Book Title: Bhaktamarstava Vrutti
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 1
________________ अनुसन्धान ५० खण्डेल्लकगच्छीय श्री शान्तिसूरि-विरचिता भक्तामरस्तव - वृत्तिः॥ सं. विजयशीलचन्द्रसूरि केटलाक समय अगाऊ डॉ. मधुसूदन ढांकीए सूचवेलुं : भक्तामर पर शान्तिसूरिकृत एक टीका खम्भातमां छे, ते उपलब्ध टीकाओमां सौथी प्राचीन छे. तेने प्रकाशित करवानी जरूर छे. आ सूचनने याद राखीने आ वखतनी खम्भातनी स्थिरतामां आ टीकानी प्रतिलिपि ऊतारी छे, अने ते अत्रे प्रकाशित करवामां आवे छे. खण्डेल्लक गच्छ अने शान्तिसूरि - आ बन्ने नामो टीकाना अन्तभागमां उल्लेखायेलां छे. श्रीशान्तिसूरिना सत्ताकाल विषे कोई सन्दर्भ उपलब्ध नथी. परन्तु टीकानी निराडम्बर शैली अने शब्दोना अर्थ तेमज प्रश्नोत्तरीरूपे तेनी प्रस्तुति वगेरे जोतां १२मा शतकथी अर्वाचीन ते होय तेम जणातुं नथी. खम्भातना शान्तिनाथ प्राचीन ताडपत्र ग्रन्थभण्डारमां क्र. २७८ पर स्थित आ टीका-प्रति २८ पत्रोनी छे. तेनी लखावट उपरथी तेओ आनुमानिक लेखन संवत् विक्रमनो १५मो शतक होवार्नु पूज्य श्रीपुण्यविजयजी महाराजे निर्देश्यु छे (Catalogue of Palm-leaf MSS. in the Shantinatha Jain Bhandara, Cambay : सं. मुनि पुण्यविजयजी, प्र. गायकवाड्झ ओरिएन्टल सिरीझ, बरोडा - नं. १४९, ई. १९६६, पृ. ४३२) बे-एक ठेकाणे टीकांशो त्रुटित छे. एक पार्नु फाटेल होवाथी पाठ तूटेलो छे. ते सिवाय बधी - ४४ गाथाओ तथा तेनी टीका परिपूर्ण रूपमां उपलब्ध छे. १५मुं काव्य तेमज तेनी अवतरणिकारूप टीकांश, लखायेल नथी. ते पैकी काव्य तो प्रचलित पाठ परम्परा प्रमाणे लखीने उमेरेल छे. केटलांक पद्योमा नानकडा पण पाठभेदो जोवा मळे छे, तेनी नोंध आ प्रमाणे : पद्य १०- प्रथम चरण, प्रचलित परम्परामां "नात्यद्भुतं भुवनभूषणभूत ! नाथ !" आम बोलाय छे. ज्यारे अहीं ते चरण "नात्यद्भुतं

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