Book Title: Bhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Motilal Banarasidas

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ इसका हल हिंसक क्रांति में ढूंढा है। पर महावीर ने इस आर्थिक वैपम्य को मिटाने के लिए अपरिग्रह की विचारधारा रखी है । इसका सीधा अर्थ है-ममत्व को कम करना, अनावश्यक संग्रह न करना । अपनी जितनी आवश्यकता हो, उसे पूरा करने की दृष्टि से प्रवृत्ति को मर्यादित और आत्मा को परिष्कृत करना जरूरी है। श्रावक के बारह व्रतों में इन मबकी भूमिकाएं निहित हैं । मार्स की आर्थिक क्रांति का मूल आधार भौतिक है, उसमें चेतना को नकारा गया है जबकि महावीर की यह आर्थिक क्रांति चेतनामूलक है । इसका केन्द्र-बिन्दु कोई जड़ पदार्थ नहीं वरन् व्यक्ति स्वयं है। बौद्धिक क्रांति : महावीर ने यह अच्छी तरह जान लिया था कि जीवन-तत्त्व अपने में पूर्ण होते हुए भी वह कई अंशों की अखण्ड समष्टि है। इसीलिये अंशों को समझने के लिए अंश का समझना भी जरूरी है। यदि हम अंश को नकारते रहे, उसकी उपेक्षा करते रहे तो हम अंशी को उसके सर्वाङ्ग सम्पूर्ण रूप में नहीं समझ सकेंगे । सामान्यतः समाज में जो झगड़ा या वाद-विवाद होता है, वह दुराग्रह, हठवादिता और एक पक्ष पर अड़े रहने के ही कारण होता है । यदि उसके समस्त पहलुओं को अच्छी तरह देख लिया जाय तो कहीं न कही सत्यांश निकल आयेगा। एक ही वस्तु या विचार को एक तरफ से न देखकर, उसे चारों ओर से देख लिया जाय, फिर किसी को एतराज न रहेगा। इस बौद्धिक दृष्टिकोण को ही महावीर ने स्याद्वाद या अनेकांत-दर्शन कहा । आइन्स्टीन का सापेक्षवाद इसी भूमिका पर खड़ा है । इस भूमिका पर ही आगे चल कर सगुण-निर्गुण के वाद-विवाद को, ज्ञान और भक्ति के झगड़े को सुलझाया गया। प्राचार में अहिंसा की और विचार में अनेकांत की प्रतिष्ठा कर महावीर ने अपनी क्रांतिमूलक दृष्टि को व्यापकता दी । अहिंसक दृष्टि : इन विभिन्न क्रांतियों के मूल में महावीर का वीर व्यक्तित्व ही सर्वत्र झांकता है । वे वीर ही नहीं, महावीर थे । इनकी महावीरता का स्वरूप आत्मगत अधिक था। उसमें दुष्टों से प्रतिकार या प्रतिशोध लेने की भावना नहीं वरन् दुष्ट के हृदय को परिवर्तित कर उसमें मानवीय सद्गुणों-दया, प्रेम, सदाशयता, करुणा आदि को प्रस्थापित करने की प्रेरणा अधिक है । चण्डकौशिक के विप को अमृत बना देने में ग्रही मूल प्रवृत्ति रही है । महावीर ने ऐसा नहीं किया कि चण्डकौशिक को ही नष्ट कर दिया हो । उनकी वीरता में शत्रु का दमन नहीं. शत्रु के दुर्भावों का दमन है । वे बुराई का बदला बुराई से नहीं बल्कि भलाई से देकर बुरे व्यक्ति को ही भला मनुष्य वना देना चाहते हैं । यही अहिंसक दृष्टि महावीर की क्रांति की पृष्ठभूमि रही है । आधुनिक संदर्भ और महावीर : भगवान् महावीर को हुए आज २५०० वर्ष हो गये हैं पर अभी भी हम उन मूल्यों को आत्मसात् नहीं कर पाये है जिनकी प्रतिष्ठापना उन्होंने अपने समय में की थी। सच

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 375