Book Title: Bhairava Padmavati Kalpa Author(s): Mallishenacharya, Shantikumar Gangwal Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti View full book textPage 3
________________ ( २ > दिया । मेरा यह जगह विहार किया । अनेक शास्त्र भण्डार देखे, और उन शास्त्र भण्डारों में पाये जाने वाले अनेक प्रकार के आगम हैं, जिनकी अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण अवस्था हो रही है और कोड़ों का आहार बन रहे हैं। और जिसमें सबसे अधिक दयनीय दशा मंत्र शास्त्रों की हो रही है। मैंने देखा, मंत्र शास्त्रों की हालत खराब हो रही है इसलिये इनको एक जगह संकलित कर दिया जाये। इस भावना से यह कार्य प्रारम्भ किया, और थोड़े ही दिनों में पूर्ति करके लघुविद्यानुवाद ग्रंथ के रूप में प्रकाशित करवा अभिप्राय कभी भी नहीं था कि दि. जैन समाज का इससे अहित हो। यह बात तो परम सत्य है कि द्वादशांग में १० नं. विद्यानुवाद पूर्व है जो जिनागम में चूलिका के ५ भेद है । उनमें जलगता, श्राकाशगता भूमिगता, मायागता तथा स्थलगता है। इन सब जिना - गमों में यंत्र, मंत्र, तंत्र हैं जिससे कि जीव भूमि में प्रवेश कर सके । नाना प्रकार के रूप धारण कर सके । आकाश में गमन कर सके । जल पर चल सके । यदि विद्यानुवाद पूर्व में ५०० महाविद्या और ७०० क्षुद्र विद्या का वर्णन है ही, इसको कोई भी विद्वान नकार नहीं सकता । मनुष्यों के दो भेदों में विजयाद्ध पर रहने वाले विद्याधर मनुष्य हैं और वे लोग जिनागम में बरित मंत्र की साधना करते हैं । इसलिए विद्याधर कहलाये । तो क्या यह सब झूठ है ? कुछ नास्तिकवादी विद्वानों का कहना है कि यह सब झूठ हैं । हमारे यहां कोई मंत्र शास्त्र नहीं है। मैं भी कहूंगा कि ये सब विद्वान भी झूठे हैं। हमसे संकलित लघुविद्यानुवाद पूर्व को लेकर बहुत ही अफवाहें मन्त्रायी जा रही है, जिसमें कि अफवाह का कोई कारण नहीं है। मैं तो मात्र संकलनकर्ता हूं न कि रचयिता । जहां मंत्र शास्त्र का विषय है, वहां शुद्धाशुद्ध पदार्थों का दर्शन श्राता ही है उसमें मेरा कोई अपराध नहीं, न ही मैंने दि० परम्परा को क्षति पहुंचाने सरीका कार्य ही किया है। किसी भी विद्वान को दृष्टि इधर नहीं थी, सो मैंने लिखा। अभी भी मेरा समाज के विद्वानों को कहना है कि लघुविद्यानुवाद आपको ठीक नहीं जंचता है तो शास्त्र भण्डारों में पड़ा रहने दो। यह तो मंत्र शास्त्र है इसमें तो सब प्रकार का वर्णन आएगा ही । इसमें कमी बेसी करना हमारे बस की बात नहीं थी। फिर भी मैंने तो मेरे आशीर्वादात्मक वचन में सब कुछ स्पष्ट कर दिया। मैने अकेले ने तो कोई नया कार्य नहीं किया पूर्वाचार्यों ने भी मंत्र शास्त्र लिखे हैं, उसमें हस्तलिखित विद्यानुवाद भैरव पद्मावति कल्प, ज्वालामालिनि कल्पः, सरस्वती कल्पः, काम चांडालिनि कल्पः, अंबिका कल्प, घंटाकर्ण, महावीर कल्पः आदि अनेक मंत्र शास्त्र, शास्त्र भण्डारों में विराजमान हैं। कुछ सूरत से, कुछ श्वेताम्बरों के यहां से प्रकाशित भी हो गये हैं। विद्वानों को मुझ से ही इतना द्वेषPage Navigation
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