Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ श्री योगनिष्ठ मुनिश्री बुद्धिसागरजी कृत. भजन स्तवन पद संग्रह. भाग ३ जो. चतुर्विंशति जिन स्तवनानि ( चोवीशी ) ॥१ रुषभदेव स्तवनम् ॥ राग देशाख. परम प्रभुता तुं क्यों, स्वामी रुषभ जिणंद ध्याने गुणगणे चढी, टाळ्या कर्मना फंद. पर० ॥ १ ॥ अंतरंग परिणामथी, निज रूद्धि प्रकाशी; क्षायिकभावे मुक्तिमां, सत्यानंद विलासी. पर० ॥२॥ कर्ता कर्म करण वळी, संप्रदान स्वभावे; अपादान अधिकरणता, शुद्ध क्षायिक भावे. पर० ॥ ३ ॥ नित्यानित्य स्वभावने, सदसत् तेम धारो; वक्तव्यावक्तव्यने, एकानेक विचारो. पर० ॥ ४ ॥ आठ पक्ष प्रभुव्यक्तिमां, पंड् गुण सामान्य सात नयोथी विचारता, प्रभु व्यक्ति सुमान्य. पर० ॥ ५ ॥ स्मरण मनन एक तानमा, शुद्ध व्यक्तिमां हेतु; तुज सर मुज रुष छे, भवसागर सेतु. पर० ॥ ६ ॥ सालंबनमा तुं वडो, निरालंबन पोते; . बुद्धिसागर ध्यानथी, निजने निज गोते, पर० ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only

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