवहितकारी सभा के सहयोग में की। यह सम्मिलित सभा अजिताश्रम के विशाल उद्यान में ह्य एटे रोड पर हुई। उन्हीं दिनों में नैशनल कांग्रेस, नैशनल कान्फरेंस आदि सार्वजनिक सभा लखनऊ में हो रही थी। हमारी सभा का शामियाना अनोखी शान का था । मखमल पर जरदोज़ी बना हुआ "अहिंसा परमोधर्मः यतो धर्मस्ततो पयः" का निशान चमक रहा था। इसी प्रकार मखमल पर सलमे के काम के मेजपोश और झंडे इतने लगे हुए थे कि सारा स्थान सुनहरी मालूम हो रहा था । श्रीयुत बी. जी. हौरनिमन बम्बई के प्रसिद्ध पत्र बाम्बे क्रांनिकल के सम्पादक और भारतीय पत्रकार सभा के अध्यक्ष इस जलसे के सभापति निर्वाचित हुए। उपस्थित जैन अजैन जनता को समूह इतना था कि विशाल मण्डप में खड़े होने तक का स्थान नहीं

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