Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ अथ अजित जिनेश्वर स्तवन. श्रीरे सिद्धाचळ भेटवा-ए राग. अजित जिनेश्वर देवनी, सेवा सुखकारी; निश्चयने व्यवहारथी, सेवा जयकारी. अजि० ॥ १ ॥ निमित्त ने उपादानथी, सेवन उपकारी द्वेष खेद ने भय तजी, सेवो हितकारी. अजि० ॥२॥ दुर्लभ सेवन इशनु, धातोधातें मळवू; पर परिणामने त्यागीने, शुद्ध भावमां भळ. अजि० ॥३॥ षदकारक जीव द्रव्यमां, परिणमतां ज्यारे; त्यारे सेवन सत्य छ, भवपार उतारे. अजि० ॥ ४॥ निर्विकल्प उपयोगथी, नित्य सेवो देवा; निज निज जातिनी सेवना, मीठा शीव मेवा. अजि० ॥५॥ परम प्रभु निज आगळे, सेवनथी होवे; बुद्धिसागर सेवतां, निजरुपने जोवे. ३ अथ श्री संभवजिन स्तवन. राग उपरनो. संभव जिनवर जागतो, देव जगमां दीठो; अनुभव ज्ञाने जाणतां, मन लागे मीठो.. सं०॥१॥ प्रगटे क्षायिक लब्धियो, संभव जिन ध्याने; संभव चरणनी सेवना, करतां सुख माणे. सं० ॥२॥ संभव ध्याने चेतना, शुद्ध रूद्धि प्रगटे; वीर्योल्लासनी वृद्धिथी, मोह माया विघटे. सं० ॥ ३ ॥ संभव दृष्टि जागतां, संभव जिन सरिखो; For Private And Personal Use Only

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