Book Title: Bagad ke lok Sahitya ki Zankhi Author(s): L D Joshi Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 6
________________ ७४ प्रो. डॉ. एल. डी. जोशी उसके फौरन बाद कडाणा युद्ध की कल्पना से लोक भय और आशंका अनुभव करने लगे। लग्न विधि चल रही थी कि गलालेंग को कडाणा याद आया । अवधि में सिर्फ एक दिन बाकी था। उसने राजपुरोहित को जल्दी करने को कहा तो उसकी सासू पर्दे में से बोली "धिरे-धिरे परगो मेवाड़ा नानि ना बालया पाते जियें कुवारी कन्या ने वोर घणा परणी ने लगाइयो दागे जिय लगन लगन तो मरद कुंवारो असतरि तो पागलो भोवे जियें धिरे-धिरे परणो मेवाडा के घणी परण्या नी अाँसे जियें एवि उतेवेल पोत तो वाला तमें वलता परणी जाता जियें" गोर वजेराम ने ज्यों त्यों लग्न विधि पूर्ण की तो दान दक्षिणा देकर गलालसिंह सीधा युद्ध में जाने को तैयार हुआ । गोर ने कहा कि कालयोग है अतः घर जाकर वरपडवें (दोरा कंकन छोड़कर) करके जायो। रातोंरात बारात पचलास रवाना हुई । सबलसेंग काका की मेडी में रात वास किया परन्तु पत्नीयों से मिलना नहीं हया क्योंकि मोडमींढल छोड़े बिना सुहागरात वजित थी। दूसरे दिन गोर से मुहर्त मांग साल की माँ पियोली गलालेंग को रानियों से मिलने देना नहीं चाहती थी क्योंकि रसिक गलाल रानी के रूप पर मोहित हो जाय तो युद्ध में ही नहीं जाय । अतः माँ ने ब्राह्मण को धमकाकर दस दिन बाद मुहूर्त है, ऐसा खोटा कहलवाया। परिणामस्वरूप गलालेंग बिना मोड़-मीढल छोड़े ही युद्ध को रवाना हुआ। यहां से करुण-रस का उभार पाता है। पहली रानी असमय में स्वर्ग सिधारी और अब दो दो नारियाँ हैं, परन्तु प्रणय सुख पाये बिना ही गलालेंग को युद्ध में जाना पड़ता है ! पादरडी बड़ी में मावा पटेल की पत्नी ने दूर से गलाल को आते देखा तो गांव सहित स्वागत को बढ़ी और उसे चावलों से पौंखकर स्वागत कर चौराहे पर ठहराया। मावा पटेल की षोड़शी पुत्री रूपा ने गलालेंग को कहा "प्राडें लोक नि होलि दिवली खतरिने पुनेम वालि जियें बार कोनो खडयो खतरि पुनेमियो धेरे प्रावे जिय माजे है वैसाकि पुनेम मामियँ ने मलि प्रावो जिये प्रस्तरिय ना नया पड़े तो मामा धरणें परासन लागें जियें" हे मामा, आज पूनम है । मामियों को मिलकर जाओ, नहीं तो मेरी कसम है। भाणेज पटलाणी की बात मान, सेना सागवाड़ा पड़ाव की ओर भेजकर गलालेग माई वखतसिंह के साथ वापस पछलासा लौटा। रात हो चुकी थी। राणी झालि तो सो गई थी परन्तु मेंणतणि ने घोड़ों की टापें सुनी। उसने झालि को जगाकर कहा 'उट ने मारी बोन रे झालि ठकरालो घेरे पाव्यां जिये मेला खेला तो खेर वया ने मांरिणधर पासा पाव्या जियें।' माणिगर की बात सुनकर झालि उठ बैठी और पिया मिलन की उमंग में शृङ्गार सजा कर तैयार हुई : "पान फूल नि सेज वसावि ने प्रोशि के नागर वेले जिय तेर दिवा तेलना पुर्या ने दस घिय ना पुर्या जियें।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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