Book Title: Bhajanpad Sangraha Part 03
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2 अमदावाद आवतां - कड़ी-सांतज विगेरेमां थइ हती. पृष्ठ १३७ थी १३८ मा ना स्तवनोनी रचना सरखेज गाममां थइ हती. पृष्ठ १३९ यो पृष्ठ १४२ सुधीना पदोनी स्फुरणा साणंद तथा गोधाबीमां बिहार प्रसंगे थइ हती. पृष्ठ. १४३ थी पृष्ठ १६० सुधीनी गुंहळोजीनी रचना अमदावादमां संवत. १९६५ ना पोश मासमां आंबलीपोळ झवेरीवाडाना उपाश्रयमां थइ हती पृष्ठ. १६१ थी पृष्ट. १८१ सुधी आत्मस्वरूप ग्रन्थ छे, तेनी रचना माणसा नगरमां संवत. १९६१नी सालमा थइ हती; तेमां बहिरात्मा, अंतरात्मा, अने परमात्मानुं वर्णन कर्यु छे, प्रत्येक आत्मानां लक्षण भिन्न भिन्न बताव्यां छे. पृष्ठ. १८२ मा थी चेतनशक्ति ग्रंथनी रचना शरु थएली छे, ते ग्रंथमा आत्मशक्तियोनो गंभीर वचनाथी महिमा दर्शाव्यो छे जेम जेम तेनो अर्थ विचारे, तेम तेम विशेष नीकळतो जाय छे, अने आत्मशक्तियोने प्राप्त करवा उत्साह वधे छे. आत्मोद्यम करवाथी अनंत कर्मनो नाश थाय छे, ते स्पष्ट आ ग्रन्थथी अनुभवमा आवशे. माणसाथी संवत १९६४ नी सालमां तारंगाजीए श्री अजितनाथनां दर्शन करवा विहार कर्यो. चैत्रवदी अमावास्याना रोज त्यां दर्शन करी एक दीवसमां आ ग्रंथ बनाव्यो छे तेमज श्री अजितनाथनुं स्तवन पण अमावास्याए बनाव्युं छे. चेतन स्तुति श्री खेरालु गाममां बनावी छे. तेमज केलवणीनुं स्वरुप श्री खेराकुमां वैशाख मासमां बनान्युं छे. जैनधर्ममां अध्यात्मज्ञान अनंत छे आत्मज्ञाननुं परिपूर्ण स्त्ररुप तीर्थकरो दर्शान्युं छे तेमना वचननो किंचित् रहस्य हृदयमां उतरवाथी द्रव्य क्षेत्र काल भाव योगे जेजे विषयोनी स्फुरणाओ उठी ते ते लखी लीधी छे छमस्थावस्थामा लखवामां रचवामां तथा विचारमां सिद्धांत सूत्रोना आशयथी विपरीत जे कंह होय ते पंडित पुरुषो सुधारशो, सज्जनो सद्गुण दृष्टिथी गुण ग्रहण करे छे, ( वीतराग आज्ञा विरुद्ध जे कंड़ होय ते संबंधी मिच्छामि दुकई दउछु भजनोपदो वक्ताना हृदयनुं प्रतिबिंब छे ( फोटोग्राफ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 218