Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आलंजन संभव प्रभु, औक्यताए परखो. सं० ॥ ४ ॥ संभव संयम साधना, साची एक भक्ति; बुद्धिसागर ध्यानमां, ज्ञान दर्शन व्यक्ति. सं०॥५॥ ४ अथ श्री अभिनंदन जिन स्तवन. राग उपरनो. अभिनंदन अरिहंतनु, शरणुं एक साधु लोकोत्तर चिन्तामाणि, पामी दिल राचुं. अ०॥ १ ॥ लोकोत्तर आनंदना, परमेश्वर भोगी; शाता अशाता वेदनी, टळतां सुख योगी. अ० ॥२॥ 'उज्वल ध्याननी एकता, खेंची प्रभु आणे; पुद्गळने दूरे करी, शुद्धरुप प्रमाणे. अ० ॥३॥ पिंडस्थादिक ध्यानथी, प्रभु दर्शन आपे; बुद्धिसागर भक्तिथी, सत्य आनंद व्यापे. अ०॥४॥ ५ अथ श्री सुमतिजिन स्तवन. राग उपरनो. सुमति चरणमा लीनता, सातनयथी खरी छे समकित पामी ध्यानथी, योगियोए वरी छे. सुम० ॥१॥ नैगम संग्रह जाणजो, व्यवहार विचारो; रुजुसूत्र वर्तमानना, परिणामने धारो० सुम० ॥२॥ अनुक्रम चरण विचारने, नयो सप्त जणावे; शब्द अर्थ नय चरणने, अनेकांत ग्रहावे. सुम० ॥शा द्रव्य अने भाव भेदथी, चउ निक्षेप भेदे; For Private And Personal Use Only

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