Book Title: Bharat Jain Mahamandal ka 1899 Se 1947 Tak ka Sankshipta Itihas
Author(s): Ajit Prasad
Publisher: Bharat Jain Mahamandal
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ग्यारहवाँ अधिवेशन ग्यारहवाँ अधिवेशन जयपुर राज्य में जनवरी १९१० में किया गया। इस जल्से के काम चलाने का भार मुझे सौंपा गया था ।। श्वेताम्बर दिगम्बर स्वागत कार्यकर्ता और प्रतिनिधि सब खुले दिल से मिलकर काम कर रहे थे। राज्य के अधिकारी वर्ग भी सभा में पधारे थे। ऐसोसियेशन का नाम परिवर्तन होकर भारत जैन महामंडल हो गया । जैन शिक्षा प्रचारक समिति जयपुर में शिक्षा प्रचार का काम अच्छी सफलता से कर रही थी। मगर धर्म, समाज और देश के लिये दत्तचित्त होकर काम करनेवाले युवक तैयार करने के अभिप्राय से एक गुरुकुल जैसी संस्था की स्थापना का निश्चय किया गया। परिणामतः ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम पहली मई १९११, अक्षय तृतीया के दिन, हस्तिनापुर जिला मेरठ में जारी कर दिया गया।
ब्रह्मचर्य आश्रम को जारी करने के अभिप्राय से श्रीयुत भगवाना दीन जी, अर्जुन लालजी और मैं गुरुकुल कांगड़ी और अन्य शिक्षा मन्दिरों का निरीक्षण करने, गये । भगवानदी जी ने रेलवे के असिस्टेंट स्टेशन मास्टर की नौकरी छोड़ दी। यावज्जीव ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया। अपनी गृहणी को शिक्षार्थ श्राविकाश्रम बम्बई में भेज दिया
और . अपने चार-पाँच वर्ष के बालक को श्राश्रम में भर्ती कर लिया । स्वतः श्राश्रम के उत्तरदायित्व अधिष्ठाता पद का भार स्वीकार किया। तभी से भगवानदीन जी को हम लोग महात्मा भगवानदीन कहने लगे । लाला मुन्शीराम भी इसी प्रकार गुरुकुल कांगड़ी के अधिष्ठाता होने के पीछे महात्मा श्रद्धानन्द कहलाने लगे थे। लेकिन भगवानदीन जी ने अपना नाम परिवर्तन करना उचित नहीं समझा।
हस्तिनापुर ब्रह्मचर्य आश्रम ने दिन प्रतिदिन सन्तोषजनक उन्नति की। पारस्परिक सामाजिक मतभेद और सरकार अंग्रेजी की कड़ी निगाह के कारण चार-पाँच वर्ष के उत्कष के बाद वह नीचे गिरता