Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Author(s): Ajit Prasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal
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भाषण में शिक्षा की आवश्यकता, अजैनों को जैन धर्म में दीक्षित करने का औचित्य दिखलाया । भारतेतर देशीय जैनों की सम्मिलित सभा की स्थापना का उल्लेख किया ।
इसी अवसर पर दिगम्बर जैन महासभा का वार्षिक अधिवेशन भी इस ही नगर में हुअा। इसके सभापति थे साधुवृत्ति राय साहेब द्वारिकाप्रसाद इंजिनियर कलकता। उनका भाषण सराहनीय था। विषय निर्धारणी सभा में महासभा की अनियमित धांधलीबाजी का भंडाफोड़ हुअा। दूसरे दिन खुली सभा में कुछ अनधिकृत लोगों ने दस्सा पूजाधिकार का झगड़ा खड़ा करके शोर मचा, गाली गलोज, करके महासभा के मंच पर कब्जा कर लिया । सभापति महोदय उठ कर अपने डेरे में चले आए।
तेरहवाँ अधिवेशन तेरहवाँ अधिवेशन ता० २५, २६, २७, २८ और २६ दिसम्बर १९१२ को बनारस में हुअा, जो स्याद्वाद महोत्सव के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इस महोत्सव में मंडल की तरफ से कोई प्रस्ताव नहीं हुए, किन्तु महत्वपूर्ण कार्य हुए । ता० २५ को बनारस टाऊन हाल में श्री जुगमन्दिर लाल जी जैनी सभापति स्वागत-समिति ने अपने भाषण में महामण्डल के विविध रचनात्मक कार्यों का उल्लेख किया और मिसेज़ ऐनी बेसेन्ट के अध्यक्ष निर्वाचित किए जाने का प्रस्ताव किया । मिसेज बेसेन्ट ने अपने भाषण में कहा कि महाबीर स्वामी जैन धर्म के २४ तीर्थंकरों में अन्तिम तीर्थंकर थे। यूरोप शेष १३ तार्थकरों को ऐतिहासिक वास्तविकता नहीं समझ सकता क्योंकि वह स्वतः कम उमर है, और इतनी गहरी प्राचीनता का विचार उसकी शक्ति के बाहर है, और इस कमजोरी के कारण जैन धर्म की प्राचीनता उसके विचार के बाहर है । जैन धर्म इतिहास और मौखिक तथा पौराणिक कथाओं