Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03 Author(s): Buddhisagar Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छे) जेवुं हृदय होय ते प्रकाशे छे. गंभीरपदोमां समजण न पडे तो सद्गुरु पासे निर्णय करवो. भक्तनुं हृदय जेवा स्वरुपमां वर्ततुं होय छे, तेवं ते वाणीथी देखाय छे, ज्ञानक्रियायी मोक्ष छे परमबोध प्राप्तिनुं कारण भजन छे, आत्मारुप मधुनी जेटली स्तुति करीए तेटली ओछी छे, सहज योगे मानादिकना अभावे आत्मार्थे आ भजन संग्रहनी रचना थइ छे. ज्ञान, वैराग्य, नीति, शिक्षा, भक्ति आटला विषयो आ पुस्तकमां मुख्यता ए छे. वांचीने आत्महित साधवं - शब्दब्रह्मथी पर ब्रह्मनी प्राप्ति करवी जोइए; सारांशके शब्दधी आत्मस्वरूपनी प्राप्ति करवी जोइए. आयुष्यनी खबर नथी, अल्पसमयमां आत्महित साधवानुं छे. प्रवृत्तिमार्गमांथी नोकळी निर्वृत्ति पद प्राप्त कर वानुं छे, त्रणकालमां शुद्धात्म सेवनथी मुक्ति छे, निमित्त अने उपादान कारणथी परमात्मस्वरूप प्राप्त करवुं जोइए ते माटे जिन वाणीनुं रहस्य गमे ते शब्द रूपमां वाक्यमां होय तोपण आराधन करी सिद्ध स्थानमां जवं जोइए, चिदानंद ल्हेरोनी खुमारी जेणे अनुभवी छे, तेने आ रचनानुं यथार्थ स्वरुप समजाशे, बाह्य खटपट छोडीने जे भव्य जीवो आत्माने उपादेय गणी धर्म साधना करे छे, ते परमभाव मंगलने प्राप्त करे छे, सर्वने तेम थाओ ॐ शांन्तिः सुश्रावक प्रांतिजवाळा शा. मगनलाल करमचंद तथा श्री कच्छगाम नळीयाचाळा शा. लद्धाभाई चांपशीए आ पुस्तक छपावामां जे. सहाय करी छे, धननो व्यय शुभ ज्ञान हेतुमा कर्यो छे, माटे तेमने धर्म लाभाशी पूर्वक धन्यवाद घंटे छे, दोशी. मणिभाइ नथुभाइ वी, ए तथा शा. गरिधरलाल हकमचंदे प्रुफ सुधारवामां सहाय करी ते माटे धर्म लाभाशीः देवामां आवे छे. विहार मुकाम - बोरसद - कावीठा. लि. मुनि - बुद्धिसागर. ॐ शांन्तिः शांन्तिः शांन्तिः माघ शुक्लपक्ष पूर्णिमा० संवत १९६५, For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 218