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भक्तमाल परिशिष्ट आदि दिये हैं, अतः उन्हें भी धन्यवाद अर्पित करना हमारा कतव्य है। इनके अतिरिक्त जिन विभागीय एवं अन्य विद्वानों ने पुस्तक को पूर्ण बनाने में श्री नाहटाजी का हाथ बटाया है, वे भी प्रशंसा के पात्र हैं।
प्रस्तुत प्रकाशन भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय की ओर से "अाधुनिक भारतीय भाषा-विकास-योजना-राजस्थानो" के अन्तर्गत प्रदत्त आर्थिक सहयोग से किया जा रहा है, तदर्थ भारत सरकार के प्रति हम आभार प्रदर्शित करते हैं।
१५-४-६५ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर.
मुनि जिनविजय सम्मान्य सञ्चालक
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